फिल्म की कहानी लंदन की एक ऐसी तेज रफ्तार ट्रेन के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसकी स्पीड अगर 60 किमी से जरा भी कम हुई तो उसमें धमाका हो जाएगा और ट्रेन में बैठे पांच सौ से ज्यादा लोग मारे जाएंगे.


ट्रेन में बम लगाया गया है. इस धमाके की प्लानिंग की है आदिल (जायेद खान), आकाश (अजय देवगन) और उसकी साथी मेघा (समीरा रेड्डी) ने, जिन्हें करोड़ों रुपियों की जरूरत है . इस सिचुएशन से निपटने के लिए रिटायर्ड होने जा रहे लंदन के पुलिस अफसर अर्जुन खन्ना (अनिल कपूर) को बुलाया जाता है. और उधर, ट्रेन ट्रैफिक कंट्रोल रूम में तेज रफ्तार ट्रेन पर नजर रखने की जिम्मेदारी सूरी (बोमन ईरानी) पर है, जिसकी बेटी भी उसी ट्रेन पर सवार है.

सूरी के सामने ट्रेन को रोकने के सारे विकल्प बंद हैं और उधर, अर्जुन भी सुराग दर सुराग के सहारे संदिग्धों पर पहुंचने में लगा है. अर्जुन के हाथ सबसे पहले मेघा लगती हैं लेकिन वो किसी काम की नहीं होती.  उसके बाद आदिल के करीब पहुंच कर भी अर्जुन के हाथ कुछ नहीं लगता. उधर ट्रेन पर सवार एक अन्य पुलिस अफसर (मोहनलाल) भी चाह कर भी पुलिस की मदद नहीं कर पाता है.

कॉमेडी फिल्मों से एक्शन थ्रिलर पर जम्प मारने की प्रियदर्शन की क्या वजह रही होगी इसका तो पता लगाना मुश्किल है लेकिन एक बात क्लीयर है कि यह फिल्म कई सरी हॉलीवुड की फिल्मों से इंस्पायर्ड है. यह फिल्म हॉलीवुड फिल्म स्पीड (1994), दि टेकिंग ऑफ पैल्हाम 123 (1974 एवं 2009) अन्स्टॉपेबल (2010), दि बुलेट ट्रेन (1975, जापानी फिल्म) का एक ऐसा कॉकटेल है, जिसे चखा तो जा सकता है, लेकिन उसका मजा नहीं लिया जा सकता. खुद बॉलीवुड में इससे मिलती-जुलती एक फिल्म दि बर्निंग ट्रेन (1980) भी बनी है चुकी है.  फिल्म का नाम तेज क्यों है, ये फिल्म देखने के 10-15 मिनट में ही समझ आ जाता है.  एक तेज रफ्तार ट्रेन के साथ तेजी से घूमते घटनाक्रम के बीच तेजी से शूट किए गए सीन्स और इस बीच तेजी से फिल्माया गया मल्लिका सहरावत का आइटम नंबर इस फिल्म के टाइटल को पूरी तरह से शूट करता है. 

लेकिन फिल्म में मल्लिका का आइटम नंबर लैला पूरी तरह से फ्लॉप रहा.  फिल्म एक धमाके के अलावा ढेर सारे रुपयों के लेन-देन के साथ-साथ कुछ जगह इमोशनल सीन्स भी हैं. जिसे इंटरवल के बाद ही महसूस की जा सकता है. . क्लाईमैक्स में भी यह तेज वालीस्पिरिट जारी रहती है.  फिल्म में कई और कमियां भी हैं.  लेकिन हिन्दी फिल्में जब विदेशों में शूट होती हैं या फिर विदेशी फिल्मों की तर्ज पर बनी होती हैं तो ऐसी चूकों को नजरंदाज कर देना चाहिए.  कुछ मिला कर अच्छी सिनेमैटोग्राफी, तेज संगीत और तेजी से बदलते घटनाक्रम के साथ फिल्म आपको बोर नहीं होने देगी.

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