- आई नेक्स्ट की खबर का हुआ असर, खून की दलाली करने वालों के खिलाफ जांच के आदेश

- हॉस्पिटल में जांच करने पहुंची एफएसडीए की टीम, मिलीं गंभीर अनियमितताएं

LUCKNOW: खून के सौदागरों पर आई नेक्स्ट की खबर के बाद एफएसडीए का शिकंजा कस गया। थर्सडे मॉर्निग पूरा खुलासा पढ़ने के बाद जहां जिम्मेदारों ने जांच कमेटी गठित की। वहीं, विकास नगर स्थित मेडिसन ब्लड बैंक में दलालों से लेकर डॉक्टर और एमडी तक के होश उड़ गए। फ्राइडे को मामले की पूरी रिपोर्ट विभाग को सौंपी जाएगी।

कुछ यूं हुई सुबह

आई नेक्स्ट में मेडिसन ब्लड बैंक में 'खून का काला कारोबार' खबर छपने के बाद संज्ञान लेते हुए एफएसडीए के ड्रग कंट्रोलर एके मल्होत्रा ने जांच कमेटी गठित कर दी। उन्होंने जांच का जिम्मा ड्रग इंस्पेक्टर संजय कुमार और शशि मोहन गुप्ता को असिस्टेंट कमिश्नर एसके पंत के सुपरविजन में सौंपते हुए जल्द से जल्द पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी।

हड़बड़ा गए सभी

इसके बाद जांच टीम लगभग साढ़े तीन बजे ब्लड बैंक पहुंची। एफएसडीए के अधिकारियों को अपने कैम्पस में देख रिसेप्शन से लेकर डॉक्टर्स तक में हड़कंप मच गया। उन्हें एसी में पसीने छूटने लगे और चेहरे पर बेचैनी झलकने लगी। जांच की यह कार्रवाई देर रात लगभग आठ बजे तक की गई।

एसी में छूटा पसीना

एफएसडीए की टीम ने जांच की शुरुआत हॉस्पिटल के डायरेक्टर्स और पैथोलॉजिस्ट से की। एफएसडीए की टीम के कारण ब्लड बैंक कर्मचारियों को एसी में भी पसीना छूटता नजर आया। कर्मचारी फाइलें निकालकर रिकॉ‌र्ड्स दिखाते रहे। एफएसडीए की टीम ने मौके पर ही आई नेक्स्ट में छपी खबर के आधार पर डोनर्स के भी बयान दर्ज कराए। दलाल राहुल ने डोनर का नाम भी फॉर्म में गलत ही लिखा था और साइन भी खुद किए थे। इस कारण टीम ने डोनर से रिटेन में बयान लिया। कितने रुपए लिए और किसने दिए यह सारी बात रिटेन में ली गई। वहीं, स्टिंग में उजागर हुआ दलाल सूरज और राहुल फरार हो गए हैं। इसलिए उनका बयान नहीं लिया जा सका।

कर्मचारियों ने किया इंकार

जिस कथित सूरज ने एक दिन पहले दलाल के साथ आए डोनर को क्ख्00 रुपए दिए थे, उसे अस्पताल प्रशासन ने अपना कर्मचारी ही मानने से इनकार कर दिया। इसके लिए जांच टीम ने सैलरी रिकॉ‌र्ड्स भी खंगाले। इसमें सूरज का नाम ही नहीं था। सूत्रों की माने तो सूरज नाम का कर्मचारी इसी ब्लड बैंक में था लेकिन रिकॉ‌र्ड्स में उसका नाम कुछ और था और दलालों से किसी और नाम से मिलता था।

नहीं था जवाब

जिस कर्मचारी को हॉस्पिटल प्रशासन अपना कर्मचारी मानने से इंकार करता रहा वह ब्लड बैंक में किस आधार पर रुपये का लेनदेन करता था, इस बारे में प्रशासन के पास कोई ठोस जवाब नहीं था। अस्पताल प्रशासन ने आई नेक्स्ट में छपी फोटो ब्लड बैंक की होने से भी मना किया जबकि आईनेक्स्ट के पास मौजूद वीडियो रिकॉ‌र्ड्स में साफ दिख रहा है कि वह ब्लड बैंक का मुख्य कर्ताधर्ता था। ब्लड बैंक में सीसीटीवी भी लगे थे लेकिन जांच टीम ने इस कर्मचारी के ब्लड बैंक में आने के लिए फुटेज को चेक करना भी उचित नहीं समझा।

ब्लड बैग में भी खामियां

एफएसडीए की टीम ने जब ब्लड बैग की खरीद और सप्लाई से रिलेटेड रिकॉर्ड खंगाले तो पाया कि कोई प्रॉपर रिकॉर्ड है ही नहीं। जितने बैग मंगाए गए उतनी सप्लाई ही नहीं हो रहे थी। टीम ने ब्लड बैंक के ओपेन होने की तारीख से लेकर अब तक सभी रिकॉ‌र्ड्स चेक किए। रखरखाव और डोनर व रिसीवर के कुछ रिकॉ‌र्ड्स अधिकारी अपने साथ ले गए।

पिछले साल भी जारी हुई थी नोटिस

मेडिसन ब्लड बैंक का लाइसेंस ख्0क्फ् में जारी किया गया था। उसके बाद ख्0क्ब् में ही इंसपेक्शन के दौरान गड़बडि़यां मिलने पर ब्लडबैंक को नोटिस भी एफएसडीए की टीम ने नोटिस जारी की थी। ब्लड बैग्स में डेट ही गलत निकली थी। जो ब्लड एक माह बाद एक्सपायर हो जाता है उसमें सालभर बाद की डेट पड़ी हुई थी। नोटिस का ब्लड बैंक पर कोई असर नहीं हुआ और ब्लड का काला कारोबार जारी रहा।

टीम जांच कर रही है। मौके पर अनियमितताएं मिली हैं। पूरी जांच रिपोर्ट मिलने के बाद ही मामले में कुछ कहा जा सकता है।

एके मल्होत्रा, ड्रंग लाइसेंसिंग एंड कंट्रोलिंग अथॉरिटी, एफएसडीए

अखबार में जिन लोगों की तस्वीर है वे कर्मचारी हमारी ब्लड बैंक के नहीं है। हमारे स्टाफ या हॉस्पिटल की कोई गलती नहीं है। हम जांच में पूरा सहयोग करेंगे।

सना इकबाल, ओनर, मेडिसन हॉस्पिटल एंड ब्लड बैंक