-अपनों से ठुकराए जाने के बाद दूसरों ने भरे खुशी के रंग

-अपने पास बच्चे होने के बाद भी दूसरी की जिंदगी रंगीन करने के लिए बढ़े कदम

GORAKHPUR: जिंदगी खुद को खुशी देने का नाम नहीं, बल्कि बात तो तब बनेगी, जब इससे दूसरों की जिंदगी भी रोशन हो। उनके पल-पल में खुशियों के रंग भरे जाएं, जिससे दूसरों की तरह वह भी हंस खेल सके। यूं तो शहर में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो अलग-अलग तरीकों से दूसरों के फ्यूचर को रोशनी देने में लगे हैं, लेकिन इस भीड़ में कुछ खास लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने न सिर्फ अपने बारे में सोचा है, बल्कि वह दूसरों के लिए भी वैसे ही सोच रहे हैं। यह वह लोग हैं जो एडॉप्टशन सेंटर्स तक पहुंचे और उन्होंने ऐसे लावारिसों को भी नई जिंदगी दी, जो उसकी आस छोड़ चुके थे।

दास ने जिंदगी बदल दी

ऐसे ही भीड़ में शामिल हैं दास। अपने पास कोई सहारा न होने की वजह से उन्होंने पहले तो एक लड़की अडॉप्ट की। खिलाया-पिलाया, पढ़ाया और उसे जिंदगी में किसी लायक बनाया। मगर जब यह बच्ची बड़ी हो गई, तो उन्होंने फिर कुछ नन्हीं जिंदगी के चेहरों पर मुस्कान लाने का फैसला किया। सिविल लाइंस में कूड़े के ढेर पर अपनों की सताई दो नन्हीं जानों को उन्होंने नई जिंदगी देने की पहल की। सरकार की सारी प्रॉसेस पूरी कर उन्होंने इस नन्हीं ट्विंस जोड़ी का एडॉप्शन किया और दास दंपती अब उनकी जिंदगी संवार रहे हैं।

रॉबर्ट ने भी दी जिंदगी

जिस तरह होली में खुशियों के रंगों से जिंदगी मुस्कुराती है, वैसे ही रॉबर्ट ने भी नन्हीं परी की जिंदगी बदल दी। माता-पिता के सितम का शिकार बनी नन्हीं गुडि़या को पेरेंट्स ने मंदिर में छोड़ दिया, जिसके बाद उसका कोई सहारा नहीं बचा। किसी ने एशियन सहयोगी संस्था के एडॉप्शन सेंटर पर उन्हें पहुंचाया। इसके बाद यह नन्हीं जान के अच्छे दिन आए और 2015 में रॉबर्ट दंपती ने उन्हें अपनाया। पहले से पास बेटा होने के बाद उन्होंने इस मासूम लावारिस को सहारा दिया और उसके लालन पालन में लग गए हैं।

उम्मीद की किरन अभी छटी नहीं

शहर में कई लोग ऐसे हैं, जो अपने पास सहारा होने के बाद भी दूसरों की जिंदगी को रोशन कर रहे हैं। मगर आगे भी कोई ऐसा हो सकता है, उसकी उम्मीद भी अभी जिंदा है। एशियन सहयोगी संस्थान के विकास की मानें तो अभी भी अपनों की सताई नन्हीं मासूमों का एडॉप्शन करने के लिए लोगों की लाइन लगी है। गोरखपुर और आसपास के करीब 8 लोगों ने एडॉप्शन के लिए अप्लाई कर रखा है। इसमें तीन-चार लोग ऐसे भी हैं, जिनके पास पहले से ही अपने बच्चे मौजूद हैं, लेकिन यह दूसरों की जिंदगी में रंग भरने के लिए यह पहल कर रहे हैं।

वर्जन

गोरखपुर में काफी तादाद में ऐसे लोगों ने एडॉप्शन किया है, जिनके पास पहले से बच्चे हैं। वह चाहते हैं कि ऐसे मासूमों की जिंदगी भी बेहतर हो सके और उन्हें दर-दर की ठोकरें न खानी पड़े।

- ऊषा दास, एडमिन डायरेक्टर, एशियन सहयोगी संस्थान