1. शुरुआत करते हैं गंभीर दिखने वाले कॉप से, नहीं दिखा इनकी लाल आंखों का जादू गहराई से। ये हैं एक मराठी एक्‍टर।  

2 . एक अमीर उद्योगपति, जिसकी एंट्री एक बोर्ड रूम मीटिंग में होती हैं। सूट में कुछ एक्‍स्‍ट्रा करने के चक्‍कर जरा खराब जनर आते हैं। ये हैं सुहेल सेठ।   

3 . एक सोशलाइट, जिसे देख ऐसा लगता है कि उनका जन्‍म ही हाथ में वाइन की गिलास लेकर हुआ था और उसके बाद उनका काम होता है टैकी पार्टीज़ में बिना सोचे-समझे लोगों को लोगों से मिलवाना। ये हैं सुचित्रा पिल्‍लई।  

4 .  एक फैशनेबल मैडम, जो बेहद नाजुक और मॉर्डन हैं, लेकिन तभी आप चौंक जाएंगे ये सुनकर कि ये चलाती हैं एस्‍कॉर्ट सर्विस को। इनके चेहरे के भाव उस समय देखने लायक होते हैं, जब ये बताती हैं कि पावर ब्रोकर्स और फॉरेन डिप्‍लोमेट्स इनके क्‍लाइंट्स हैं। इनका नाम है मीता वशिष्‍ठ।  

5 . अब आते हैं लड़कियों पर। इस बार इनकी तादाद जरा ज्‍यादा है। इन लड़कियों के लिए रैम्‍प पर स्‍लीपवॉक करने से ज्‍यादा और कोई टैलेंट मायने नहीं रखता।

Movie : Calendar girls
Director: Madhur Bhandarkar
Starring : Akanksha Puri,Avani Modi,Kyra Dutt,Ruhi Singh,Satarupa Pyne
movie review: इन पांच कमियों से कुछ फ़ीकी पड़ी इन 'calendar girls' की चमक



नहीं चला पेज 3 सा जादू
अब ये बात तो साफ है कि मधुर भंडारकर ने जो काम फिल्‍म पेज 3 के साथ 2005 में किया था, वैसा वह 2015 में नहीं कर सके। ऐसा इसलिए भी क्‍योंकि इस बार भी इन्‍होंने लगभग उसी तरह की डिश को एक अलग प्‍लेट में परोसने की कोशिश की है। इस बार भंडारकर ने सिर्फ पांच लड़कियों पर फोकस किया है। इनमें से चार अलग-अलग देशों से हैं और पांचवी पाकिस्‍तानी हैं, जो लंदन से आई है। इन लड़कियों को किंगफिशर सरीखे कैलेंडर के लिए चुना जाता है। ग्‍लैमर, ख्‍याति और पैसे से दूर इन लड़कियों को हमेशा-हमेशा के लिए कैलेंडर गर्ल्स का नाम मिल जाता है।  

इंग्‍लिश डायलॉग्‍स में भी है काफी गड़बड़
फिल्‍म के डायलॉग्‍स को सुनकर ऐसा लगा जैसे भंडारकर या उनके को-स्‍क्रिप्‍ट राइटर ने भी इंग्‍िलश डायलॉग्‍स में बेसिक ग्रामर को चेक नहीं किया। ये फिल्‍म में हास्‍य का विषय बनती है। इसके साथ ही पाकिस्‍तानी किरदार से डील करते समय सेंस्‍टीविटी का बिल्‍कुल भी ध्‍यान नहीं दिया गया है। ऐसा जान पड़ता है कि उनके किरदार को प्रस्‍तुत करते समय काफी लापरवाही बरती गई है। इसके साथ ही फिल्‍म के हर दूसरे डायलॉग पर गौर करें तो वो भी फिल्‍म को माडॅनिटी की कसौटी पर खरा नहीं उतारते।

Review by : Shubha Shetty Saha
shubha.shetty@mid-day.com

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