RANCHI: रांची का लाल मलूटी के मंदिरों में नई जान फूंक रहा है। उनकी मेहनत की बदौलत मलूटी के बेजान हो रहे मंदिरों में रौनक लौट रही है। दुमका के शिकारीपाड़ा स्थित मलूटी के म्ख् मंदिरों को संवारने का काम श्रीदेव सिंह और उनकी टीम कर रही है। मंदिरों के संरक्षण का काम इंडियन ट्रस्ट फॉर रुरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट(आइटीआरएचडी) कर रहा है। श्रीदेव सिंह इसके प्रोजेक्ट हेड हैं। वे रांची के रहनेवाले हैं और उन्होंने बीआइटी मेसरा से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। वह आइटीआरएचडी के हेरिटेज एंबेसडर भी हैं।

ख्0क्9 तक पूरा होगा कंजरवेशन

श्री सिंह ने बताया कि मलूटी के मंदिरों के कंजरवेशन का काम नवंबर ख्0क्भ् में शुरू हुआ था। अब तक क्ख् मंदिरों के कंजरवेशन का काम पूरा हो चुका है। वहीं पांच पर काम चल रहा है। वर्ष ख्0क्9 तक सभी म्ख् मंदिरों के कंजरवेशन का काम पूरा हो जाएगा। मंदिरों के संरक्षण की अनुमानित लागत म्.7भ् करोड़ रुपए है।

क्या है खासियत

सूर्खी चूने से बने हैं अधिकतर मंदिर

मंदिरों का संरक्षण डॉ आभा नारायण लांबा के निर्देशन में किया जा रहा है, जो मुंबई की मशहूर आर्किटेक्ट हैं। मलूटी के अधिकतर मंदिर सूर्खी चूने से बने हैं, इसलिए इनके कंजरवेशन में भी सूर्खी चूने का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। वैशाली, नालंदा और राजमहल के साथ मलूटी के ही क्म् स्थानीय मजदूर मंदिरों के कंजरवेशन का कार्य कर रहे हैं। मलूटी के अधिकतर मंदिर शिवलिंग हैं।

दीवारों पर रामायण-महाभारत के दृश्य

मलूटी के मंदिर दुमका के शिकारी पाड़ा में हैं। यहां कभी क्08 मंदिर थे पर देखरेख के अभाव में अधिकतर ध्वस्त होते चले गए। ये मंदिर राजा बाज बसंत के वंशजों ने बनवाए थे। इन मंदिरों का निर्माण सन क्7ख्0 से क्8ब्0 के मध्य हुआ था। इन मंदिरों का निर्माण सुप्रसिद्ध चाला रीति से हुआ है। मंदिर छोटे- छोटे लाल सूर्ख ईटों से निर्मित हैं। इनकी ऊंचाई क्भ् फीट से लेकर म्0 फीट तक है। इन मंदिरों की दीवारों पर रामायण और महाभारत के दृश्यों का चित्रांकन बेहद खूबसूरती से किया गया है। इन मंदिरों को संवारने की योजना बिहार के पुरातत्व विभाग ने क्98ब् में ही बनाई थी, पर इसपर अमल नहीं किया जा सका। अब इस दिशा में काम हो रहा है।

.रोचक कहानियां

राजाओं में लगी थी मंदिर बनाने की होड़

मलूटी गांव में इतने सारे मंदिर होने के पीछे एक रोचक कहानी है। यहां के राजा धार्मिक प्रवृत्ति के थे, इसलिए वे महल बनाने की जगह मंदिर बनाना पसंद करते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि राजाओं में अच्छे से अच्छा मंदिर बनवाने की होड़ लग गई। परिणामस्वरूप यहां हर जगह अच्छे से अच्छा मंदिर बन गए और मलूटी गांव मंदिरों के गांव के रूप में जाना जाने लगा। मलूटी के मंदिरों की यह खासियत है कि यह अलग-अलग समूहों में निर्मित हैं। भगवान शिव के मंदिरों के अलावा यहां दुर्गा, काली, धर्मराज, मनसा और विष्णु जैसे देवताओं के मंदिर हैं। यहां मां मौलीक्षा का भी मंदिर है, जिसकी मान्यता जाग्रत शाक्त देवी के रूप में है।

अनाथ किसान थे बाज बसंत

यह गांव सबसे पहले ननकार राजवंश के समय में प्रकाश में आया था। इसके बाद गौर के सुल्तान अलाउददीन हसन शाह क्ब्8भ्-क्भ्ख्भ् ने इस गांव को राजा बाज बसंत राय को इनाम में दे दिया था। राजा बाज बसंत शुरुआत में एक अनाथ किसान थे। उनके नाम के आगे बाज शब्द जुड़ने की भी अनोखी दास्तान है। एक बार सुल्तान अलाउददीन की बेगम का पालतू पक्षी बाज उड़ गया और उसे पकड़ कर गरीब किसान बसंत ने लौटा दिया। बसंत के काम से खुश होकर सुल्तान ने उन्हें मलूटी गांव इनाम में दे दिया और बसंत राजा बाज बसंत के नाम से जाने गए।

कोट

मलूटी के मंदिरों के कंजरवेशन का काम आइटीआरएचडी को दिया गया है। वर्ष ख्0क्9 तक इनके संरक्षण का काम पूरा हो जाएगा। मंदिरों के संरक्षण का काम तेजी से चल रहा है।

-डॉ अमिताभ कुमार, उपनिदेशक पुरातत्व

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मलूटी के मंदिरों का कंजरवेशन कार्य तेजी से चल रहा है। करीब म्.7भ् करोड़ रुपए की लागत से यह काम हो रहा है। मंदिरों के कंजरवेशन का काम पूरा हो जाने के बाद यह जगह एक बेहतरीन टूरिस्ट डेस्टिनेशन के रूप में जानी जाएगी।

-श्रीदेव सिंह, हेरिटेज एंबेसडर, आइटीआरएचडी