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ALLAHABAD: ALLAHABAD: हौसला बुलंद हों तो जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के फाइन आ‌र्ट्स डिपार्टमेंट की स्टूडेंट सरिता द्विवेदी इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। बचपन में ही एक हादसे में अपने दोनों हाथ और दायां पैर खो देने के बावजूद आज वह सोसायटी के फिजिकली हैंडीकैप्ड लोगों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं। वह आज भी अपने सभी काम खुद करती हैं। इसके लिए वह अपने बाएं पैर और मुंह का सहारा लेती हैं। बकौल सरिता, अपनी विकलांगता को कभी मैंने चैलेंजिंग वे में नहीं लिया। अपने काम खुद करती हूं। लोग हाथों से करते हैं तो मैंने पैर से करने की कोशिश की। आज मेरी बनाई पेंटिंग्स की लोग तारीफ करते हैं लेकिन मैं इससे बेहतर करने की कोशिश करती हूं। आर्मी से रिटायर्ड विजयकांत द्विवेदी की बेटी सरिता को पेंटिंग के साथ ड्रेस डिजाइनिंग और कुकिंग का शौक है। उनके दृढ़ विश्वास और बहादुरी के लिए दो नेशनल और एक इंटरनेशनल अवार्ड भी मिल चुका है। इनमें नेशनल अवार्ड फार द इम्पावरमेंट ऑफ पर्सस विद डिसेबिलिटी ख्008, बाल श्री अवार्ड ख्00भ् और इंटरनेशनल अवार्ड फ्राम एम्बैंसी ऑफ एरेबिक रिपब्लिक ऑफ इजिप्ट शामिल हैं। सरिता कहती हैं कि मेरे पैरेंट्स ने भी मुझे स्पेशल अटेंशन नहीं दी और सिंपली ट्रीट किया, जिससे मुझमें स्वावलंबी बनने की इच्छा जागी।