'खुशी है सबको कि ऑपरेशन में खूब नश्तर ये चल रहा है,

मगर किसी को खबर नहीं है मरीज का दम निकल रहा है.'

किसी शायर की ये लाइनें हैलट हॉस्पिटल पर एकदम सटीक बैठती हैं। सुबह ओपीडी के कमरे में डॉक्टर साहब अक्सर कुछ लोगों के साथ बिजी रहते हैं। बाहर दर्द बर्दाश्त करते और कराहते मरीज सोचते हैं कि डॉक्टर साहब कुछ लोगों के साथ मिलकर शायद उनके मर्ज खोजने में मशगूल हैं, लेकिन हमारे रिपोर्टर की तहकीकात में एक अलग ही हकीकत सामने निकल कर आई। हकीकत जानने के लिए पढि़ए ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

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- हैलट अस्पताल में डॉक्टरों और एमआर का कॉकस, जितना बिजनेस उतनी सहूलियतें

- ओपीडी हो या इमरजेंसी सब जगह दवा बेचने के लिए करते हैं प्रचार

-डॉक्टर्स भी फायदे के चक्कर में बाहर से ही दवा मंगाते, टारगेट के हिसाब से दवा कंपनियां उठाती हैं डॉक्टर्स के सारे खर्चे

- सरकारी डॉक्टर्स को देते महंगे गिफ्ट से लेकर फॉरेन टूर, खर्चे का कोई हिसाब किताब भी नहीं

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KANPUR :

हैलट हॉस्पिटल में पेशेंट को सही समय पर इलाज मिले या न मिले लेकिन मर्ज का इलाज करने वाले डॉक्टर्स पेशेंट्स के उन्हीं मर्ज के दम पर मोटी कमाई कर रहे हैं। ये बात तो सभी जानते हैं कि डॉक्टर और मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्स का पुराना रिश्ता है, लेकिन इनका रिश्ता पेशेंट्स की जान पर आफत बनता जा रहा है। दरअसल हैलट हॉस्पिटल के डॉक्टर्स और दवा कंपनियों के रिप्रजेंटेटिव्स का यह गठजोड़ डॉक्टर्स को जितना फायदा पहुंचा रहा है उतना ही पेशेंट्स को नुकसान पहुंचा रहा है। मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्स बेरोकटोक ओपीडी और इमरजेंसी में दवा का प्रचार करते हैं। डॉक्टर्स भी उन्हें हाथों हाथ लेते हैं। दवा बिक्री के इस खेल जो डॉक्टर जितनी ज्यादा दवा बिकवा देता है उसे उतना ही बड़ा फायदा भी होता है। मंडे को जब आई नेक्स्ट रिपोर्टर हैलट हॉस्पिटल की ओपीडी पहुंचा तो डॉक्टर और एमआर के इस गठजोड़ का पर्दाफाश हुआ।

स्थान: हैलट हॉस्पिटल की ओपीडी

समय : सुबह क्क् बजे

एक फिजिशियन डॉक्टर के केबिन के बाहर पेशेंट्स की लंबी लाइन लगी हुई थी। आई नेक्स्ट रिपोर्टर भी पर्चा लेकर लाइन में लग गया। ख्0 मिनट बाद भी किसी पेशेंट को अंदर नहीं बुलाया गया। इसपर आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने डॉक्टर के असिसटेंट से पूछ लिया कि क्या बात है? असिसटेंट ने बताया कि डॉक्टर साहब मीटिंग में बिजी हैं। रिपोर्टर ने केबिन के अंदर जाकर देखा तो दो नौजवान डॉक्टर साहब से बात कर रहे थे। टेबिल पर कुछ दवाईयों के सैम्पल रखे थे और नौजवान डॉक्टर साहब से उन्हीं दवाओं को प्रिस्क्राइब करने की रिक्वेस्ट कर रहे थे। आई नेक्स्ट रिपोर्टर एक नार्मल पेशेंट बनकर उनकी बातें सुनने लगा, तो असलियत सामने आई। डॉक्टर साहब ने एमआर से कहा कि ये तो नई कंपनी है, तुम बताओ कैसे हिसाब रहेगा? इसपर एमआर ने फौरन जवाब दिया कि सर, ये तो आपके ऊपर है। आप कितना बिजनेस दिलाएंगे? उसी हिसाब से आपकी डिमांड समझ ली जाएगी। इस पूरी बातचीत में लगभग क्भ् मिनट का वक्त और लग गया और पेशेंट्स बाहर खड़े इंतजार करते रहे।

पेशेंट्स का टाइम एमआर के लिए

हैलट ओपीडी सुबह 8 बजे से ख् बजे तक लगती है। नियम के अनुसार तो इस दौरान डॉक्टर को सिर्फ पेशेंट्स को ही देखना होता है, लेकिन एमआर सुबह से ही ओपीडी में डेरा डाल देते हैं और पेशेंट देखने के टाइम पर ही डॉक्टरों से मिलते हैं। वहीं इमरजेंसी में तो इनकी एंट्री पर पूरी तरह से रोक है, इसके बावजूद आईसीयू से लेकर तीनों डिपार्टमेंट्स और रेजीडेंट्स के कमरों में इनकी एंट्री होती है।

जितनी बड़ी कंपनी उतनी मोटी कमाई

मेडिकल फेटरनिटी में दवा कंपनियों का नाम उनकी ओर से डॉक्टरों को दी जाने वाली सुविधाओं के लिए मायने रखता है। मल्टी नेशनल कंपनियों के एमआर डॉक्टरों को उनकी दवा लिखने के एवज में महंगे गिफ्ट के अलावा हर वो सुविधाएं देते हैं जिसकी डॉक्टर को दरकार होती है।

