गुप्‍त काशी : जो कहलाता है मंदिरों का गांव

बाज बसंत राजवंशों ने करवाया है मंदिरों का निर्माण

इस गांव का राजा कभी एक किसान हुआ करता था। उसके वंशजों ने यहां 108 भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया। ये मंदिर बाज बसंत राजवंशों के काल में बनाए गए थे। शुरूआत में कुल 108 मंदिर थे लेकिन संरक्षण के अभाव में अब सिर्फ़ 72 मंदिर ही रह गए हैं। 1695 ई में राजा बाज बसंत राय के वंशज राजा राम चंद्र ने मलुटी को बसाया था। उन्होंने ही इन मंदिरों का निर्माण 1720 से लेकर 1840 के मध्य कराया था। इन मंदिरों का निर्माण सुप्रसिद्ध चाला रीति से किया गया है। ये छोटे-छोटे लाल सुर्ख ईटों से निर्मित हैं और इनकी ऊंचाई 15 फीट से लेकर 60 फीट तक हैं। इन मंदिरों की दीवारों पर रामायण-महाभारत के दृ़श्यों का चित्रण भी बेहद खूबसूरती से किया गया है।

गुप्‍त काशी : जो कहलाता है मंदिरों का गांव

बिहार पुरातत्व विभाग ने शुरु किया संरक्षण कार्य

मलूटी गांव में इतने सारे मंदिर होने के पीछे एक रोचक कहानी है। यहां के राजा महल बनाने की बजाए मंदिर बनाना पसंद करते थे और राजाओं में अच्छे से अच्छा मंदिर बनाने की होड़-सी लग गई। परिणाम स्वरूप यहां हर जगह खूबसूरत मंदिर ही मंदिर बन गए और यह गांव मंदिर के गांव के रूप में जाना जाने लगा। यहां 74 मंदिर जीर्णावस्था में है। उनमें से 42 मंदिरों के संरक्षण का कार्य पूरा हो चुका है। बिहार के पुरातत्व विभाग ने 1984 में पूरे गांव को पुरातात्विक प्रांगण के रूप में विकसित करने की योजना के तहत मंदिरों का संरक्षण कार्य शुरू किया था। आज पूरा गांव पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है।। लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण पर्यटक यहां रात में नहीं ठहरते।

गुप्‍त काशी : जो कहलाता है मंदिरों का गांव

पशु बली के लिए भी प्रसिद्ध है मलूटी गांव

मलूटी पशुओं की बली के लिए भी जाना जाता है। यहां काली पूजा के दिन एक भैंस और एक भेड़ सहित करीब 100 बकरियों की बली दी जाती है। हालांकि पशु कार्यकर्ता समूह अक्सर यहां पशु बली का विरोध करते रहते हैं। मलूटी के मंदिरों की यह खासियत है कि ये अलग-अलग समूहों में निर्मित हैं। भगवान भोले शंकर के मंदिरों के अतिरिक्त यहां दुर्गा, काली, धर्मराज, मनसा, विष्णु आदि देवी-देवताओं के भी मंदिर हैं। इसके अतिरिक्त यहां मौलिक्षा माता का भी मंदिर है जिनकी मान्यता जाग्रत शाक्त देवी के रूप में है। वर्तमान में यहां सिर्फ़ 74 मंदिर और इतने ही तालाब बचे हैं। मंदिरों के इस गांव को एक ही स्थान पर मन्दिर, मस्ज़िद और गिरजाघर होने का भी सौभाग्य प्राप्त है।

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प्राचीन स्थापत्य कला के दुर्लभ प्रमाण हैं ये मंदिर

मंदिरों की पाषाण मूर्तियां और फलक प्राचीन स्थापत्य कला के अनोखे और दुर्लभ प्रमाण हैं। यहां स्थित देवी मौलिक्षा मंदिर तो अभी भी एक जीवंत शक्तिपीठ माना जाता है। मलूटी का पश्चिम बंगाल की प्रसिद्ध तांत्रिक शक्तिपीठ तारापीठ से सीधा सम्बंध है। कहा जाता है कि वामाखेपा की जीवन लीला मां तारा से जुड़ी थी और उनकी समाधि तारापीठ में है। आज भी वामाखेपा का त्रिशूल मलूटी में स्थापित है। यहां के मंदिरों में रामायण के विभिन्न दृश्य उकेरे हुए हैं। कृष्ण लीलाएं भी चित्रित हैं। एक प्रतिमा ऐसी भी है जिसमें राम-कृष्ण-शंकर और विष्णु को एकाकार दिखाने का अनोखा  प्रयास किया गया है।

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ये है राजा बाज बसंत राजवंश की कहानी

यह गांव सबसे पहले ननकार राजवंश के समय में प्रकाश में आया था। उसके बाद गौर के सुल्तान अलाउद्दीन हसन शाह 1495–1525 ने इस गांव को बाज बसंत रॉय को इनाम में दे दिया था। राजा बाज बसंत शुरुआत में एक अनाथ किसान थे। उनके नाम के आगे बाज शब्द कैसे लगा इसके पीछे एक अनोखी कहानी है। एक बार सुल्तान अलाउद्दीन की बेगम का पालतू पक्षी बाज उड़ गया। बाज को उड़ता देख गरीब किसान बसंत ने उसे पकड़कर रानी को वापस लौटा दिया। बसंत के इस काम से खुश होकर सुल्तान ने उन्हें मलूटी गांव इनाम में दे दिया था। जिसके बाद बसंत किसान से राजा बाज बसंत के नाम से पहचाने जाने लगे।

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