- पुराने लखनऊ में ट्रेडिशनल कैरेक्टर्स की तरह सजने-संवरने वाली यह विधा अब लगभग खत्म हो चुकी

- पुलिस रेडियो मुख्यालय और पीएसी वाहिनी सहित अन्य स्थानों पर भी झांकियां तैयार करने का काम लगभग पूरा

LUIUCKNOW: भक्त प्रहलाद आयरन पोल से बंधे हैं। पिता हिरण्यकश्यप की तलवार उसे मारने को तैयार थी। अचानक आयरन पोल जोर की आवाज के साथ फट पड़ा। पोल में से नरसिंह भगवान ने निकलकर हिरण्यकश्यप को उठा लिया और अपनी गोद में लिटाकर उसका पेट अपने पैने नाखून से चीर दिया। अरे रुकिए, हम आपको न तो प्रहलाद कथा सुना रहे हैं और न ही यह किसी पौराणिक फिल्म का सीन है। यह उन झांकियों का सीन है जो अब कहीं नजर नहीं आतीं। पुराने लखनऊ में ट्रेडिशनल कैरेक्टर्स की तरह सजने-संवरने वाली यह विधा अब लगभग खत्म हो चुकी है।

खत्म होती झांकियों की परंपरा

कम्प्यूटर युग में सजीव झांकियों की परम्परा अब खत्म हो चुकी है। अफसोस है कि लुप्त होती इन झांकियों से सांस्कृतिक धरोहर का खात्मा होता जा रहा है। करीब अस्सी साल के रामकृष्ण कहते हैं, कितना उत्साह रहता था पहले बच्चों में। चौपटिया के खेतों और गली में बने ठाकुरद्वारा में एक महीने पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती थीं। सभी इसमें बढ़-चढ़ कर पार्टीसिपेट करते थे। लेकिन अब तो कम्प्यूटर और टीवी ने सब खत्म कर दिया। नरही में रहने वाले राम प्रकाश ने बताया कि रिमझिम बारिश के बावजूद लोग बालेश्वर और ज्ञानेश्वर मंदिर में झांकियों को देखने पहुंचते थे। ऐसा सीन होता था कि मन खुश हो जाता था। चौक स्थित कच्चा पुल के पास सजने वाली झांकी में यमराज के चरित्र में सजीवता लाने के लिए भैंसे का सहारा लिया जाता था। महादेव के वेश धरे चरित्र गले में जिंदा सांपों की माला डाल लेते थे। चलती-फिरती गाय का दुग्ध पान भी दिखाया जाता था। राजधानी में कृष्ण मंदिरों में जन्माष्टमी की तैयारियां शुरू हो गई हैं। क्7 और क्8 अगस्त को यह त्योहार मनाया जाएगा। रिजर्व पुलिस लाइन में इसके लिए तैयारियां अंतिम चरण में हैं। इसके अलावा पुलिस रेडियो मुख्यालय और पीएसी वाहिनी सहित अन्य स्थानों पर भी झांकियां तैयार करने का काम लगभग पूरा होने वाला है।