कोचिंग में छात्रों की निर्भरता

प्रो. अशोक मिश्रा की अध्यक्षता में गठित इस समिति ने पांच नवंबर को अपने सुझावों से सरकार को अवगत करा दिया। इनमें से ज्यादातर सुझावों का मकसद कोचिंग संस्थानों पर छात्रों की निर्भरता को कम करना है। समिति ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान को खुद ही प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए मॉक-टेस्ट कराने का सुझाव भी दिया है।

अभी वर्तमान व्यवस्था ही

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इन सिफारिशों पर विस्तृत चर्चा के लिए इन्हें सार्वजनिक करने का फैसला किया है। इसके साथ ही 2016 की प्रवेश परीक्षा मौजूदा पैटर्न पर ही कराने का फैसला भी लिया गया है। इसके तहत डेढ़ से दो लाख छात्रों को संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई-एडवांस) में बैठने का मौका मिलेगा। विशेषज्ञों ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को स्कूली शिक्षा और बोर्ड परीक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने का भी सुझाव दिया है। इसका उद्देश्य 12वीं तक आते-आते छात्रों में विज्ञान की अवधारणा विकसित करना है। इन बदलावों को लागू करने के लिए कुछ समय की जरूरत होगी। इसे देखते हुए विशेषज्ञों ने 2016 और 2017 में वर्तमान व्यवस्था के तहत ही परीक्षा लेने को कहा है। समिति ने एक महत्वपूर्ण सुझाव में कहा है कि इस साल एनआइटी और सीएफटीआइ में प्रवेश के समय रैंकिंग तय करने में बोर्ड परीक्षा का नंबर नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

इन बदलावों की सिफारिश

--विशेषज्ञों ने 2016 की शुरुआत में ही सरकार को राष्ट्रीय परीक्षा सेवा के गठन का सुझाव दिया है।

--राष्ट्रीय परीक्षा सेवा द्वारा साल में दो या अधिक बार ऑन लाइन एप्टिट्यूड टेस्ट लिया जाएगा।

--समिति का कहना है कि एप्टिट्यूड टेस्ट में वैज्ञानिक सोच की परख की जानी चाहिए।

--एप्टिट्यूड टेस्ट के आधार पर चार लाख अभ्यर्थियों को संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) के लिए चुना जाएगा।

--संयुक्त प्रवेश परीक्षा का आयोजन मौजूदा जेईई-एडवांस की तर्ज पर ही किया जाएगा।

--जेईई का संचालन आइआइटी द्वारा किया जाएगा और इसमें भौतिकी, रसायन व गणित के सवाल पूछे जाएंगे।

--जेईई के प्रदर्शन के आधार पर 40 हजार से अधिक छात्रों की सूची जारी करने का सुझाव दिया गया है।

--कॉमन काउंसिलिंग के आधार पर इन छात्रों को आइआइटी और एनआइटी में दाखिला दिया जाएगा।

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