RANCHI : इस दिवाली शहर में बम-पटाखों का सबसे ज्यादा शोर अल्बर्ट एक्का चौक पर रिकॉर्ड किया गया, जबकि ध्वनि प्रदूषण के मामले में लालपुर दूसरे स्थान पर रहा। हालांकि, सबसे कम पटाखों का शोर रिम्स परिसर में रिकॉर्ड किया गया। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से रविवार को दिवाली के मौके पर शहर के पांच इलाकों में शाम छह से रात 12 बजे तक ध्वनि प्रदूषण का स्तर नापा गया। इस दौरान अल्बर्ट एक्का चौक के पास 76.8 डेसीबल ध्वनि प्रदूषण रहा, जो आम दिनों 55 डेसीबल से काफी ज्यादा था। लालपुर में शोर का स्तर 74.6 दर्ज डेसीबल रिकॉर्ड किया गया। इस तरह इस दिवाली भले ही चाइनीज पटाखे कम फटे हों, पर देसी आतिशबाजी का ध्वनि प्रदूषण बढ़ाने में अहम किरदार रहा।

साइलेंस जोन भी प्रभावित

दिवाली के दिन आतिशबाजी ने ध्वनि प्रदूषण के नए रिकॉर्ड दर्ज किए। पटाखों का शोर कुछ इस कदर हावी था कि साइलेंस जोन घोषित किए गए हाईकोर्ट व रिम्स भी इससे अछूता नहीं रहा। इन दोनों इलाकों में शाम छह से रात 12 बजे तक 60 डेसीबल रहा, जो आम दिनों की तुलना में काफी ज्यादा थी। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ओर से ध्वनि प्रदूषण की मात्रा को लेकर जारी आंकड़ों के मुताबिक, दिवाली के दिन यह आम दिनों की तुलना में काफी ज्यादा रहा।

पिछले सालों की तुलना में कम 'शोर'

पॉल्यूशन कंट्रोल डिपार्टमेंट के पिछले कुछ सालों के दौरान दिवाली के दिन ध्वनि प्रदूषण के स्तर के जो रिकॉर्ड दर्ज किए गए हैं, उसके मुताबिक पिछले कुछ सालों की तुलना में इस साल आतिशबाजी का शोर अपेक्षाकृत कम रहा। इसकी वजह सरकार की ओर से 125 डेसीबल से अधिक आवाज वाले पटाखों पर बैन व कई संगठनों द्वारा चाइनीज पटाखों का बहिष्कार करना रहा।

शहर के पांच इलाकों में ध्वनि प्रदूषण का स्तर (बॉक्स)

स्थान मैक्सिमम मिनिमम एवरेज (आंकड़े डेसीबल में)

अल्बर्ट एक्का चौक(इंडस्ट्रीयल) 76.8 75.8 71.2

हाईकोर्ट (साइलेंस जोन) 62.2 47.6 56.2

लालपुर (कॉमिर्शियल) 74.6 60.5 69.4

रिम्स(साइलेंस जोन) 62.1 48.6 55.3

श्यामली कॉलोनी(रेसिडेंसियल) 67.3 52.7 59.1

कान-नाक-गले में हो सकता है इंफेक्शन

डॉ चंद्रकांती बिरुआ के मुताबिक, पटाखों की तेज आवाज से कान-नाक-गले के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। पटाखों के शोर से कान का पर्दा फट सकता है। खासकर दिवाली के दिन आतिशबाजी की वजह से कान-नाक-गले के संक्रमण के कई मामले सामने आते हैं। पटाखों के धुएं से नाक तथा गले में एलर्जी हो जाती है। ऐसे में जरूरी है कि तेज आवाज वाले पटाखों से दूरी बनाई जाए।

सुनने की शक्ति हो सकती है क्षीण

दिवाली के दिन पटाखों की वजह से ध्वनि प्रदूषण आम दिनों की तुलना में काफी ज्यादा होता है। डॉ चंद्रकांति बिरुआ के मुताबिक, दिवाली के दिन ज्यादा ध्वनि प्रदूषण के पचास ऐसे मामले आते हैं, जिसमें बच्चों तथा बुजुर्गो की सुनने के शक्ति पर असर पड़ता है। ध्वनि और वायु प्रदूषण का नुकसान सबसे अधिक बच्चों और बुजुर्गो पर पड़ता है। 10 साल से कम उम्र के बच्चे और 60 साल से अधिक उम्र के बच्चों को साउंड पॉल्यूशन से सबसे ज्यादा नुकसान होता है।