- सीलिंग प्राइस से काफी अधिक वसूल रहीं हैं कंपनियां

- एनपीपीए को मिली शिकायत, छापामार जांच के आदेश

544 दवाओं के नमूने यूपी में लिए

100 से ज्यादा में एमआरपी अधिक

LUCKNOW: जिनपर दर्द कम करने की जिम्मेदारी है, वही पीड़ा बढ़ा रहे हैं। दरअसल, हम बात कर रहे हैं दवा कंपनियों की। नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) से पहले ही लागत से 100 से 200 गुना अधिक तक रेट तय होने के बावजूद भी दवा कंपनियां मरीजों को लूटने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं। एनपीपीए के ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर में दिए सीलिंग प्राइस (जो दाम एनपीए ने तय किये हैं.) से भी काफी अधिक एमआरपी पर खुलेआम दवाएं बेची जा रही हैं। एनपीपीए ने सभी राज्यों को दवा कंपनियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं। इसके बाद यूपी एफएसडीए ने 13 जिलों में छापे मारकर 544 दवाओं के सैंपल कलेक्ट किए, तो पता चला कि ज्यादातर बड़ी कंपनियां सीलिंग प्राइस से काफी अधिक दामों पर दवाएं बेच रही हैं।

13 जिलों में रेड के बाद सच उजागर

एनपीपीए के चेयरमैन भूपेंद्र सिंह 30 अप्रैल को यूपी के दौरे पर थे और उन्होंने फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के प्रमुख सचिव हेमंत राव और अन्य अधिकारियों संग बैठक कर सैंपलिंग और जांच के निर्देश दिए। अपने ऑर्डर में उन्होंने कहा है कि ड्रग इंस्पेक्टर अभी तक दवाओं की गुणवत्ता और अन्य मानकों पर जांच करते हैं। इसके साथ ही सीलिंग प्राइस की भी अब जांच करें। इसके बाद एफएसडीए की टीमों ने 2 व 3 मई को प्रदेश के 13 जिलों में छापे मारकर 544 दवाओं के नमूने एकत्र किए। जिलों से आ रही रिपोर्ट में से अब तक 50 से अधिक जरूरी दवाओं के सीलिंग प्राइस से भी अधिक दामों पर बेचने की बात निकली है। दवाओं के ये सैंपल लखनऊ, कानपुर, बरेली, अलीगढ़, आगरा, गोरखपुर, वाराणसी, फैजाबाद, झांसी, मुरादाबाद, सहारनपुर, आजमगढ़ से कलेक्ट किए गए थे।

नामी कंपनियां लूट में शामिल

दवाओं के इस काले कारोबार में नामी ब्रांड भी शामिल हैं। एफएसडीए के सूत्रों के मुताबिक, कैंसर की कुछ दवाएं जो मार्केट में 1300 से 1400 में मिलनी चाहिए वे 2500 से 2800 रुपए तक में बेची जानी चाहिए। एफएसडीए रिपोर्ट तैयार कर अब एनपीपीए को भेजेगा। जिस पर एनपीपीए सख्त निर्णय ले सकता है और दवा कंपनियों से अधिक रकम की वसूली भी हो सकती है।

एनपीपीए ने तय किए रेट

आवश्यक दवाओं तक आम आदमी की पहुंच हो इसके लिए एनपीए आवश्यक दवाओं के रेट तय करता है। जिनमें कैंसर, हार्ट, डायबिटीज से संबंधित दवाएं, एंटीबायोटिक और अन्य सामान्य दवाएं हैं। एनपीपीए दवाओं के साल्ट की अधिकतम कीमत तय करता है। उससे अधिक दामों पर देश में दवाएं नहीं बेची जा सकती। लेकिन कंपनियां एनपीपीए को ठेंगा दिखाते हुए बड़े स्तर पर मरीजों को लूट रही है।

ऐसे तय होती है एमआरपी

एनपीपीए बड़ी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों की दवाओं के रेट का एवरेज निकालता है और उसी को एमआरपी तय कर देता है। किसी एक दवा के जिन निर्माताओं का टर्नओवर एक परसेंट तक होता है उन सभी निर्माताओं की दरों का औसत निकाल कर उसी को अधिकतम सीलिंग प्राइस निर्धारित कर दिया जाता है। मसलन किसी एक दवा का दाम एक कंपनी 100, दूसरी 120, तीसरी 125, चौथी 115, और पांचवी कंपनी 110 रखती है तो एनपीपीए इनका औसत निकाल कर उस एक दवा का एमआरपी 114 तय कर देता है। भले ही इन कंपनियों अपने रेट 100 गुने रखे हों या 500 गुने। इससे कोई मतलब नहीं कि उस दवा की लागत कितनी थी। जबकि 2013 से पहले दवाओं के रेट कंपनियों की लागत से अधिकतम 100 परसेंट मार्जिन देकर तय किए जाते थे।

कोई भी कर सकता है शिकायत

एफएसडीए के ड्रग कंट्रोलर एके मल्होत्रा ने बताया कि ड्रग प्राइस कंट्रोल आर्डर के रेट्स से अधिक दामों पर दवाएं नहीं बेची जा सकती। जिसकी जानकारी एनपीपीए की वेबसाइट द्धह्लह्लश्च://ठ्ठश्चश्चड्डद्बठ्ठस्त्रद्बड्ड.ठ्ठद्बष्.द्बठ्ठ/ पर दी गई है। कोई भी दवाओं के रेट चेक कर सकता है और अधिक मिलने पर सीधे शिकायत कर सकता है। जिस पर एनपीपीए नियमानुसार कंपनी से रिकवरी करेगा।

प्रदेश भर में एमआरपी की जांच के लिए रेड किए थे। अब तक बड़ी संख्या में दवाओं के रेट अधिक प्रिंट होने की जानकारी मिली है, फिलहाल जांच की जा रही है।

-एके मल्होत्रा, ड्रग कंट्रोलर, एफएसडीए

रेड में मिला गोलमाल

दवा तय प्राइस रैपर पर एमआरपी

वोवरान 1.72 19.47

हिस्टैक 1.66 33

इंटेक्साजेल 217 257

डिक्सी 23.54 39

सेवफॉक्स 2.21 69

अमीकासिन 16.18 35.50