-उत्कल एक्सप्रेस में घायल संतों की मदद करने को आगे आए थे मुस्लिम

- हादसे के दौरान दिखी इंसानियत और भाईचारे की मिसाल

- ट्रेन हादसे में जख्मी संतों ने सुनाई आपबीती, हर पल मिली सहायता

पारुल सिंघल।

मेरठ। खतौली में हुए उत्कल एक्सप्रेस में शनिवार को हुए दर्दनाक और वीभत्स हादसे ने जहां व्यवस्था पर कई बड़े सवाल खड़े कर दिए। वहीं, इंसानियत और भाईचारे की ऐसी तस्वीर भी पेश की है जो हिंदू और मुस्लिम होने से परे मानवता की मिसाल कायम करती है।

भगवान सरीखे बने मुस्लिम युवक

उत्कल एक्सप्रेस की जनरल बोगी में मुरैना से हरिद्वार गंगा में डुबकी लगाने जा रहे संतलोकी बालकदास महाराज और उनके छह साथियों के लिए शनिवार शाम कुछ मुस्लिम युवक भगवान से कम नहीं थे। मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड में एडमिट बालक दास ने बताया कि सब कुछ अचानक हुआ। बहुत तेज आवाज हुई, अचानक चीख पुकार मच गई। झटका इतना तेज था कि मेरा सिर दो फीट आगे जाकर सामने वाली सीट से जा टकराया।

तुरंत दौड़कर आए युवक

उन्होंने बताया कि किसी को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर हुआ क्या? लोग जान बचाने के लिए चिल्ला रहे थे। बेहोशी छा रही थी तभी अचानक पास की बस्ती से कुछ युवक दौड़कर आए और एक-एक कर डिब्बे में फंसे यात्रियों को बाहर निकालने लगे। अगर समय पर वह हमें बोगी से न निकलते तो हमारा जिंदा बचना मुश्किल था।

हर पल मदद में जुटे रहे लोग

इसी टोली में शामिल संत मोनी ने बताया कि हादसे के वक्त स्थानीय लोग तुरंत मदद के लिए आ गए थे। जब तक एंबुलेंस नहीं आई थी, घायलों की मदद के लिए लोग अपने घरों से चारपाई, पानी, खाना लेकर पहुंच गए। हादसे से पांच मिनट पहले तक हम खिड़की से बाहर देख रहे थे लोग अपने घर के बाहर खड़े थे लेकिन किसे पता था कि चंद मिनटों बाद ही हंसी खुशी का मंजर मातम और चीख-पुकार में बदल जाएगा।