-विपक्ष के साथ-साथ सत्तापक्ष ने भी विधेयक में संशोधन के पक्ष में दी दलील

-स्पीकर ने विधेयक को प्रवर समिति में भेजने का दिया नियमन, समिति 30 दिनों में देगी रिपोर्ट

रांची : चिकित्सकों और चिकित्सा संस्थान के संरक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा लाया गया झारखंड चिकित्सा सेवा से संबंद्ध व्यक्तियों, चिकित्सा सेवा संस्थान (¨हसा एवं संपत्ति नुकसान निवारण) विधेयक एक बार फिर लटक गया है। शुक्रवार को विधानसभा में पेश बिल में किए गए प्रावधानों पर सदस्यों ने एक स्वर में आपत्ति जताते हुए इसे प्रवर समिति के सुपुर्द करने की वकालत की। विपक्ष के साथ-साथ सत्तापक्ष के सदस्यों ने भी इसका समर्थन किया। सदस्यों की आपत्ति को देखते हुए स्पीकर दिनेश उरांव ने इसे प्रवर समिति को सुपुर्द करने का नियमन दिया। समिति 30 दिनों में अपना सुझाव देगी। बता दें कि इससे पूर्व वर्ष-2014 में भी मेडिकल प्रोटेक्शन बिल लाया गया था जो अंजाम तक नहीं पहुंच पाया।

मरीजों की सुविधा पर चर्चा

विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, झामुमो विधायक रवींद्र महतो और मासस विधायक अरूप चटर्जी ने बिल में संशोधन का प्रस्ताव पेश करते हुए चिकित्सकों के साथ-साथ मरीजों को भी सुलभ चिकित्सा मुहैया करने और उनके संरक्षण की बात कही। जिसका समर्थन सत्तारूढ़ दल के मुख्य सचेतक राधाकृष्ण किशोर, भाजपा विधायक बिरंची नारायण, झामुमो विधायक कुणाल षाडंगी, भाजपा विधायक अशोक कुमार, ढुलू महतो, राम कुमार पाहन, हरेकृष्ण सिंह व मनीष जायसवाल ने भी किया। विधायकों ने एक स्वर में बिल की खामियों को दुरुस्त करने की वकालत करते हुए इसे प्रवर समिति के सुपुर्द करने को कहा। सिर्फ भाजपा विधायक जीतू चरण राम ने विधेयक के समर्थन में अपने तर्क दिए। सरकार की ओर से स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने विधेयक पर स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की। कहा, यह कानून बेहतर चिकित्सा व्यवस्था के लिए लाया जा रहा है। भारत के 18 राज्यों में इससे जुड़ा कानून है। यह कानून राज्य में चिकित्सकों की कमी को भी दूर करेगा। हालांकि मंत्री के जवाब से सदस्य संतुष्ट नहीं हुए। स्पीकर ने चर्चा को विराम देते हुए कहा कि कल्याणकारी राज्य के तौर पर पहले उपभोक्ता के हितों को देखना होगा। उन्होंने इसे प्रवर समिति के हवाले करने का नियमन देते हुए कहा कि 30 दिनों में समिति से रिपोर्ट देने को कहा।

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किसने क्या कहा

-¨हसा व संपत्ति की क्षति रोकने के लिए विधेयक लाया जा रहा है। लेकिन यह स्थिति क्यों पैदा हो रही है यह भी देखा जाना चाहिए। मरीजों को सुलभ चिकित्सा मिले, चिकित्सक उपलब्ध होने चाहिए। इस संदर्भ में भी नियम होना चाहिए। विधेयक को प्रवर समिति को सुपुर्द किया जाए।

-आलमगीर आलम, नेता कांग्रेस विधायक दल

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विधेयक में समूह, संगठन एवं नेता पर कार्रवाई की बात कही गई है। क्या कोई राजनीतिक नेता आम जनता के हित में खामियों को उजागर न करे? सिर्फ एक तबके के लिए बिल लाया जा रहा है। फिर तो प्रखंड विकास अधिकारी, अंचल अधिकारी, तकनीकी अधिकारी, इंजीनियर और हमारी ओर से भी मांग उठेगी। कोई भी किसी पर भी ¨हसक कार्रवाई नहीं कर सकता। आइपीसी में इस बारे में प्रावधान है।

-राधाकृष्ण किशोर, मुख्य सचेतक सत्तारूढ़ दल

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बिल के कुछ प्रावधान अच्छे हैं लेकिन चिकित्सक दवा के नाम पर मनमानी करते हैं। 100 की जगह 500 रुपये की दवा लिखी जाती है। इन खामियों पर भी चर्चा की जानी चाहिए।

-बिरंची नारायण, भाजपा विधायक

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किसी भी सूरत में डेड बॉडी को होल्ड नहीं किया जाना चाहिए। चिकित्सकों को जेनरिक मेडिसिन लिखनी चाहिए। अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की हर समय मौजूदगी रहनी चाहिए।

-कुणाल षांडगी, झामुमो विधायक

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विधेयक में तीन साल की सजा एवं 50 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है। यह भी कहा गया कि है कि क्षतिपूर्ति के लिए दुगनी राशि वसूली जाएगी। उपायुक्तों को यह पावर दी गई है कि वे क्षतिपूर्ति की दुगनी राशि वसूलने के लिए 30 दिनों का समय देंगे और इसके बाद नीलामी कर रिकवरी करेंगे। क्या हम सिर्फ डाक्टरों का हित ही देखेंगे।

-अरूप चटर्जी, मासस विधायक

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प्रोटेक्शन मरीज को मिलना चाहिए, न कि डाक्टर को। बिल को प्रवर समिति के सुपुर्द किया जाना चाहिए।

-अशोक कुमार, भाजपा विधायक

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प्राइवेट डाक्टर मरीजों से एक-एक हजार तक फीस वसूल रहे हैं। दो दिन बाद दिखाने जाओ तो दोबारा फीस भरनी पड़ती है। इस बिल में सामान्य मरीजों के हितों का भी प्रावधान होना चाहिए। डाक्टरों की फीस निर्धारित की जानी चाहिए।

-मनीष जायसवाल, भाजपा विधायक

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ड्यूटी के दौरान डाक्टर अनुपस्थित रहते हैं। डाक्टरों के न रहने पर कार्रवाई होने का प्रावधान होना चाहिए।

-राम कुमार पाहन, भाजपा विधायक