दिगवाड़ा की बॉक्सिंग चैंपियंस
ये दिगवाड़ा की बॉक्सिंग चैंपियंस हैं। ये वो लड़कियां हैं, जो गांव के एक स्कूल में ईंट और रेत से बने बॉक्सिंग रिंग में अभ्यास करके बॉक्िसंग चैम्प बनी हैं। इन लड़कियों से बात करें उनके इस अभ्यास कि तो उनका कहना है कि ये बॉक्िसंग रिंग उनके लिए सिर्फ लड़ने की जगह भर नहीं है। ये उनके लिए बेहद पूजनीय है। इसमें अंदर जाने से पहले ये उसपर तीन बार मत्था टेकती हैं। उसके बाद ही अंदर कदम रखती हैं।
करती हैं रोजाना इतना अभ्यास
रेत के बने इस रिंग में ये बॉक्सर्स रोजाना करीब ढाई घंटे अभ्यास करती हैं। इतने अभ्यास के बाद ये बनीं हैं जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले बॉक्सिंग मुकाबले में मेडल जीतने लायक। इनमें से दो हैं प्रियंका और मोना। इन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर तीन-तीन मेडल जीते हैं। इतना ही नहीं आगे आने वाले दिनों में वह गोवाहाटी में होने वाली नेशनल चैंपियनशिप के लिए भी रवाना होने वाली हैं। फिलहाल इन दोनों धुरंधरों को ये कहना है कि जल्द ही अपने घर की दीवार को ये ऐसे मेडल्स से भर देना चाहती हैं।
ऐसा बताते हैं कोच
इन दोनों को ट्रेंड करने वाले कोच रोशन सिंह कहते हैं कि ये दोनों वह लड़कियां हैं, जिन्होंने सलवार सूट में अभ्यास किया, लेकिन आज दोनों गांव के लिए गर्व का कारण हैं। बता दें कि ये वही रोशन सिंह हैं जो 2008 में दिगवाड़ा में बॉक्िसंग क्रान्ति लाए थे। रोशन कहते हैं कि यहां बॉक्सिंग अभ्यास की शुरुआत करीब 6 से 8 लड़कियों से हुई थी। वहीं अब उनके सामने करीब 20 लड़कियां खड़ी हैं। याद दिला दें कि ये उसी ग्रामीण बिहार की बात हो रही है, जहां माता-पिता अपनी बेटियों को सिर्फ स्कूल पढ़ने के लिए भेजते हैं, ज्यादा खेलने के लिए नहीं। उसके बाद जल्द से जल्द उनकी शादी कर देते हैं।
अब प्रियंका हो गई हैं पहले से ज्यादा कॉन्फिडेंट
प्रियंका, जो यहां की महिला बॉक्सर्स में पहली चैंपियन रही हैं, वह कहती हैं कि बॉक्िसंग के अभ्यास ने उनको पहले से कहीं ज्यादा कॉन्फिडेंट बना दिया है। उनके दिमाग को खोल दिया है। अब प्रियंका आगे होने वाली पैंपियनशिप की तैयारी कर रही हैं। इसके लिए वह रोजाना सुबह चार बजे उठकर चार किलोमीटर की जॉगिंग करती हैं। इतना ही नहीं उनके कोच उनको लड़कों के साथ भी लड़ने का अभ्यास कराते हैं। लड़कों के साथ लड़ने के बारे में जब प्रियंका से पूछा जाता है, तो वह जवाब देती हैं कि नहीं, कोई अंतर नहीं है लड़के और लड़कियों से लड़ने में। हां, यहां सिर्फ टेक्नीक मायने रखती है। अब इस बॉक्िसंग रिंग में अलग-अलग जाति और धर्म की लड़कियां आती हैं अभ्यास करने के लिए। इस ग्रुप में साबिया खातून सबसे छोटी हैं।
इतने खर्च में नहीं मिलती कोई मदद
अब यहां बॉक्सिंग रिंग के बारे में पूछने पर कोच रोशन और धीरजे ने बताया कि एक अच्छे बॉक्सिंग रिंग को तैयार करने में करीब 250,000 रुपये का खर्च आता है। ऐसे में जिला या राज्य स्तर पर उनको सुविधाओं को लेकर किसी भी बात की मदद नहीं मिली। प्रियंका की मां सोना देवी (नगर निगम की पूर्व पदाधिकारी) इस बारे में बताती हैं कि आम लोग भी इन बच्चियों का प्रोत्साहन करने के लिए कुछ नहीं करते हैं। इसके बावजूद खुद उन्होंने इन बच्चियों का सपोर्ट करने का फैसला किया।
लड़कियों को किया जाता है भुगतान
यहां लड़कियों को बॉक्सिंग क्लब में एनरोल कराने के लिए 300 रुपये का भुगतान किया जाता है। ये कीमत उस सुधा कुमारी के लिए बहुत है, जिसने रिंग तक आने के लिए अपनी सहेली की साइकिल उधार पर ली थी। सुधा कक्षा 11 में पढ़ने वाली एक शांत लड़की है। इनके पिता हैं नहीं और मां रोजाना की दिहाड़ी पर मजदूरी करने वाली एक मजदूर हैं। सुधा ने बताया कि उसको मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पुरस्कार के तौर पर एक साइकिल भेंट की है।
Image Courtesy rediff. com
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