कुछ ऐसी है कहानी
हमारी अधूरी कहानी आधारित है एक अकेली मां के जीवन पर। इस मां का नाम है वसुधा (विद्या बालन)। इनके पति का नाम है हरि (राजकुमार राव)। हरि पांच साल पहले कहीं खो चुका है। अब वसुधा खुद को और अपने बच्‍च्‍ो को पालने के लिए एक फाइव स्‍टार होटल में फ्लोरिस्‍ट को काम कर लेती है। यहां इनकी मुलाकात हो जाती है एक अमीर बैचलर आरव (इमरान हाशमी) से, जो देखते ही वसुधा से प्‍यार कर बैठता है। वसुधा के लिए ये ठीक उसी तरह से होता है, जैसे किसी के सपनों में देखी हुई परियों की कहानी सच हो गई हो। वहीं तभी एक मुश्किल आन खड़ी होती है। जैसे ही वो इन खुशियों का हाथ थामकर आगे बढ़ने वाली ही होती है, कि उसका अतीत उसके सामने आकर खड़ा हो जाता है। अब आगे क्‍या होता है ये तो आप समझ ही सकते हैं।

बैनर : विशेष फिल्म्स, फॉक्स स्टार स्टुडियोज़
निर्माता : मुकेश भट्ट
निर्देशक : मोहित सूरी
कलाकार : इमरान हाशमी, विद्या बालन, राजकुमार राव, मधुरिमा तुली
movie review: पूरी होने के बाद भी कुछ बेअसर सी रही 'हमारी अधूरी कहानी'
      


वही पुराने एक्‍सप्रेशंस करते हैं बोर
विद्या बालन, अपने प्‍यारे से चेहरे पर हजारों इमोशंस वाले एक्‍सप्रेशंस लिए, हर बार की तरह इस बार भी दर्शकों को अपनी एक्टिंग के जरिए वही दिखा रही हैं, जो दिखाती आईं हैं। इसको देखकर ऐसा लगता है कि इससे भी अच्‍छा वह कुछ कर के दिखा सकती थीं, जिसके लिए उन्‍होंने कोशिश ही नहीं की। इसके अलावा फ‍िल्‍म में एक और बेहतरीन एक्‍टर हैं इमरान हाशमी। इमरान भी सिर्फ और सिर्फ अपनी भूमिका से कसे हुए ही नजर आए। कुल मिलाकर वह दर्शकों को बोरियत से बचा पाने में बहुत हद तक सफल नहीं हुए.       

देख सकते हैं राजकुमार राव को
हां, लेकिन अभी एक किरदार तो बाकी ही है। राजकुमार राव, पूरी फ‍िल्‍म में सिर्फ यही ऐसे किरदार रहे, जिन्‍होंने फ‍िल्‍म में थोड़ी जान फूंकने की कोशिश की। उनकी एक्टिंग ने फ‍िल्‍म में थोड़ी बहुत जान फूंकने का काम किया है। हालांकि इन्‍होंने फ‍िल्‍म में निगेटिव रोल ही प्‍ले किया है, लेकिन वह भी फ‍िल्‍म की जान बच जाती है। इसके अलावा फ‍िल्‍म को कुछ और ऊपर उठाता है इसका म्‍यूजिक। दर्शकों को इसके गाने बहुत हद तक पसंद आए। कुल मिलाकर जिसने फ‍िल्‍म को सही मायने में देखने लायक बनाया, वह हैं राजकुमार राव और इसका म्‍यूजिक। आखिर में फ‍िल्‍म उम्‍मींदों के विपरीत जाकर दर्शकों को निराशा ही हाथ में देती है। फ‍िल्‍म को देखकर काफी हद तक आपको लग सकता है कि एक बार फ‍िर से फ‍िल्‍म अर्थ देख रहे हैं, जो सिर्फ किरदारों के नजरिए से ही 2015 के इर्द-गिर्द घूमती है। इसके अलावा फ‍िल्‍म में देखने को कुछ भी नया नहीं है।

Review by: Shubha Shetty-Saha

shubha.shetty@mid-day.com

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