नेशनल बुक फेयर के सांस्कृतिक मंच पर स्व। दूधनाथ सिंह के कृतित्व व व्यक्तित्व पर हुई परिचर्चा

ALLAHABAD: नॉलेज हब की ओर से आयोजित दस दिवसीय नेशनल बुक फेयर के दूसरे दिन सांस्कृतिक मंच पर कथाकार स्व। दूधनाथ सिंह के कृतित्व व व्यक्तित्व पर चर्चा हुई। कवि सम्मेलन का आयोजन भी हुआ। वक्ताओं ने दूधनाथ के सहज जीवन पर प्रकाश डाला। सुधीर सिंह ने कहा कि वे सभी के दिलों में हमेशा मौजूद रहेंगे। वे जिंदादिल थे, यह बात उनकी रचनाओं में दिखती है।

भाषा की सहजता में है खिंचाव

प्रो। संतोष भदौरिया ने कहा कि स्व। दूधनाथ के कार्यो को आगे बढ़ाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। कामरेड रामप्यारे राय ने कहा कि उनकी दृष्टि एक ही थी पर वे अलग दृष्टि से चीजों को देखते थे। इससे नवोदित साहित्यकारों को प्रेरणा लेनी चाहिए। वरिष्ठ कवि यश मालवीय ने कहा कि उनकी भाषा की सहजता से ही है कि हर कोई उनकी तरफ खिंचा चला आता था।

'इसीलिए मरते नहीं तुलसी, सूर, कबीर'

दूसरे सत्र में स्व। दूधनाथ सिंह को समर्पित कवि सम्मेलन हुआ। डॉ। श्लेष गौतम ने 'लिखा किया रह जाएगा रहता नहीं शरीर, इसी लिए मरते नहीं तुलसी, सूर, कबीर' पंक्तियां सुनाई। यश मालवीय की पंक्ति 'दबे पैरों से उजाला आ रहा है, फिर कथाओं को खंगाला जा रहा है' खूब सराही गई। जय कृष्ण राय तुषार की लाइनें 'नए घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो, वहीं से मां दिया बनकर के तुमको रोशनी देगी' सुन कर लोग तालियां बजाने से खुद को नहीं रोक सके। नालेज हब के कर्ताधर्ता देवराज अरोरा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।