मनमोहन ने मोदी को सौंपी फाइल
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से 27 मई, 2014 को एक मीटिंग के दौरान मनमोहन सिंह ने पीएम मोदी को यह फाइल सौंपी थी। अधिकारी ने यह खुलासा ऐसे वक्त पर किया है जब पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी कश्मीर पर भारत-पाक की सीक्रेट डिप्लोमैसी पर अपनी किताब (Neither a Hawk Nor a Dove) का भारतीय संस्करण रिलीज करने के लिए दिल्ली आए हुए हैं। इस किताब में बताया गया है कि जनरल मुशर्रफ कश्मीर में भारत-पाक का साझा शासन चाहते थे और कश्मीर से सेना हटाने के लिए भी रास्ता निकालने का प्लान बना रहे थे। इस बातचीत में शामिल भारतीय अधिकारी ने बताया कि समझौते के फाइनल ड्राफ्ट 'कंसल्टिव मेकेनिज्म' की बात थी। जम्मू-कश्मीर सरकार व पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के चुने हुए नेता और दोनों देशों के अधिकारियों के जिम्मे यह काम रखा जाना था।

मुशर्रफ का प्रस्ताव खारिज
अधिकारी ने बताया कि 'कंसल्टिव मेकेनिज्म' के जरिए दोनों क्षेत्रों के पर्यटन, धार्मिक मान्यताएं, संस्कृति और व्यापार जैसे सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर ध्यान दिया जाना था। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि भारत ने जनरल मुशर्रफ के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया क्योंकि इससे कश्मीर पर भारत की संप्रभुता खत्म हो जाती। इसके बावजूद, मनमोहन और मुशर्रफ कश्मीर का हल निकालने के लिए बातचीत बढ़ाना चाहते थे। मनमोहन के भरोसेमंद डिप्लोमैट सतिंदर लांबा और मुशर्रफ ने रियाज मुहम्मद खान और तारिक अजीज के बीच काठमांडू और दुबई में करीब 30 दिनों तक 200 घंटे की मीटिंग हुई। जब बातचीत निर्णायक मोड़ पर पहुंचने लगी तो लांबा को बगैर पासपोर्ट और वीजा के भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के जेट से पाकिस्तान के रावलपिंडी भेजा गया ताकि किसी को इसकी खबर न लग सके।

मनमोहन हल चाहते थे

भारतीय अधिकारी ने आगे बताया कि यह तय हो चुका था कि मनमोहन इस मामले का हल चाहते थे। उन्होंने बताया, 'मनमोहन चाहते थे कि समझौते के जरिए दोनों देश अपने-अपने देश के जरूरी मुद्दों की तरफ ज्यादा ध्यान दे पाएंगे और कश्मीर में उनकी ऊर्जा बेवजह बर्बाद नहीं होगी। आलम यह था कि दोनों देशों के बीच जो भी बातचीत हो रही थी, उसका हर दस्तावेज मनमोहन खुद देख रहे थे। इसके आधार पर ही वह लांबा को दिशा-निर्देश दे रहे थे। कैबिनेट में सिर्फ दो ही लोग और थे जिन्हें इस बातचीत की खबर थी। इसके अलावा, शायद तीन अधिकारियों को इस समझौते की बात पता थी।' मनमोहन सिंह को जब ये लगा कि अब ये बातें अपनी कैबिनेट और विपक्ष को बतानी चाहिए, पाकिस्तान में हालात बदले और अंतत: 2007 में मुशर्रफ को हटा दिया गया। उसके बाद 2008 में आसिफ अली जरदारी आए और उन्होंने इस मुद्दे को आगे बढ़ने का प्रयास किया लेकिन जनरल परवेज अशफाक कयानी ने ऐसा होने नहीं दिया।

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