तो क्या मोबाइल चोरी नहीं होता!

Mobile phone theft FIR not being lodged

Allahabad: क्या आपका मोबाइल कभी चोरी हुआ है। अगर चोरी हो गया तो आपने क्या किया। क्या कभी चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने पुलिस स्टेशन पहुंचे हैं।  तो क्या मोबाइल चोरी की रिपोर्ट दर्ज हुई। नहीं ना! पुलिस ने क्या कहा। गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करो। यही ना! यहां पर पुलिस का क्या खेल है, यह हम आपको बताते हैं कि कैसे प्रयाग नगरी में कोई मोबाइल चोरी होने के बाद भी चोरी नहीं होता

विक्रम से चोरी हुआ mobile

बेली रोड के रहने वाले सभाजीत पाण्डेय डेली की तरह अपने ऑफिस के लिए सुबह घर से निकले थे। विक्रम पर बैठ कर म्योहाल तक पहुंचे। फिर वहां गाड़ी से उतर गए। ऑफिस पहुंचे तो उन्हें अचानक अपने मोबाइल की याद आई। जेब से मोबाइल गायब था। सभाजीत को समझते देर न लगी कि माजरा क्या है। विक्रम में बैठे किसी टप्पेबाज ने उनका मोबाइल उड़ा दिया। कॉल करने पर मोबाइल स्वीच ऑफ मिला। मोबाइल चोरी होने के बाद सभाजीत पुलिस स्टेशन पहुंचे। और मोबाइल चोरी की रिपोर्ट दर्ज करने की बात कही। लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की। साफ-साफ कहा कि अगर आप मोबाइल गायब होने की बात कहें और उसे रिटेन में लिख कर दें दे तो काम हो जाएगा। सभाजीत पुलिस की बात मान गए और अपना मोबाइल चोरी होने के बाद भी उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराकर वापस लौट आए.

हर किसी की यही कहानी 

दरअसल, ये कहानी आज सिर्फ सभाजीत पााण्डेय की नहीं है बल्कि ज्यादातर लोगों ने इस प्रॉब्लम को फेस किया होगा। मोबाइल चोरी होना आज आम बात है। आए दिन किसी न किसी का मोबाइल गायब होता है। लेकिन किसी को भी पुलिस से इस मामले में कोई उम्मीद नहीं है.पुलिस का रवैया देख कर हर कोई समझ चुका है कि मोबाइल चोरी हो या उसे कोई रास्ते में छीन ले जाए। लेकिन पुलिस इसकी एफआईआर दर्ज करने वाली नहीं है। आप चाहे जितने भी रसूक वाले हों, लेकिन पुलिस स्टेशन में दाल नहीं गलने वाली है। पुलिस आपकी तहरीर चेंज कराकर उसे गुमशुदगी में बदलवा देगी. 

क्यों होता है ये खेल 

दरअसल, इस खेल के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है। पुलिस अगर चोरी या लूट का मुकदमा दर्ज करेगी तो फिर उसे जांच करनी पड़ेगी। एफआईआर दर्ज होते ही हर रिपोर्ट को एक खास नंबर मिल जाता है जिसे हम क्राइम नंबर के नाम से जानते हैं। फिर वह मोबाइल चोरी का ही मामला क्यों न हो, उसकी मानिटरिंग शुरू हो जाती है। पुलिस ऑफिस जांच करते हैं कि किस थाने में कितनी चोरी की घटनाएं हुई, और उसमें थानेदार ने क्या किया। कितनी घटनाओं पर वर्कआउट हुआ। यही सबसे बड़ा कारण है कि मोबाइल चोरी की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती। पुलिस चोरी की जगह गायब होने की बात करती है। दरअसल गुमशुदगी कोई एफआईआर नहीं होती और ना ही उसकी पुलिस जांच करती है. 

यह भी आसान नहीं

वैसे तो पुलिस स्टेशन की स्थिति यह है कि, सामान्य व्यक्ति के लिए मोबाइल गायब होने के बाद भी उसकी गुमशुदगी दर्ज कराना भी आसान नहीं होता है। अगर कोई पुलिस स्टेशन पहुंचता है तो उसे कई बार झटका लग जाता है। थाने में बैठे मुंशी उसे मोबाइल के बिल का फोटो कॉपी से लेकर एक एफिडेविट तक मांग लेते हैं। नहीं तो एक गांधी जी का नोट देने के बाद काम हो जाता है. 

