'पीके खड़ा बाजार में' अभियान को कानपुराइट्स का जबरदस्त सपोर्ट मिला। रीडर्स के बढ़ते समर्थन से मुहिम को ताकत मिली और आई नेक्स्ट ने कॉन्टेस्ट शुरू किया। हजारों लोगों ने कॉन्टेस्ट में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। रीडर्स के मैसेजेस और फिर उनके इंटरव्यू के बाद तीन विजेताओं का सेलेक्शन किया गया। विजेता को पुरस्कार स्वरूप 'आई नेक्स्ट का पीके' बनकर रिपोर्टिग करने का मौका मिला। अभियान के आखिरी चरण में मंडे को आई नेक्स्ट ऑफिस में विभिन्न धर्मो और वर्गो के लोगों के बीच हुई डिबेट में जो सार निकलकर आया उससे साफ है कि ये सब मानते हैं कि पीके की सोच बिल्कुल सही है। धर्म के ठेकेदार पब्लिक को बेवकूफ बना रहे हैं। लोगों को तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। कुरीतियों को धर्म का अंग नहीं मानना चाहिएजिसने बहस के दौरान जो कहा वो हम वैसे ही प्रकाशित कर रहे हैं।

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हाफिज सईद, लादेन नहीं है मुसलमान

सबसे पहले तो मैं आई नेक्स्ट को इस अभियान के लिए शुक्रिया कहूंगा। मैं खुद धर्म में शामिल कुरीतियों के खिलाफ हूं। रोड पर निकलकर छाती पीटना गलत है। कानपुर में हर साल सड़क पर हुड़दंग मचाने वाले पैकी का इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है। फतवा देने वाले लोग ही गलत हैं ऐसे में इसको मानने का सवाल ही नहीं उठता है। लोग मजार पर चादर चढ़ाते हैं लेकिन मेरा मानना है कि वो चादर ठंड से ठिठुर रहे लोगों को देनी चाहिए। जिससे अल्लाह खुश होंगे। हाफिज सईद और ओसामा बिन लादेन जैसे लोग मुसलमान हैं ही नहीं। जो किसी बेगुनाह की हत्या करता है या उसे परेशान करता है वो इस्लाम से धोखा करता है।

वो इंसान मुसलमान हो ही नहीं सकता है जो जमीन पर कब्जा करता हो या फिर बिना मेहनत के किए किसी के पैसे से अपना पेट भरता है। धर्म के ठेकेदार लोगों को भ्रमित कर रहे हैं। भारतीयता के खिलाफ काम करने वाला मुसलमान नहीं हो सकता है। मैं तो कहता हूं कि जो धर्मगुरू टिकट देने के लिए नेताओं की पैरवी करते हैं वो भी इस्लाम के खिलाफ हैं।

सियासत से धर्म को दूर रखना चाहिए। लोबान सुलगाने से कुछ नहीं होता है। ये सब ढोंग है। इस्लाम में दुनिया के हर व्यक्ति को बराबर का दर्जा दिया है। पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाना गलत है। भारत में रहने वाला मुसलमान भारतीय है। धर्म के नाम पर किसी और देश की ओर देखना गलत है। मैं तो कहता हूं दिन में काफी टाइम मस्जिद खाली रहती है वहां उस टाइम पढ़ाई होनी चाहिए।

