अधिकतर ग्रह विज्ञानियों के अनुसार ऐसे सबूत है कि कभी यह लाल ग्रह रहने योग्य था. एक ऐसी दुनिया जिसमें भारी वायुमंडल था और इसकी सतह पर पानी बहा करता था.

लेकिन माना जाता है कि करीब चार अरब वर्ष वहले मंगल का चुंबकीय क्षेत्र खत्म हो गया. संभवतः एक भारी ऐस्टेरॉयड (क्षुद्रग्रह) की टक्कर से ऐसा हुआ.

यह चुंबकीय क्षेत्र सूर्य की हानिकारक सौर हवाओं से ग्रह की रक्षा करता था. लेकिन इसके बिना मंगल का वायुमंडल धीरे-धीरे साफ़ हो गया. सैद्धांतिक रूप से तो यही कहा जाता है.

धरती पर हमारा चुंबकीय क्षेत्र सौर हवाओं को पृथ्वी के दूर रखता है और हमारे वायुमंडल की रक्षा करता है. नासा का मावेन अंतरिक्षयान मंगल के चक्कर लगाएगा और इस सिद्धांत के समर्थन में सबूत जुटाएगा.

ख़ासतौर पर यह उस दर की जांच करेगा जिससे मंगल का अब बेहद कमज़ोर वायुमंडल अंतरिक्ष में विलीन हो रहा है.

अनिश्चितताएं

एक बार इस दर का पता चल जाए तो इससे वैज्ञानिक यह हिसाब लगा सकेंगे कि कितने समय पहले यह होना शुरू हुआ था और मंगल के वायुमंडल को पहले जैसा फिर से बना सकेंगे.

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, की मुलार्ड स्पेस साइंस लैबोरेट्री के प्रोफ़ेसर एंड्र्यू कोएट्स के अनुसार मावेन निश्चित रूप से एक टाइम मशीन है.

उन्होंने बीबीसी को बताया, "वायुमंडल ख़त्म होने की दर को नापना इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे ही मंगल को समय में वापस जाते देखा जा सकेगा." यह अभियान आसान लगता है, लेकिन है नहीं.

मंगल के पुराने वायुमंडल को फिर से बनाने के लिए वैज्ञानिकों को इसके संभावित दबाव और संयोजन का हिसाब लगाना होगा. उनकी योजना है कि वह इसका पता विभिन्न घटकों जैसे कि कार्बन डाइ ऑक्साइड, पानी और नाइट्रोजन के रिसने की तात्कालिक मात्रा को मापकर लगाएंगे.

वायुमंडल के रिसना अलग-अलग समय पर अलग हो सकता है जो कि सूर्य की स्वाभाविक क्रियाओं पर निर्भर करता है.

इससे पहले के अभियानों में भी माप लिए गए थे और फ़िलहाल अनुमान यह है कि करीब 10 टन गैस हर रोज़ रिस रही है. लेकिन इसमें अनिश्चितताएं बड़ी मात्रा में हैं.

ऊषाकाल

मावेन इस मामले में अनोखा है कि यह इस विशेष ज़रूरत के लिए ही तैयार किया गया है और इसलिए इसके पास वे सभी उपकरण हैं जो सटीक वायुमंडल रिसाव को मापने के लिए ज़रूरी हैं.

प्रोफ़ेसर कोएट्स कहते हैं, "पिछले अभियानों से हम मोटे तौर पर जानते हैं कि कितनी मात्रा में पदार्थ रिस रहा है- लेकिन इसमें अंतर बहुत ज़्यादा है."

उन्होंने कहा, "उनमें 10 या 100 का अंतर हो सकता है. यह इस पर निर्भर करता है कि आप किस अभियान के आंकड़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं. सभी उपकरणों को मावेन पर रखने का मतलब यह है कि हम कहीं अधिक सटीकता से यह काम कर पाएंगे."

मंगल पर स्थानीय रूप से कुछ चुंबकीय क्षेत्र हैं जिन्हें ग्रह के संपूर्ण क्षेत्र के अवशेष माना जाता है. इसका परिणाम यह है कि जब सूर्य की किरणें ग्रह पर क़हर बरपाती हैं तो इसमें कमज़ोर ऊषाकाल नज़र आते हैं.

इसके सबूत सबसे पहले यूरोपियन स्पेस एजेंसी के मार्स एक्सप्रेस मिशन को 2005 में मिले थे. उम्मीद की जा रही है कि मावेन इन ऊषाकालों की पहली तस्वीरें लेने में कामयाब रहेगा.