सैकड़ों को मिल चुका है मोबाइल 

मोबाइल चोरी की घटनाओं को देखते हुए एक मोबाइल रिकवरी सेल भी बनाया गया है जो इस समय क्राइम ब्रांच के अंतर्गत काम कर रहा है। यह सेल तभी काम करता है जब कोई मोबाइल चोरी का अप्लीकेशन सीनियर पुलिस ऑफिसर के थ्रू फारवर्ड होकर आता है। सर्विलांस की मदद से रिकवरी सेल हर महीने 25-30 मोबाइल की रिकवरी कर लेती है। जबकि यह बात अलग है कि मोबाइल गायब होने की संख्या कई गुना ज्यादा है। हर महीने सैकड़ों मोबाइल्स की गुमशुदगी लिखी जाती है. 

क्या है नियम व कानून 
कोई भी पुलिस कर्मी वादी पर दबाव बनाकर किसी को लाभ पहुंचाने के लिए एफआईआर में फेरबदल करता है तो उस पर आईपीसी की धारा 217 के तहत कार्रवाई की जाती है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर दो साल की सजा व जुर्माना या दोनों  का प्रावधान है। पीडि़त व्यक्ति इस धारा के तहत किसी पुलिस कर्मी या किसी भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा सकता है। ये बात अलग है कि इस धारा के तहत प्रयाग नगरी में कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। जबकि डेली सिटी के लगभग सभी थानों में मोबाइल की चोरी की रिपेार्ट की जगह उसे चेंज कराकर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है. 

तो कहां से होती है रिकवरी 
रेलवे पुलिस, शाहगंज, कीडगंज, मुट्ठीगंज, कर्नलगंज और धूमनगंज पुलिस ने कुछ महीनों में मोबाइल चोरी करने वाले कई गैंग का खुलासा किया था। पुलिस ने अभी तक सैकड़ों मोबाइल चोरी की रिकवरी की है। कई चोरों को पकड़ कर उन्हें सलाखों के पीछे भेजा है। अब सवाल यह है कि अगर मोबाइल चोरी नहीं हो रहे हैं तो पुलिस कहां से मोबाइल की रिकवरी कर लेती है. 

अगर मोबाइल चोरी होता है तो उसकी रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए। कई बार थानेदार व मुंशी के खिलाफ  कंप्लेन मिलने पर कार्रवाई भी की गई है और आगे भी ऐसा ही होगा. 
उमेश कुमार श्रीवास्तव
एसएसपी 

Report by-Piyush kumar

विक्रम से चोरी हुआ mobile

बेली रोड के रहने वाले सभाजीत पाण्डेय डेली की तरह अपने ऑफिस के लिए सुबह घर से निकले थे। विक्रम पर बैठ कर म्योहाल तक पहुंचे। फिर वहां गाड़ी से उतर गए। ऑफिस पहुंचे तो उन्हें अचानक अपने मोबाइल की याद आई। जेब से मोबाइल गायब था। सभाजीत को समझते देर न लगी कि माजरा क्या है। विक्रम में बैठे किसी टप्पेबाज ने उनका मोबाइल उड़ा दिया। कॉल करने पर मोबाइल स्वीच ऑफ मिला। मोबाइल चोरी होने के बाद सभाजीत पुलिस स्टेशन पहुंचे। और मोबाइल चोरी की रिपोर्ट दर्ज करने की बात कही। लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की। साफ-साफ कहा कि अगर आप मोबाइल गायब होने की बात कहें और उसे रिटेन में लिख कर दें दे तो काम हो जाएगा। सभाजीत पुलिस की बात मान गए और अपना मोबाइल चोरी होने के बाद भी उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराकर वापस लौट आए।

हर किसी की यही कहानी 

दरअसल, ये कहानी आज सिर्फ सभाजीत पााण्डेय की नहीं है बल्कि ज्यादातर लोगों ने इस प्रॉब्लम को फेस किया होगा। मोबाइल चोरी होना आज आम बात है। आए दिन किसी न किसी का मोबाइल गायब होता है। लेकिन किसी को भी पुलिस से इस मामले में कोई उम्मीद नहीं है.पुलिस का रवैया देख कर हर कोई समझ चुका है कि मोबाइल चोरी हो या उसे कोई रास्ते में छीन ले जाए। लेकिन पुलिस इसकी एफआईआर दर्ज करने वाली नहीं है। आप चाहे जितने भी रसूक वाले हों, लेकिन पुलिस स्टेशन में दाल नहीं गलने वाली है। पुलिस आपकी तहरीर चेंज कराकर उसे गुमशुदगी में बदलवा देगी. 

