रूस के रीगा में हुआ था इंद्रा देवी का जन्म

योगमाता इंद्रा देवी के नाम से मशहूर उस महिला का जन्म 12 मई 1899 को जारशाही रूस के लातविया की राजधानी रीगा में हुआ था। इंद्रा देवी का असली नाम था एवगेनिया पेतरसन था। एवगेनिया की मां एक कुलीन घराने की रूसी महिला थीं। एवगेनिया के पिता एक स्वीडिश बैंकर थे। 15 साल की उम्र में एवगेनिया मॉस्को में नाट्यकला की पढ़ाई करने के लिए आगई। वहां रविंद्रनाथ टैगोर की एक पुस्तक और एक अमेरिकी योगी रामचरक मूल नाम विलियम वॉकर एटकिन्सन की लिखी किताब ‘योगदर्शन और प्राच्यदेशीय तंत्र-मंत्र के 14 पाठ’ पढ़ कर एवगेनिया भारत के प्रति आसक्त हो गयीं। उस दौर तिरुमलाई कृष्णमाचार्य पारंपरिक योगसाधना के प्रथम साधकों में गिने जाते थे। कृष्णमाचार्य तो महिलाओं को योग-शिक्षा भी नहीं देते थे। तब यूरोप से आई एक महिला उनकी प्रथम शिष्या तो बनी ही उनके कहने पर वह महिला पश्चिमी जगत की पहली योग-शिक्षिका भी कहलाईं।

योग और मंत्रोच्चार के प्रति हुईं आसक्त

रूस में 1917 की समाजवादी क्रांति के साथ जारशाही के अंत और कम्युनिस्ट सत्ता के आने की उथलपुथल के बीच उनकी मां उन्हें लेकर लातविया और पोलैंड में भटकते हुए 1921 में बर्लिन पहुंचीं। एवगेनिया को बर्लिन की एक नाट्यमंडली में काम मिल गया। 1926 में एवगेनिया ने सुना कि भारत में कांग्रेस पार्टी की कार्यकर्ता और महात्मा गांधी की निकट सहयोगी एनी बेसेंट की थियोसॉफ़िकल सोसायटी की ओर से हॉलैंड के ओमेन शहर में एक   सम्मेलन होने वाला है। सम्मेलन में भाग लेने के लिए वे वहां पहुंच गईं। एक शाम वहां उन्होंने योगी जिद्दू कृष्णमूर्ति को मंत्रोच्चार करते सुना। जिसे सुन वे ऐसी मंत्रमुग्ध हुईं कि मौका मिलते ही भारत जाने का मन बना लिया।

बॉलीवुड में भी किया काम

1927 में जब एक धनी जर्मन बैंकर हेर्मन बोल्म ने एवगेनिया के सामने विवाह-प्रस्ताव रखा तो उन्होंने इस शर्त पर हां कहा कि पहले वह उनकी भारत-यात्रा का ख़र्च उठाएंगे। बोल्म की दी हुई सगाई की अंगूठी पहन कर एवगेनिया भारत पहुंचीं। तीन महीने बादजब वह भारत से लौटी तो उन्होंने बैंकर को अंगूठी लौटाते हुए कहा मुझे क्षमा करना मेरी जगह तो भारत में है। एवगेनिया ने अपने सारे गहने-जेवर बेचे और एक बार फिर भरत आ गईं। एवगेनिया जब भारत पहुंची तो उन्होंने अपना एक नया नाम इंद्रा देवी रखा। वे बंबई के फिल्म जगत में नर्तकी और अभिनेत्री का काम करने लगीं।

मैसूर के राजा के दबाव के बाद पाई योग की शिक्षा

मुंबई में इंद्रा देवी की मुलाकात चेकोस्लोवाक वाणिज्य दूतावास के एक अताशी यान स्त्राकाती से परिचय हुआ। 1930 में दोनों ने शादी भी कर ली। अपने पति के माध्यम से ही इंद्रा देवी मैसूर के महाराजा कृष्णराजेंद्र वड़ेयार से मिलीं। योगगुरु तिरुमलाई कृष्णमाचार्य उनके राजमहल में ही योग शिक्षा दिया करते थे। इंद्रा देवी ने जब उनसे कहा कि वे भी उनसे योगसा धना सीखना चाहती हैं तो कृष्णमाचार्य ने यह कह कर मना कर दिया कि वे एक विदेशी और महिला हैं। मैसूर के महाराजा कृष्णराजेंद्र वड़ेयार के हस्तक्षेप करने पर कृष्णमाचार्य को मनाना पड़ा। इंद्रा देवी ने भी अपने योगगुरु के सभी कठोर नियमों और अनुशासनों का उसी कठोरता और श्रद्धा के साथ पालन किया जिस तरह उनके सहपाठियों और भावी नामी योगगुरुओं पट्टभि जोइस और बीकेएस अयंगर ने किया।

कई अमेरिकी हस्तियों को दी योग की शिक्षा

जब द्वतीय विश्व युद्ध से पहले जब उनके पति का शंघाई में तबादला हो गया। इस कारण इंद्रा देवी को 1938 में भारत छोड़ना पड़ा। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने तक वे शंघाई में ही रहीं। इस दौरान इंद्र चीन के राष्ट्रवादी नेता च्यांग काइ-शेक की पत्नी के घर में योगशिक्षा का स्कूल चलाने लगीं। चीन में यह पहला योग स्कूल था। द्वतीय विश्व युद्ध के अंत के बाद वे एक बार फिर भारत लौटीं। यहां आकर उन्होंने अपनी पहली पुस्तक लिखी योग स्वास्थ्य और सुख-प्राप्ति की कला लिखी। इस बार वे अधिक समय तक भारत में नहीं रह सकीं। 1946 में उनके पति का चेकोस्लोवाकिया में देहांत हो गया। पति के अंतिम संस्कार के बाद वे अमेरिका चली गयीं और वहां हॉलीवुड में फिल्मी सितारों को योग सिखाने लगीं। ग्रेटा गार्बो और मर्लिन मुनरो जैसी हस्तियों को उन्होंने योग सिखाया।

पांच भाषाओं का ज्ञान था इंद्रा देवी को

इंद्रा देवी को पांच भाषाओं का ज्ञान था। मातृभाषा रूसी के अलावा अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रेंच और स्पेनिश जिन्हे वह धाराप्रवाह बोलती थीं। 1960 में उन्होंने मॉस्को जाकर तत्कालीन सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकार को मनाने की कोशिश की थी। वह भी सोवियत जनता को योग सीखने-करने की अनुमति प्रदान करने के लिए। इंद्रा देवी ने कहा कि योग कोई धर्म नहीं है इसलिए उससे डरने का कोई तुक नहीं है। सोवियत संघ में योगसाधना उस समय धर्मपालन के समान ही प्रतिबंधित थी। 1966 में इंद्रा देवी पुट्टपार्थी के सत्य साईं बाबा की भक्त बन गयीं। वे उनसे मिलने के लिए भारत आने-जाने लगीं और अपनी योग-शैली को सांई योग कहने लगीं। 1982 में अर्जेंटीना की एक यात्रा के बाद इंद्रा देवी वहीं बस गयीं। राजधानी बुएनोस आइरेस में, 102 वर्ष की अवस्था में 25 अप्रैल 2002 को इंद्रा देवी ने अंतिम सांस ली।

Interesting News inextlive from Interesting News Desk