नियमित रूप से आल्हा-ऊदल करते है देवी पूजन

इलाकाई लोगों का कहना है कि महोबा से सटे मां चंडिका देवी मंदिर में आल्हा-ऊदल नियमित रूप से पूजा करते थे।यह आल्हा-ऊदल की कुल देवी का मंदिर था। आज भी कभी मंदिर के घंटे बजने लगते हैं, तो कभी मंदिर के आसपास पानी भरा मिलता है। मंदिर के पुजारी स्वरुप शुक्ल बताते हैं कि मंदिर में आज भी आल्हा का आगमन होता है। उन्हें मैहर की देवी ने अमर होने का वरदान दिया था। कई बार रात में मंदिर के दर्जनों घंटे घनघनाने लगते हैं। उन्होंने खुद ऐसा होते देखा है। यही वजह है कि मंदिर में कभी कोई रात में नहीं रुकता है।

राजा कीर्ति चंद्र वर्मन ने बनवाया था मंदिर

मंदिर महोबा के राजा कीर्ति चंद्र वर्मन ने 831 ई. में बनवाया था। मंदिर में 10 फीट ऊंची मां चंडिका की लगी बड़ी प्रतिमा में 18 हाथ हैं।मंदिर के दूसरे पुजारी राज बहादुर बताते हैं कि युद्ध से पहले आल्हा-ऊदल चंडिका देवी की शरण में आते थे। वे तलवार को मां के कदमों में रखते थे। इसके बाद युद्ध के लिए निकलते थे।मंदिर में दर्जनों छोटे-बड़े घंटे लगे हैं। ऐसा कई बार देखा गया है कि घंटे अपने आप ही बजने लगे हैं। इसके बाद चंडिका देवी के आसपास पानी भी भरा मिला है।

आल्हा-ऊदल ने लड़ी थी 52 लड़ाईयां

इतिहासकारों की माने तो बताया जाता है कि 12वीं सदी में आल्हा-ऊदल ने महोबा के लिए लगभग 52 लड़ाइयां लड़ीं थी। उन्हें सभी लड़ाइयों में जीत भी हासिल हुई। दोनों ने पृथ्वीराज चौहान को भी अपने दम पर भारी नुकसान पहुंचाया था। आल्हा-ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान से तीन लड़ाइयां लड़ी थीं लेकिन तीसरी लड़ाई में ऊदल को पृथ्वीराज चौहान ने मार दिया। इसके बाद ऊदल के वियोग में आल्हा कहीं चले गए जिसके बाद से उन्हें कभी नहीं देखा गया।

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