क्यों होता है ये खेल 

दरअसल, इस खेल के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है। पुलिस अगर चोरी या लूट का मुकदमा दर्ज करेगी तो फिर उसे जांच करनी पड़ेगी। एफआईआर दर्ज होते ही हर रिपोर्ट को एक खास नंबर मिल जाता है जिसे हम क्राइम नंबर के नाम से जानते हैं। फिर वह मोबाइल चोरी का ही मामला क्यों न हो, उसकी मानिटरिंग शुरू हो जाती है। पुलिस ऑफिस जांच करते हैं कि किस थाने में कितनी चोरी की घटनाएं हुई, और उसमें थानेदार ने क्या किया। कितनी घटनाओं पर वर्कआउट हुआ। यही सबसे बड़ा कारण है कि मोबाइल चोरी की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती। पुलिस चोरी की जगह गायब होने की बात करती है। दरअसल गुमशुदगी कोई एफआईआर नहीं होती और ना ही उसकी पुलिस जांच करती है. 

यह भी आसान नहीं

वैसे तो पुलिस स्टेशन की स्थिति यह है कि, सामान्य व्यक्ति के लिए मोबाइल गायब होने के बाद भी उसकी गुमशुदगी दर्ज कराना भी आसान नहीं होता है। अगर कोई पुलिस स्टेशन पहुंचता है तो उसे कई बार झटका लग जाता है। थाने में बैठे मुंशी उसे मोबाइल के बिल का फोटो कॉपी से लेकर एक एफिडेविट तक मांग लेते हैं। नहीं तो एक गांधी जी का नोट देने के बाद काम हो जाता है. 

सैकड़ों को मिल चुका है मोबाइल 

मोबाइल चोरी की घटनाओं को देखते हुए एक मोबाइल रिकवरी सेल भी बनाया गया है जो इस समय क्राइम ब्रांच के अंतर्गत काम कर रहा है। यह सेल तभी काम करता है जब कोई मोबाइल चोरी का अप्लीकेशन सीनियर पुलिस ऑफिसर के थ्रू फारवर्ड होकर आता है। सर्विलांस की मदद से रिकवरी सेल हर महीने 25-30 मोबाइल की रिकवरी कर लेती है। जबकि यह बात अलग है कि मोबाइल गायब होने की संख्या कई गुना ज्यादा है। हर महीने सैकड़ों मोबाइल्स की गुमशुदगी लिखी जाती है. 

क्या है नियम व कानून 

कोई भी पुलिस कर्मी वादी पर दबाव बनाकर किसी को लाभ पहुंचाने के लिए एफआईआर में फेरबदल करता है तो उस पर आईपीसी की धारा 217 के तहत कार्रवाई की जाती है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर दो साल की सजा व जुर्माना या दोनों  का प्रावधान है। पीडि़त व्यक्ति इस धारा के तहत किसी पुलिस कर्मी या किसी भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा सकता है। ये बात अलग है कि इस धारा के तहत प्रयाग नगरी में कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। जबकि डेली सिटी के लगभग सभी थानों में मोबाइल की चोरी की रिपेार्ट की जगह उसे चेंज कराकर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है. 

तो कहां से होती है रिकवरी 

रेलवे पुलिस, शाहगंज, कीडगंज, मुट्ठीगंज, कर्नलगंज और धूमनगंज पुलिस ने कुछ महीनों में मोबाइल चोरी करने वाले कई गैंग का खुलासा किया था। पुलिस ने अभी तक सैकड़ों मोबाइल चोरी की रिकवरी की है। कई चोरों को पकड़ कर उन्हें सलाखों के पीछे भेजा है। अब सवाल यह है कि अगर मोबाइल चोरी नहीं हो रहे हैं तो पुलिस कहां से मोबाइल की रिकवरी कर लेती है. 

अगर मोबाइल चोरी होता है तो उसकी रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए। कई बार थानेदार व मुंशी के खिलाफ  कंप्लेन मिलने पर कार्रवाई भी की गई है और आगे भी ऐसा ही होगा. 

उमेश कुमार श्रीवास्तव

एसएसपी 

Report by-Piyush kumar