- छठ पर भी नहीं मिला मैथिली एकेडमी के स्टाफ्स को वेतन

- मैथिली के स्कॉलर को होती है परेशानी

- सालों से बंद है पत्रिका का प्रकाशन

- जो किताबें हैं उसका रख-रखाव भी ठीक नहीं

PATNA : रामानंद झा मैथिली एकेडमी में निजी सहायक हैं। कहते हैं कि छठ जैसे पर्व पर भी हमलोगों को पैसा नहीं दिया गया है। पर्व भी उधार लेकर मना रहे हैं। यहां काम करते करत भुखमरी के शिकार हो गये हैं। बाल-बच्चों की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पा रही है। यह हाल सिर्फ मैथिली अकादमी के कर्मियों की नहीं है। बिहार के सारे भाषाई एकेडमी की यही स्थिति है।

डाउनफॉल के मोड में अकादमी

मैथिली के एक साहित्यकार कहते हैं कि पहले एकेडमी की एक पत्रिका आती थी। नाम था मैथिली अकादमी पत्रिका। इस पत्रिका में छपना मैथिली के लोगों के लिये गर्व की बात हुआ करती थी। बहुत पहले छपने पर लेखक को 7भ् रुपए मानदेय भी दिया जाता था। लेखक कहते हैं कि ये राशि कोई मायने नहीं रखता है लेकिन सात साल पहले मेरी एक कहानी छपी थी। आजतक उसका पचहत्तर रुपया नहीं आया है। मालूम हो कि कई सालों से यह पत्रिका निकल ही नहीं रही है। कई सालों से नयी पुस्तक का प्रकाशन तक नहीं हुआ है। हां कुछ किताबें जो यूपीएससी या बीपीएससी के सिलेबस में हैं उसका रीप्रिंट जरूर हुआ है। मैथिली के जानकारों की मानें तो पहले पटना पुस्तक मेला में मैथिली एकेडमी का स्टॉल भी लगा करता था। लेकिन पिछले दो तीन सालों से स्टॉल भी नहीं लगता है। मैथिली एकेडमी की तरफ से मैथिली में बेहतर काम करने वालों को विद्यापति पुरस्कार भी दिया जाता था। यह पुरस्कार पिछले लगभग बीस सालों से नहीं दिया जा रहा है।

स्कॉलर को नहीं मिल पा रही किताबें

कमलाकांत झा ने अध्यक्ष रहते हुए मिथिला विवि में मैथिली एकेडमी पुस्तक विक्रय केंद्र की स्थापना करवायी थी। स्टूडेंट यहां से अपने सिलेबस और अन्य किताबें खरीदते थे। एकेडमी के एक कर्मी ने बताया कि ख्0क्फ् के अक्टूबर में केंद्र से किताब की मांग की गयी थी, लेकिन आज तक हमलोग भेज नहीं सके हैं। झारखंड के विवि में भी इस एकेडमी की पुस्तकों की पढ़ाई होती है। वहां के स्टूडेंट को सिर्फ किताब लेने यहां आना पड़ता है और यह जरूरी नहीं है कि जो किताब वह लेने आया है वह उसे मिल ही जाए। फिलहाल स्थिति यह है कि रखरखाव के अभाव में लाखों रुपये मूल्य की किताबें सड़ रही हैं।

उपेक्षित महसूस करते हैं कर्मचारी

एकेडमी के कई कर्मचारियों ने कहा कि ऐसा नहीं है कि हमलोग काम नहीं करना चाहते हैं। हमलोगों से कोई काम लेने वाला ही नहीं है। आते हैं और टाइम पास कर के चले जाते हैं। एक कर्मचारी बताते हैं कि जब वे किसी काम की फाइल लेकर विभाग में जाते हैं तो कहा जाता है कि अभी बहुत वर्क लोड है आप का काम बाद में होगा। अधिकारी एकेडमी को कितनी सिरियसली लेते हैं इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि पांच जून क्ब् को अधिसूचना जारी होती है कि मैथिली और संस्कृत एकेडमी का अध्यक्ष सह निदेशक शिक्षा विभाग के डिप्टी डायरेक्टर अनुप कुमार सिन्हा को नियुक्त किया जाता है। लेकिन वे ज्वाइन करते हैं सेप्टेम्बर ख्0क्ब् को। कर्मियों ने बताया कि वे आजतक दफ्तर भी नहीं आये हैं कि आखिर एकेडमी का दफ्तर है कैसा, वहां होता क्या-क्या है।

मैथिली एकेडमी की बदहाली को लेकर मैथिली के बुद्धिजीवियों को भी कटघरे में खड़ा करने की जरूरत है। वे कभी प्रयास ही नहीं किये कि इसका भला कैसे होगा। सरकार की उपेक्षा की शिकार तो है ही यह एकेडमी। न अध्यक्ष है न डायरेक्टर, काम खाक होगा।

- अशोक, कथाकार

एक्टिविटी लेस संस्था है मैथिली एकेडमी। कुछ काम कमला बाबू के समय हुआ था उसके बाद से कुछ नहीं हुआ है। कोई मॉनिटरिंग करने वाला है नहीं उसे। इस सब की वजह से स्कॉलर को परेशानी होती है, वहां के स्टाफ भी उसे कोऑपरेट नहीं करते हैं।

- जोगानंद हीरा, एक्टिविस्ट और मैथिली के जानकार

आपने पूछा तो ध्यान आया कि मैथिली एकेडमी नाम की कोई चीज है बिहार में। अब इस संस्था से कोई उम्मीद ही नहीं बच गयी है। बिहार की आधी आबादी की भाषा है मैथिली और उसकी एकेडमी की ऐसी दुर्दशा। मेरे हिसाब से बंद कर देना चाहिए इसे।

- अमित आजाद, मैथिली साहित्यकार