माना जा रहा है कि यह रॉकेट 100 टन तक वज़न को अंतरिक्ष में ले जा सकता है और यह अभी तक मौजूद अंतरिक्ष यानों की क्षमता से कहीं ज़्यादा है। फिलाहाल इस रॉकेट को स्पेस लॉंच सिस्टम यानि ‘एसएलएस’ की संज्ञा दी गई है।

सफल होने पर यह रॉकेट चांद पर जाने वाले अपोलो मिशन से भी बड़ा साबित होगा। इस नए रॉकेट की बनावट पर 18 अरब डॉलर का खर्च आएगा और इसका पहला परीक्षण अगले छह साल में किया जाएगा।

इस मौके पर नासा के वरिष्ठ अधिकारी जनरल चार्ल्स बोल्डन ने कहा, ''आज अमरीकी अंतरिक्ष अभियान के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। राष्ट्रपति ओबामा ने हमसे चुनौतियां स्वीकार करने और कुछ बड़ा सोचने की बात कही थी और हम बिलकुल वही कर रहे हैं.''

उन्होंने कहा कि जहां अब तक अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष यानों में घूमने पर गर्व महसूस करते थे उसी तरह वह दिन अब दूर नहीं जब वो मंगल ग्रह पर चहलक़दमी करेंगे।

इस रॉकेट को बनाने के लिए तैयार किए गए डिज़ाइन में कई तकनीक मौजूदा अंतरिक्ष यानों से ली गई हैं। इसके कई ईंजन फिलहाल मौजूद तकनीक पर ही आधारित होंगे। लेकिन जहां अब तक के विशिष्ट अंतरिक्ष यानों में तीन ऊर्जा इकाईयां होती थीं वहीं एसएलएस में पांच ऐसी इकाईयां होंगी।

International News inextlive from World News Desk