समाज की अनेक असमानताएं
नीला ने पानी को केंद्र में रख कर समाज की अनेक असमानताओं को पेश किया है। सम्पन्नता व्यक्ति की सोच को क्रूर और फूहड़ बना देती है। बांटने और शेयर करने के मानवीय गुणों से भी ऐसे लोग दूर रहते हैं। आसपास की दो बस्तियों में जातिगत भिन्नता भी है। सदियों से राज कर रहे राजा किस्म के जमींदार अपनी हवेलियों की हद में कैद तह्त हैं। बदलाव की हवा नहीं नहीं छू पाती। उन्हें बदल गए समाज की भनक भी नहीं होती। इस फ़िल्म में ऐसी प्रवृतियों को नीला ने बहुत ही सरल और सरस तरीके से पेश किया है। नीला समाज में आ रहे परिवर्तनों को भी चरित्रों और प्रसंगों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने फ़िल्म में भारतीय लोकतंत्र के असर को भी महत्व दिया है।
movie review : 'कौन कितने पानी में',डूबते को मिल जाता है 'पानी' का सहारा



सौरभ शुक्‍ला का यादगार किरदार

कौन कितने पानी में की एक ख़ास खूबी सौरभ शुक्ला हैं। उन्होंने अपनी भाव-भंगिमाओं से किरदार को अनेकार्थी बना दिया है। उनका चरित्र बहुआयामी है।सौरभ ने उसके अनुरूप अदायगी भी बहुआयामी रखी है। परदे पर इस चरित्र से उन्हें मुक्त भाव से खेलते देख कर एहसास होता है कि कैसे कई बार कलाकार दी गई स्क्रिप्ट को एक अलग स्तर तक ले जा सकता है। सौरभ की यह यादगार भूमिका है। गुलशन ग्रोवर नीला के प्रिय कलाकार हैं। उन्होने अपने किरदार को संजीदगी से निभाया है। इस फ़िल्म में कुणाल कपूर और राधिका आप्टे भी हैं। राधिका इस साल अपनी फिल्मों से ठोस पहचान हासिल कर रही हैं। इस फ़िल्म में उनका छबीला अंदाज बताता है की अगर मौका मिले तो वह पॉपुलर फिल्मों की आकर्षक नायिका के रूप में भी भा सकती हैं। कुणाल कपूर की मेहनत दिखती है। वे पिछली फिल्मों से आगे आए हैं। नीला ने इस फ़िल्म में गानों का सुन्दर फिल्मांकन किया है। अब उन्हें बड़े बजट की मनोरंजक फ़िल्म भी करनी चाहिए। वे सार्थक प्रयोग कर सकते हैं।

Review by: Ajay Brahmatmaj
abrahmatmaj@mbi.jagran.com

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