हाजी मोहम्मद सलीस, जनरल सेक्रेट्री, ऑल इंडिया सुन्नी उलेमा काउंसिल

चमत्कार के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाते हैं बाबा

नींबू-मिर्च टांगने से कुछ नहीं होता है। चमत्कार के नाम पर बाबा पब्लिक को बेवकूफ बनाते हैं। चमत्कार समाज के शोषण का सबसे बड़ा जरिया बन गया है। सांई के नाम पर आजकल जो लोग ठेकेदारी कर रहे हैं वो पूरी तरह गलत है। सांई तो खुद एक छोटी सी कुटिया में रहते थे ऐसे में उनके नाम पर कैसे लोग बड़े-बड़े मकान और कार पर चलकर खुद को उनका अनुयायी कह सकते हैं। चमत्कार नाम की कोई चीज नहीं है। जाति के नाम पर वोट मांगना पूरी तरह गलत है। देश के हर नागरिक को संविधान और राष्ट्रीयता के हिसाब से चलना चाहिए। बाबा नाम के बिचौलिए धर्म के आड़ में पब्लिक को ठगने का काम कर रहे हैं। धर्म के नाम पर एकत्रित होकर किसी को डराना-धमकाना या फिर किसी काम के लिए दबाव बनाना पूरी तरह गलत है। अंधविश्वास समाज को खा रहा है। नजर उतारना, बिल्ली का रास्ता काट जाना ये सब लोगो का वहम है। इंसान के दिल में भगवान हैं इसलिए किसी बाबा के चक्कर में न फंसकर खुद अपने धर्म के बारे में पढि़ए। भगवान कभी नहीं कहता है कि किसी को छोटा या बड़ा कहिए सब ही एक इंसान की बनाई संतान हैं। किसी में भेदभाव करना हिंदू धर्म में कहीं नहीं कहा गया है। जाति का निर्माण ईश्वर ने नहीं किया है ये तो हम लोगों ने यहीं कर लिया है।

पं। उमेश दत्त शुक्ला, आचार्य,

मेरा मानना है कि जो चीजें साइंस की दृष्टि से सिद्ध हैं या फिर हो चुकी हैं। उनको ही मानना चाहिए। पहले हर चीज के बारे में खुद खोजबीन करें। अपनी इंद्रियों की शक्ति से हर चीज को पहचाने। बिना कंफर्म किए किसी की बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए फिर वो चाहें कुछ भी कहे। जिस बात की पुष्टि हम अपनी पांच इंद्रियों से नहीं कर सकते उस पर यकीन नहीं करना चाहिए। कम से कम उस पर संशय तो करना ही चाहिए। लोगों को वैज्ञानिक दृष्टि से चीजों को देखना और समझना चाहिए।

डॉ। श्रीपाल, प्रोफेसर(भौतिक विज्ञान), पीपीएन कॉलेज

हर धर्म के ग्रंथों को हर भाषा में होना चाहिए। सरल भाषा में होने से पब्लिक अपने धर्म के बारे में अच्छी तरह से जान सकेगी। वरना सब ऐसे ही अपने हिसाब से धर्म की कल्पना करते रहेंगे। इंसान को खुद सोचना चाहिए कि वो जो कर रहा है वो सही है या फिर गलत। शंकर जी पर दूध चढ़ाना कहां तक उचित है? पहले जब दूध चढ़ाया जाता था तब वो गंगा जी में जाता था लेकिन आज वो नाली में जाता है। ऐसे में गरीबों को अगर ये दूध बांटा जाए तो कितने लोगों का पेट भर जाएगा।

दिव्या अवस्थी, स्टूडेंट

जहां सत्य है वहां धर्म है। सत्य के मार्ग पर चलना ही धर्म है। अपने आप से हमको खुद पूछना होगा कि क्या गलत है और क्या सही? इसके बाद खुद फैसला लेना होगामेरा तो माना है कि अगर सत्य की राह पकड़ी जाए तो धर्म की जरूरत ही नहीं है।

समीर अहमद, स्टूडेंट

हमको लॉजिकली सोचना और समझना चाहिए। बाबाओं के चमत्कार सिर्फ लोगों को धोखा देना है। अपने आप पर भरोसा रखना चाहिए। धर्म के नाम पर डरने से पहले सोचें कि क्या ये धर्म में है भी? धागा ताबीज खरीदकर पहनने से कुछ नहीं होता। मैंने जो धागा पहन रखा है वो ब्यूटी के लिए है अंधविश्वास के लिए नहीं।

डॉ। आराधना गुप्ता, साइकियाट्रिस्ट