स्क्रीन से नजर नहीं हटेगी
फिल्म का फर्स्ट हॉफ इतना बेहतरीन है कि आप स्क्रीन से चिपके रहेंगे। फिल्म में आपको कुछ ऐसे दर्दभरे सीन दिखेंगे जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। यही नहीं ये सींस रियलिस्टिक भी लगते हैं इसमें कोई दिखावा नहीं लगता। फिल्म देखते-देखते आप दानिश की जिंदगी से जुड़ जाएंगे। आपको फरहान की आंखों में दानिश की लाचारी और पछतावा दोनों नजर आएगा। दानिश की जिंदगी में पंडित जी का आना, आपको भी अच्छा लगेगा। इसके अलावा इन दोनों की असामान्य जोड़ी तब और आकर्षक लगती है, जब ये रात में शराब पीकर मौज-मस्ती कर रहे होते हैं। अब अगर सेकेंड हॉफ की बात करें तो फिल्म में ड्रामेटिकली बदलाव होता है जिसके चलते यह चमक खोती जाती है और आपको थोड़ी निराशा मिलती है। इसके अलावा फिल्म के क्लाइमेक्स का दर्शकों को अंदाजा लग जाता है जोकि काफी लंबा भी खिंचता है।

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डॉयलॉग हैं काफी दमदार
फिल्म के डॉयलॉग्स दर्शकों को प्रभावी करेंगे। इसके लिए अभिजीत जोशी और गजल धालीवाल को शुक्रिया कहना पड़ेगा कि उन्होंने ऐसे डॉयलॉग्स लिखे जो आपका ध्यान अपनी ओर खींचेंगे। इस फिल्म की सबसे अच्छी खासियत अमिताभ बच्चन का होना है। अमिताभ का रोल शोक में डूबे हुए ऐसे पिता का है, जोकि बदला लेने के लिए कुछ भी कर गुजरने का हौसला रखता है। आप उनकी आंखों को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि उन्होंने कैरेक्टर को किस तरह जिया है। फरहान ने अमिताभ का बखूबी साथ निभाया है। फिल्म के सेकेंड हॉफ में दर्शकों को एक्टिंग से ज्यादा किरदारों का गुस्सा पर्दे पर नजर आएगा। फिल्म के शुरुआती दस मिनट में अदिति राव हैदरी के चेहरे पर मुस्कान दिखेगी, जबकि बाकी पूरी फिल्म में वह उदास ही नजर आती हैं। इसके बावजूद वह काफी खूबसूरत दिखी हैं। मानव कौल के लिए ज्यादा कुछ करने को नहीं था लेकिन उनके छोटे रोल ने काफी प्रभावित किया। निर्देशन बिजॉय नामबियार काफी अच्छी फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में ड्रामा को रियलिस्टिक सींस में कैसे बदला जाता है, यह बिजॉय अच्छी तरह से जानते हैं। तो फाइनली इतना जरूर कहा जा सकता है कि, यह बेहतरीन फिल्म है और इसे एकबार जरूर देखा जाना चाहिए।

Review by : Shubha Shetty Saha
shubha.shetty@mid-day.com

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