RANCHI : लोहरदगा विस उपचुनाव में तीन दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। कांग्रेस के सुखदेव भगत और झाविमो के बंधु तिर्की के राजनीतिक करियर के लिए यह उपचुनाव जहां खास मायने रखती है, वहीं नीरू शांति की उम्मीदवारी से आजसू के पूर्व विधायक कमल किशोर भगत और एनडीए की साख जुड़ी है। यह उपचुनाव हाई प्रोफाइल उम्मीदवारों के बीच लड़ा जा रहा है। इसके नतीजे कहीं न कहीं इन तीनों की राजनीतिक हैसियत को जरूर प्रभावित करेंगे। इस सीट से चुनाव लड़ रहे सुखदेव भगत जहां प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, वहीं बंधू तिर्की झारखंड विकास मोर्चा के कद्दावर नेता के साथ पूर्व मंत्री भी रह चुके हैं। एनडीए की नीरू शांति भले ही पहली बार चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन इनके पति व पूर्व विधायक कमल किशोर भगत की गिनती आजसू के बड़े नेताओं में होती है।

नीरू के सामने राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौती

डॉ केके सिन्हा से रंगदारी व मारपीट मामले में विधायकी गंवाने वाले कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति को आजसू ने उपचुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया है। नीरू के एनडीए का भी समर्थन प्राप्त है। ऐसे में अपनी राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए कमल किशोर जेल के अंदर से ही सक्रिय हैं। नीरू भी अपने पति की राजनीतिक विरासत को जिंदा रखने के लिए गांव-गांव डगर-डगर का दौरा कर मतदाताओं से अपने पक्ष में वोट करने की अपील कर रही हैं। अगर नीरू के पक्ष में अगर उपचुनाव का नतीजा नहीं आता है तो यह उनके पति कमल किशोर के साथ-साथ एनडीए के लिए भी खतरे का संकेत है। दरअसल कोर्ट से अयोग्य किए जाने के बाद कमल किशोर की विस सदस्यता चली गई थी। ऐसे में उन्होंने रिम्स की नर्स नीरू शांति से शादी कर ली थी, ताकि उपचुनाव में उसे उम्मीदवार बनाकर अपनी राजनीतिक विरासत को मजबूत बनाया जा सके।

सुखदेव के लिए चुनाव के साथ पार्टी में भी प्रतिष्ठा दांव पर

विस उपचुनाव लड़ रहे सुखदेव भगत कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। कांग्रेस में उनकी गिनती हाई प्रोफाइल नेताओं में होती है। हालांकि, पिछले दो चुनावों में आजसू के कमल किशोर से वे हार गए थे, फिर भी वे प्रदेश अध्यक्ष का पद बचाने में कामयाब रहे। इस उपचुनाव में भी कांग्रेस ने सुखदेव भगत पर भरोसा जताते हुए अपना उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में यह चुनाव उनके राजनीतिक करियर के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। एक तरफ प्रदीप बलमुचु समेत प्रदेश के कई बड़े नेताओं के निशाने पर वे पहले से ही हैं। लेकिन, इस उपचुनाव में अगर उनकी फिर हार हुई तो पार्टी के विरोधियों को उनके खिलाफ मुहिम छेड़ने का मौका मिल जाएगा। वैसे, कांग्रेस में संगठनात्मक चुनाव जल्द होंगे। अगर फिर से प्रदेश अध्यक्ष के पद की दावेदारी मजबूत करने के लिए सुखदेव भगत के लिए यह उपचुनाव हर हाल में जीतना जरूरी है। ऐसे में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए सुखदेव भगत राज्यसभा सदस्य धीरज साहू और पूर्व सांसद रामेश्वर उरांव को अपने पक्ष में लाकर युद्धस्तर पर चुनावी प्रचार कर रहे हैं।

बंधु की किस्मत का फैसला करेगा उपचुनाव

आदिवासी-मूलवासी की राजनीति से झारखंड में अपनी पकड़ बनाने वाले पूर्व मंत्री बंधु तिर्की की किस्मत भी इस उपचुनाव में दांव पर है। कई दलों की सवारी कर चुके बंधु इस उपचुनाव में झाविमो से उम्मीदवार हैं। गौरतलब है कि बंधु ने सबसे पहले झारखंड जनाधिकार मंच नाम से अपनी पार्टी बनाई थी। इसी पार्टी से उन्होंने मांडर सीट से विधानसभा के लिए चुने गए थे। मधु कोड़ा सरकार में मंत्री का पद भी संभाला था। लेकिन, 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया था। रांची सीट से उन्होंने बतौर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था, लेकिन पराजय मिली थी। इसके बाद विस चुनाव में मांडर सीट भी वे हार गए थे। इसके बाद उन्होंने तृणमूल कांग्रेस से नाता तोड़ कर बाबूलाल मरांडी की अध्यक्षता वाली झाविमो की सदस्यता ले ली थी। ऐसे में झाविमो के तौर पर लोहरदगा विस उपचुनाव लड़ रहे बंधू की राजनीतिक किस्मत का फैसला भी होगा।