- प्रदेश में 48 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार

- राजधानी पटना का भी है चौकाने वाला आंकड़ा

- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सर्वे के बाद शुरू किया काम

PATNA : बिहार के भविष्य को कुपोषण डस रहा है। ग्रामीण इलाकों की बात तो दूर शहरों में भी कुपोषण महिलाओं और बच्चों का पीछा नहीं छोड़ रहा है। प्रदेश के ब्8 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन हाल में हुए इस सर्वेक्षण के बाद कुपोषण की जंग से बिहार को उबारने की तैयारी में जुटा है।

एक नजर में बिहार का कुपोषण

ब्8 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकारं

- बिहार में 0 से क्8 साल के बच्चों की कुल संख्या भ् करोड़ 97 लाख है जो कुल आबादी का ब्म् प्रतिशत है

- बिहार में भ् साल से कम उम्र के म्9 लाख बच्चे नाटेपन के शिकार हैं जो पूरी दूनिया के नाटेपन के शिकार बच्चों की संख्या के ब्.फ् प्रतिशत हैं

- बिहार में कुपोषण घटने की दर क्0 साल में क् प्रतिशत है

- पिछले सात साल में बिहार में कुपोषण के आंकड़ों में 7 प्रतिशत की कमी आई है

- इस दौरान छतीसगढ़ में कुपोषण के कम होने की दर फ्ब् प्रतिशत रही

- एन एफ एच एस भ् के आकड़ों के अनुसार बिहार में लगभग ब्8 फीसदी बच्चे नाटापन से कुपोशित है

- नाटेपन से होनवाले प्रभाव बच्चों के जीवन में दूरगामी और अपरिवर्तनीय होते हैं , जिसका मुख्य कारण बच्चों में सही समय उपरी आहर की शुरूआत नहीं करना हैं एंव उनकी उम्र के अनुसार आहार का नहीं दिया जाना है

-आहार में फेल हैं बच्चे

भारत सरकार के एन एच एफ एस भ् ख्0क्भ्-क्म् के आकड़ों के अनुसार बिहार में केवल एक तिहाई बच्चों को ही म्-8 माह के बीच में ऊपरी आहार दिया जाता है। वहीं लगभग क्00 में 8 बच्चे को अपने उम्र के अनुरूप उपरी आहार मिल रहा है। सामान्यतौर पर म् से ख्फ् माह की अवस्था बच्चों के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। इस दौरान बच्चों के कुपोषण और संक्त्रमण का खतरा अधिक रहता है। कुपोषित बच्चे जल्द ही बीमारी की चपेट में आ जाते है। उपरी आहार की देर से मिलना और उचित मात्रा मे ंनहीं मिलना इसका एक प्रमुख कारण है। किसी भी बच्चे के विकास में क्000 दिन का अत्यधिक महत्व है। इसमें गर्भावस्था के ख्70 दिन और जन्म से ख् साल तक के 7फ्0 दिन शामिल हैं।