RANCHI: राजधानी के लोगों का खून मच्छर चूस रहे हैं और फॉगिंग मशीनें गैराज में पड़ी हैं। हालत यह है कि एक फॉगिंग मशीन गैराज से आई नहीं कि दूसरे जाने को तैयार रहती है। वहीं नई मशीनें खरीदने का मामला भी ठंडे बस्ते में पड़ा है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या रांची नगर निगम लोगों का सारा खून मच्छरों से चुसवाने के बाद ही मशीनें खरीदेगा। गौरतलब हो कि हाइकोर्ट ने रांची नगर निगम को सिटी में रेगुलर फागिंग कराने का सख्त निर्देश दिया था। इसके बाद दिखावे के लिए फागिंग मशीनों को चालू भी कराया था। लेकिन कुछ दिनों बाद ही मशीनें जवाब दे गई।

वार्डो में सपना हुई फॉगिंग

फिलहाल रांची नगर निगम के पास क्क् फागिंग मशीनें है, जिसमें से आधी खराब ही रहती हैं। वार्डो में तो फागिंग सपना हो गया है। स्थिति यह है कि लोगों को अपने घरों में दिन के वक्त भी मच्छरदानी लगानी पड़ रही है। वहीं मच्छरों पर लिक्विड और कॉइल का असर नहीं पड़ रहा है।

ठंडे बस्ते में फॉगिंग के लिए गाड़ी खरीदने का मामला

मार्च में हुई निगम की बोर्ड मीटिंग में फागिंग के लिए ख्0 आटो खरीदने की मंजूरी मिली थी। लेकिन एक महीने बीत जाने के बाद भी इसका टेंडर ही नहीं निकाला गया है। ऐसे में खरीदारी की प्रक्रिया पूरी करने में ही समय बीत जाएगा। और जब तक आटो की खरीदारी कर तैयार किया जाएगा तबतक मानसून की इंट्री हो जाएगी। इसके बाद तो बरसात में फागिंग की नहीं जाएगी और मशीनें रखी-रखी खराब हो जाएगी।

क्कद्गश्रश्चद्यद्ग ष्श्रठ्ठठ्ठद्गष्ह्ल

मच्छरों का प्रकोप काफी बढ़ गया है। दिन में ही मच्छरों ने जीना मुहाल कर रखा है। रात में ये तो और भी ज्यादा काटते है। इन पर स्पे्र और कॉयल का तो असर ही नहीं होता है। नगर निगम की फागिंग से कम से कम भागते तो है। लेकिन निगम ने काफी दिनों से फागिंग नहीं कराई है। आखिर हमलोग निगम को टैक्स सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए देते है।

कुणाल

अधिकारियों के घरों में तो रेगुलर फागिंग की जाती है। तो वहां तो मच्छर नहीं रहेंगे। आम लोगों का ही खून तो मच्छर चूसते है। अधिकारियों को भी ऐसे इलाकों में रखा जाना चाहिए। हाइकोर्ट भी बस आदेश देता है लेकिन अधिकारियों पर कार्रवाई हो तब उन्हें लोगों की परेशानी समझ में आएगी। रेगुलर फागिंग से हमलोगों को थोड़ी राहत मिलेगी।

सुमित

फागिंग की मशीनें तो हमारे एरिया में आती ही नहीं है। कभी आती भी है तो आधे रास्ते ही लौट जाती है। ऐसे में मच्छर एक घर से निकलकर दूसरे इलाके में पहुंच जाते है। इसका खामियाजा दूसरे घरों के लोगों को झेलना पड़ता है। अगर फागिंग की व्यवस्था है तो रेगुलर कराई जानी चाहिए। जब फागिंग हीं नहीं होती है तो इसका पैसा कहां जाता है।

नितिन