गिफ्ट, कमीशन सब मिलता है यहां

दवा कंपनियां अपनी सेल बढ़ाने के लिए पूरी तरह से डॉक्टरों पर निर्भर होती हैं। डॉक्टर्स इसका पूरा फायदा उठाते हैं। किसी कंपनी की दवा लिखने से पहले पूरी सेटिंग होती हैं। कंपनियां डॉक्टर्स को कई कॉम्प्लीमेंट्री गिफ्ट देती हैं। स्टेशनरी, शूटिंग शर्टिग, शोपीस, क्राकरी जैसे आइटम्स इसमें शामिल हैं। इसके अलावा एमआर को यह टारगेट दिया जाता है कि किसी एक डॉक्टर से महीने में कितने की दवा लिखवानी है। उस हिसाब से कई बार डॉक्टर को कमीशन भी मिलता है।

मंथली और सालाना टॉरगेट पूरा करने पर यह मिलता है डॉक्टर्स को।

-भ्0 हजार रूपए महीने की दवा बेचने पर फॅारेन या लोकल ट्रिप के लिए इकोनॉमी क्लॉस का टिकट

-क् लाख तक की दवा लिखने पर एयर टिकट और होटल का खर्चा

- सालाना क्0 लाख की दवा लिखने पर यूरोपियन कंट्रीज का ऑल एक्सपेंसेज पेड टूर

डॉक्टर्स करते हैं अजीबो गरीब डिमांड

सिटी में एक बड़ी दवा कंपनी के एरिया मैनेजर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कई बार डॉक्टर्स दवा लिखने के बदले अजीबोगरीब डिमांड कर देते हैं, लेकिन सेल का टारगेट पूरा करने के लिए डॉक्टर्स की उन डिमांड को भी पूरा करना पड़ता है। इन अजीबोगरीब डिमांड में क्लीनिक और घर का रेनोवेशन, गाड़ी की सर्विसिंग, बच्चे की फीस भरने जैसे काम शामिल हैं।

डॉक्टर्स की चांदी, पेशेंट का खर्चा

डॉक्टर्स की दवा कंपनियों से सांठगांठ की वजह से उनकी तो चांदी होती हैं लेकिन पेंशेंट का खर्चा बढ़ जाता है। डॉक्टर्स अपना फायदा देखते हुए कंपनियों की महंगी दवा लिखते हैं लेकिन उन्हें खरीदने में पेंशेंट के तीमारदारों का पसीना छूट जाता है। कई बार हैलट में जो दवा उपलब्ध होती है तो उसे भी कम असरदार बता कर डॉक्टर्स बाहर की दवा खरीदवाते हैं।

फिजीशियन डॉक्टर्स की होती हैं सबसे ज्यादा कमाई

फार्मास्युटिकल कंपनियों की सबसे ज्यादा कमाई रोजमर्रा में यूज की जाने वाली दवाईयों जैसे एंटीबायोटिक्स, पेन किलर, मल्टी विटामिन की बिक्री से होती है। ऐसे में इसका सबसे ज्यादा फायदा फिजीशियन डॉक्टर्स को होता है। एमआर की सबसे ज्यादा भीड़ भी उनके यहां ही होती है। इसके अलावा आज के दौर में डायबिटीज, अस्थमा, स्किन डिजीज में यूज होने वाली दवाओं के लिए भी डॉक्टर्स को फार्मा कंपनियां सबसे ज्यादा प्रमोट करती हैं।

प्राइवेट डॉक्टर्स और एमआर का गठजोड़ तो और भी खतरनाक

एक ओर जहां हैलट ओपीडी में एमआर और डॉक्टर्स का कॉकस पेशेंट को परेशान करता है वहीं प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर्स के क्लीनिक और हॉस्पिटल्स में हालत और भी ज्यादा खराब है सिर्फ आर्यनगर और स्वरूप नगर की ही बात करें तो यहां इस कॉकस से पेशेंट की जेब पर डाका पड़ता है। डॉक्टर्स ज्यादातर महंगी और कुछ सिलेक्टेड कंपनियों की ही दवाएं लिखते हैं। कई बार तो डॉक्टर्स इन दवाओं की ज्यादा से ज्यादा बिक्री के लिए अपने क्लीनिक में ही मेडिकल स्टोर भी खुलवा देते हैं।

पेशेंट इंतजार करें डॉक्टर हिसाब करें

हैलट ओपीडी में एमआर और डॉक्टर्स की दोस्ती पेशेंट की जान पर बहुत भारी पड़ती है। ओपीडी के पीक टाइम में जब मरीज डॉक्टर को दिखाने के लिए लंबी लाइन में खड़ा होता है तो ये एमआर डॉक्टर के चेंबर में खड़े होकर दवा का प्रचार करते हैं और डॉक्टर्स भी दवा के सैंपल और गिफ्ट लेते जाते हैं।

'ओपीडी टाइमिंग में एमआर डॉक्टर्स से नहीं मिल सकते हैं इसके अलावा इमरजेंसी या आईसीयू में तो सामान्य लोगों के जाने की भी मनाही रहती हैं ऐसे में दवा का प्रचार करना गलत है। इस बात को सुनिश्चित किया जाएगा कि ओपीडी टाइमिंग में डॉक्टर्स सिर्फ पेशेंट देखें.'

-डॉ.एसबी मिश्रा, सीएमएस, एलएलआर हॉस्पिटल

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