Producer: Anurag Kashyap, Vikramaditya Motwane

Director: Vikas Bahl

Rating: 4/5 star

Cast: Kangana Ranaut, Rajkummar Rao, Lisa Haydon, Vinay Singh, Bokyo Mish, Jeffrey Ho,     Joseph Guitobh, Canadea Lopez Marco

क्वीन कहानी है रानी (कंगना रनौत) की जो चंद दिनों में विजय (राजकुमार राव) की वाइफ बनने वाली है. आम दिल्ली गर्ल या कहिए टिपिकल इंडियन मिडिल क्लास गर्ल की तरह रानी एक बेहद साधारण लड़की है जिसके बेहद कॉमन ड्रीम्स हैं जिनमें कोई इंटलैक्च्युअल सोच नहीं है कोई बिग एम नहीं है. बस सिंपल शादी फिर हनीमून, हसबेंड का साथ और एक मासूम ख्वाहिश दुनिया देखने की बेफिक्र और बेखौफ आजादी से, क्योंकि उसने कभी अपने पेरेंटस के गाइडेंस या ब्रदर के साथ के बिना घर से बाहर अपनी लेन के एंड तक भी अकेले सफर नहीं किया है. ये सारे सपने तब धराशायी हो जाते हैं जब विजय शादी से बस दो दिन पहले उसे डिच कर देता है. तब फर्स्ट टाइम रानी डिसाइड करती है कि वो अकेले में नहीं रोएगी बल्कि खुद अकेले अपना हनीमून सेलिब्रेट करेगी जिसका मतलब है अकेले जर्नी और और दूनिया को देखना. रानी निकल पड़ती है लंदन और एम्सर्टडम जाने के लिए. अकेले सफर में उसका हर एक्सपीयरेंस नया है और हर कदम पर उसे अहसास होता है की जीने के लिए लड़ना पड़ता है लेकिन इसके साथ ही वो अपने को जानने के दौर से भी गुजरती है.

अपने फर्स्ट सीन के साथ फिल्म आपको अपने कंट्रोल में ले लेती है. कमाल का प्रेजेंटेशन है डायरेक्टर को अच्छी तरह से पता है कि वो क्या कहना चाह रहा है पर उससे भी बड़ी बात है कि वो अपना मैसेज बेहद क्लियर और बोल्ड स्टाइल में व्यूअर्स तक पहुंचा पाया है. डायरेक्टर ने आपको टिपिकल बॉलिवुड फिल्म नहीं परोसी है पर उसके बावजूद फिल्म आपको इंप्रेस करती है और अपने से जोड़े रखती है. अपने डीग्लैम अवतार में कंगना के लिए सिर्फ एक वर्ल्ड जुबान पर आता है एक्सीलेंट. फिल्म पूरी तरह कंगना की है और वो बखूबी उसे अपने कंधो पर उसे उठा कर चली हैं. ऐसा नहीं है कि बाकि एक्टर जैसे राजकुमार रॉव या लीसा हेडेन कहीं से भी कमजोर हैं पर ये भी सच है कि वो कंगना के लेबल तक नहीं पहुंचे हैं क्योंकि ये कंगना की कहानी है. म्यूजिक असरदार है अमित त्रिवेदी ने फिर अपना टैलेंट प्रूव किया है हंगामा हो गया तो हंगामा कर ही रहा है लंदन ठुमकदा भी हिट है. बाकी ट्रैक भी सुनने वाले हैं. कुल मिला कर वोमेन सेंट्रिक फिल्मों के बीच अपनी आइडेंटिटी मनवाने में फिल्म पूरी तरह कामयाब है जबकि ये एक आम इंडियन हाउस होल्ड की स्टोरी है जिसमें कोई पॉलिटिकल थ्रेट या एक्सप्लॉइटेशन का मुद्दा नहीं उठाया गया है. ये बस एक औरत के औरत होने और उसे मानने की कहानी है.    

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