डब्बावालों की एक मिस्टेक के चलते एक नाखुश वाइफ इला (निमृत कौर) और रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके सज्जन फनांर्डेज (इरफान खान) एक दूसरे के करीब आ जाते हैं. इला के हसबेंड के पास जाने वाला खाना भले ही गलती से सज्जन को मिलता है पर एक अनदेखा कमिटमेंट बिना किसी गलती के उन दोनों की जिंदगी में उतर आता है. लंचबॉक्स में रखे लेटर्स उन दोनों को एक अनदेखी अनसुनी डोर में बांध देते हैं. दोनों सिर्फ लेटर्स के सहारे ना सिर्फ ण्क दूसरे का सहारा बन जाते हैं बल्कि उम्र की इस शाम में प्यार का ये अहसास उन्हें उन खुशियों से दो चार कराता है जिसे वो अपनी पूरी लाइफ में नहीं जी सके. बिना एकदूसरे को देखे वो एक दूसरे को साथ रहने वालों से ज्यादा समझते हैं.

डिफरेंट अवॉर्ड शोज की जर्नी करके इंडिया में आयी ये फिल्म सचमुच एक ट्रीट है फिल्म व्यूअर्स के लिए भी और उनके लिए भी जिनके लिए प्यार बस प्यार है उसका कोई नाम और पहचान नहीं है. इर फान अपनी उम्र से कहीं बड़े एक ओल्ड रिटायरमेंट के करीब पहुंचे आदमी के रोल में इतने नेचुरल लगे हैं कि धोखा होने लगता है कि वो इरफान ही हैं. निर्मत कौर ने भी बहुत ज्यादा बोले बिना एक आम औरत के उस सच को जुबान दी है जो अपनी जिम्मेदारियों के बीच अपने हिस्से के प्यार को तलाशती ही रह जाती है. नवाजुद्दीन सिद्दिकी सज्जन के सचमुच सज्जन साथी हैं जिनके बिना फिल्म में काफी कुछ मिसिंग लगता.

डायरेक्टर रीतेश बत्रा ने बेशक ऑफबीट सब्जेक्ट उठा कर ट्रेंड को तोड़ा है लेकिन वो नए सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने की ख्वाहिश रखने वालों के लिए एकदम सही ट्रेंड सेटर प्रूव हुए हैं. फिल्म की कहानी उसकी थीम को बहुत क्लियरली और लविंगली पोट्रे करती है. इस फिल्म को एक साफ्ट पोयट्री कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा.   

Cast: Irrfan Khan, Nimrat Kaur, Nawazuddin Siddiqui, Bharati Achrekar

Direction: Ritesh Batra

 

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