वकील हैं इम्तियाज राशिद कुरैशी
लाहौर के रहने वाले वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं इम्तियाज राशिद कुरैशी। उन्होंने भगतसिंह मेमोरियल फाउंडेशन की स्थापना की और वे इसके अध्यक्ष भी हैं। कुरैशी ने 2013 में लाहौर हाईकोर्ट में दाखिल कर भगत सिंह की फांसी का सच सामने लाने का अनुरोध किया। याचिका में कहा गया है कि भगत सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे, वो बंटवारे के पहले अविभाजित भारत की आजादी के लिए लड़ रहे थे और उनके ऊपर जो भी आरोप लगाए थे वो झूठे थे। इसके लिए उन्होंने  2014 में एक एफआईआर प्रस्तुत की जिसके अनुसार जिस केस में भगत सिंह को फांसी दी गई थी उस एफआईआर में उनका नाम ही नहीं था। साथ ही उन्हें रजिस्ट्रार के फैसले पर ही फांसी दे दी गई जबकि उसके पास ऐसा कोई अधिकार होता ही नहीं है। उन्होंने अपने केस में यही दलीलें दी हैं। कुरैशी मानते हैं कि भगत सिंह की न्यायिक हत्या की गई थी। अब उनकी मांग है कि ब्रिटिश गवरमेंट भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के परिवार से माफी मांगे और हर्जाना दे।
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पाकिस्तान के भी हीरो हैं भगतसिंह
कुरैशी का कहना है कि वे नहीं चाहते कि लोग उनके देश पाकिस्तान को तंगनजर लोगों का का मुल्क समझे। इसीलिए उनका कहना है कि जब भगतसिंह, राजुगुरू और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों को सजा हुई तब भारत का बटवारा नहीं हुआ था और संपूर्ण भारत की लड़ाई लड़ रहे थे। भगतसिंह का जन्म भी पाकिस्तान के पंजाब में हुआ था और उन्हें पाकिस्तान में ही लाहौर में फांसी दी गयी थी। इसलिए वे पाकिस्तान के भी हीरो हैं और उन्हें न्याय मिलना ही चाहिए। हालाकि इसके लिए शुरू में उन्हें कई कठिनाइयों और धमकियों का भी सामना करना पड़ा। अपनी संस्था भगतसिंह मेमोरियल फाउंडेशन की ओर से कुरैशी ने भगतसिंह को न्याय दिलाने की मांग करने के साथ लाहौर के शादमान चौक जहां भगत सिंह को फांसी हुई थी, का नाम बदलकर शहीद भगत सिंह चौक करने का भी अनुरोध किया है।
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पाकिस्‍तानी वकील जो भगत सिंह की यादों के लिए लड़ रहा है

क्या है भगतसिंह मेमोरियल फाउंडेशन
कुरैशी ने अपने कार्य को पूरा करने के लिए भगतसिंह मेमोरियल फाउंडेशन की शुरूआत की। इस फांउंडेशन का कार्यालय लाहौर में है और ये विश्व भर में कार्य करता है। इसी फाउंडेशन के तहत मेमोरियल पाक उच्च न्यायालय में एक आवेदन दाखिल कर भगतसिंह इंसाफ दिलाने की बात करते हुए दावा किया गया है कि भगतसिंह को पहले आजीवन कैद की सजा सुनाई गई, लेकिन बाद में एक और झूठे गढ़े मामले में उन्हें मौत की सजा सुना दी गई। लाहौर षड़यंत्र केस में उनको दो साथियों के साथ फांसी की सजा हुई और 24 मई 1931 को फांसी देने की तारीख तय की गयी, लेकिन समय से 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को उनको शाम साढ़े सात बजे उन्हें फांसी दे दी गई, जो कि नाजायज था। ऊपर से उनके नाम एफआईआर में थे ही नहीं और तत्कालीन सरकार ने झूठ को सच बनाने के लिए 451 लोगों से झूठी गवाही दिलवाई। भगतसिंह मैमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष एडवोकेट इम्तियाज राशिद कुरैशी ने जलियांवाला बाग में भारतीय एडवोकेट मोमिन मलिक को पुलिस की एफआईआर समेत सारे अदालती दस्तावेज सौंपे और इस मामले में इंसाफ हासिल करने का दावा भी किया। इस मामले के पाकिस्तानी अदालत में रीओपन होने के बाद इसके तथ्य हिंदुस्तान से भी एकत्रतित किए जायेंगे।
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