-मोबाइल लूट के मुकदमें दर्ज नहीं करती है पुलिस

-बरामद होने पर तलाशा जाता है मोबाइल मालिकों को

BAREILLY: शहर में मोबाइल लूट को पुलिस लूट नहीं मानती है। इसलिए पुलिस लूट की एफआईआर दर्ज करने में भी ना नुकुर करती है। पुलिस पीडि़त को या तो वापस भेज देती है या फिर गुमशुदगी दर्ज कराने का दबाव बनाती है, लेकिन जब किसी मोबाइल लूट का खुलासा होता है तो लूट दर्ज से अधिक मामलों के मोबाइल बरामद हो जाते हैं और पुलिस फिर मालिकों की तलाश में जुट जाती है। बारादरी में भी पुलिस ने मोबाइल लुटेरों को गिरफ्तार कर 5 मोबाइल बरामद किए, लेकिन एफआईआर एक की ही दर्ज थी। कुछ महीने पहले इज्जतनगर पुलिस ने 8 मोबाइल लुटेरों से बरामद किए थे और जिसमें खुलासा करने के लिए एक लूट की एफआईआर बाद में दर्ज की गई थी।

केस 1-

मोबाइल तो मिलेगा नहीं

वेडनसडे को महेश इज्जतनगर थाना पहुंचे और उन्होंने मोबाइल छीन लेने की सूचना दी। इस पर वहां मौजूद पुलिसकर्मी ने तुरंत कहा कि अप्लीकेशन लिखकर दो। यही नहीं चीता को भी फोन पर सूचना दी लेकिन बाद में कहा गया कि मोबाइल तो मिलेगा नहीं लेकिन सिम जरूर मिल जाएगा। उसके बाद अप्लीकेशन की फोटोकॉपी कराने के लिए कहा गया।

केस 2-

सुविधा शुल्क देकर लगी मुहर

पीलीभीत रोड निवासी अवनेश गैस एजेंसी पर काम करता है। उसका करीब 15 दिन पहले मोबाइल छीन लिया था। वह थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंचे तो उसे तमाम कागजात लाने के बहाने घुमाया गया। थक हारकर उसने सिम खोने की अप्लीकेशन दी। जिसके बदले में पुलिसकर्मी को 50 रुपए का सुविधा शुल्क भी दिया तब जाकर मुहर लगी और नया ि1सम मिला।

कागजों के बहाने लगवाते हैं चक्कर

इस तरह से शहर में रोजाना करीब एक दर्जन लोगों के मोबाइल या तो छीन लिए जाते हैं या फिर गिर जाते हैं। मोबाइल छीनने की पुलिस एफआईआर आसानी से दर्ज नहीं करती है और गुमशुदगी दर्ज करने के थानों में तैनात मुंशी 50 या 100 रुपए मांगते हैं। नहीं तो एफीडेविड, आईडी प्रूफ व अन्य कागज के नाम पर दौड़ाया जाता है। कई थानों में तो मुंशी ऐसे पीडि़तों के आने का इंतजार करते रहते हैं ताकि उनकी ऊपरी कमाई बन सके। थाना प्रभारी इस बात को जानते हुए भी आंखे बंद कर बैठ जाते हैं। दूसरी ओर देखा जाए तो सुविधा शुल्क लेकर फर्जी नंबरों के मिस होने की भी गुमशुदगी दर्ज कर ली जाती है।