-महज 14 साल में तय किया फकीर से रानी तक का सफर

-घर में मौजूद हैं फाइव स्टार फैसिलिटीज

LUCKNOW: कहानी शुरू हुई थी क्ब् साल पहलेचर्चित सेक्स रैकेट संचालिका सायरा बानो उस वक्त बेहद मुफलिसी के दौर से गुजर रही थीपरिवार में पति रिक्शा चालक हसनैन, तीन बेटियां और एक बेटामाली हालत ऐसी कि कभी-कभी तो फांका करके ही रात गुजारनी पड़ती थीपर, सायरा की किस्मत ने तब पलटा खाया जब उसने हसनैन को छोड़ लालबहादुर उर्फ शरफुद्दीन से निकाह किया। उसके बाद तो मानो सायरा पर नोटों की बारिश होने लगी। उसका सेक्स रैकेट का धंधा दिन-दूनी, रात चौगुनी तरक्की करने लगा। इलाके के पुलिसकर्मी भी सायरा के मायाजाल में फंसते चले गए और उसे पुलिस का संरक्षण मिलने लगा। देखते ही देखते सायरा और लाल बहादुर क्0 हजार स्कवायर फीट पर बने चार आलीशान मकानों के मालिक बन गये। सायरा के रसूख में भी इजाफा हुआ और वह मोहल्ले के विवादों में फैसला कराने लगीं। हालत यह थी कि उसके किये फैसले पर कोई भी सवाल नहीं उठाता था। उसकी इस तेज तरक्की को देख आसपास के लोग भी रंज करने लगे। अब सायरा की मौत के बाद लोग दबी जुबां से ही सही उसके किस्से बयां करते हैं।

शुरू से थी अमीर बनने की चाहत

सायरा के भाई महमूदाबाद, चिकमंडी निवासी सलमान ने बताया कि करीब ख्ख् साल पहले उसकी बहन सायरा की शादी महमूदाबाद निवासी हसनैन से हुई थी। शादी के कुछ समय बाद ही हसनैन परिवार समेत लखनऊ आ गया और झोपड़ी बनाकर रहने लगा। जिसके बाद 8 साल में उनके चार बच्चे सना, गुडि़या, सोनी और शाहिद पैदा हुए। रिक्शा चलाने वाला हसनैन दिनभर की मेहनत के बावजूद महज दो जून की रोटी की ही जुगाड़ कर पाता था। पर, सायरा को यह लाइफ स्टाइल मंजूर नहीं थी। उसके दिल में अमीर बनने की हसरत हिलोरें मारने लगी थीं। पर, हसनैन की मामूली कमाई से यह सब संभव नहीं दिख रहा था। बताया जाता है कि सायरा की जिद से हसनैन परिवार समेत मडि़यांव थाने के करीब झोपड़पट्टी बनाकर रहने लगा। मडि़यांव में बसते ही सायरा को आसान कमाई का जरिया सूझा और उसके वह देह व्यापार के धंधे में कूद पड़ी। छोटे स्तर पर शुरू किये गए उसके धंधे की भनक हसनैन को लगी तो वह सायरा पर भड़क उठा।

पति को छोड़ लालबहादुर से कर लिया निकाह

सायरा ने आसान कमाई के इस धंधे में आड़े आ रहे हसनैन को छोड़ने का मन बना लिया। इसी बीच उसकी मुलाकात हरदोई निवासी लालबहादुर मिश्रा से हो गई। बताया जाता है कि लालबहादुर ने सायरा के हर कदम पर उसका साथ दिया। उसके इस रवैये से सायरा प्रभावित हो गई और आखिरकार हसनैन को छोड़ उसने लालबहादुर से निकाह कर लिया। निकाह के वक्त लाल बहादुर ने अपना नाम शमशुद्दीन रख लिया। निकाह के बाद सायरा और लालबहादुर उर्फ शमशुद्दीन किराये का घर लेकर रहने लगे। बताया जाता है कि लालबहादुर का साथ मिलते ही सायरा के इस धंधे ने रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी। महज कुछ ही सालों में उन लोगों ने मडि़यांव के बसंत विहार कॉलोनी में एक-एक कर चार प्लॉट खरीद लिये। दो प्लॉट लालबहादुर और दो प्लॉट सायरा के नाम पर खरीदे गए। क्0 हजार स्क्वायर फीट जमीन पर उन लोगों ने चार मकान बनवाये। इन मकानों में कुल ख्8 कमरे बनवाये गए। इन कमरों की खासियत यह थी कि इनमें फाइव स्टार फैसिलिटी उपलब्ध रहती थी। एयर कंडीशन, फ्लोर टाइल्स, छतों पर पीओपी, दीवारों पर महंगा प्लास्टिक पेंट और लेटने के लिये आलीशान बेड से लैस यह कमरे पहली नजर में आरामदायक नजर आते थे।

पेमेंट के हिसाब से मिलती थी सुविधाएं

बताया जाता है कि सायरा के घर में हर तरह की सुविधा उपलब्ध थी। मोटा पेमेंट देने पर एसी रूम में थीम बेस्ड सजावट की जाती थी। साथ ही हाई क्लास खाना और पीने तक का इंतजाम भी इस पैकेज में शामिल होता था। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि लड़कियों को असली ज्वैलरी पहनाकर लोगों के सामने पेश किया जाता था। गौरतलब है कि, एसटीएफ ने ख्0 अक्टूबर ख्0क्फ् को सायरा के मकान में छापेमारी की थी और सायरा समेत कई जोड़ों को पकड़ा था। उस वक्त सायरा ने एसटीएफ कर्मियों पर लड़कियों की असली ज्वैलरी हड़पने का आरोप लगाया था। उस वक्त पुलिस टीम ने आठ कमरों को सील किया था। इन कमरों पर लगाई गई सील अब भी मौजूद है।

बनवाया था मंदिर

मुस्लिम रीति रिवाज से लालबहादुर से निकाह करने वाली सायरा ने पति के धर्म को सम्मान देते हुए घर के ठीक सामने एक मंदिर बनवाया था। उस मंदिर में उसने अपना और पति लाल बहादुर का नाम भी लिखवाया था। आसपड़ोस के लोगों का कहना है कि सायरा हर रोज मंदिर में जल चढ़ाती थी और पूजा भी करती थी। उसके इस काम से मोहल्ले वाले भी बेहद प्रभावित थे।

मकान का नक्शा देख पुलिस भी भौंचक

सायरा व उसकी बेटी सोनी की हत्या की जानकारी मिलने के बाद पहुंची पुलिस ने जब मकान की तलाशी ली तो उसके मकान में तहखाना मिला। उस तहखाने में भी बेड पड़े हुए थे और वहां भी गर्मी दूर करने के लिये एसी लगे हुए थे। इसके अलावा सायरा के मकान भी भीतर से आपस में मिले हुए थे। हर मकान में दूसरे मकान को जाने के लिये एक दरवाजा लगा हुआ था। इसके अलावा मकान के आगे व पीछे दो रास्ते थे। ऐसा मालूम पड़ रहा था कि किसी को सुरक्षित निकालना हो तो उस रास्ते का इस्तेमाल किया जाता था।