पूर्वी भारत में है ढाक के साथ करते हैं शुरुआत
पूर्व भारत में बंगालियों के बीच नवरात्रों का अपना एक अलग महत्व है। ऐसा नहीं है कि इन नौ दिन यहां किसी और की पूजा होती है। पूजा यहां भी मां दुर्गा के नौ रूपों की होती है, लेकिन जरा अलग ढंग से। जगह-जगह यहां कमेटी बनाकर खास दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। भव्य पंडालों में ये दुर्गा पूजा नौ दिन तक चलती है। खास बंगाली इन नौ दिनों को जरा अलग ढंग से मनाते हैं। इनके नौ दिनों में हर दिन की शुरुआत ढाक बजाकर होती है। ऐसा करके व मुंह से अलग आवाज निकालकर वे मां को जगाते हैं। दुर्गा पूजा को बंगाली में दुर्गोत्सव भी कहा जाता है। ये खास पांचवे दिन से शुरू होती है। हर दिन का अपना एक अलग नाम होता है। पांचवे दिन को महालया, छठे को षष्ठी, सातवें को महा सप्तमी, आठवें को महा अष्टमी और नवें दिना को महानवमी व दसवें दिन को विजयादशमी कहते हैं।
होली खेला
बंगाली दुर्गा पूजा के दौरान एक खास दिन को होली खेला भी रखते हैं। इसमें महिलाएं एकदूसरे को सिंदूर लगाकर होली खेलती हैं। अब तो देश के लगभग हर एक कोने में नवरात्र के अवसर पर दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाने लगा है। इस आयोजन में मां का पंडाल सजाने के साथ और भी तरह-तरह के आयोजन किए जाते हैं। बच्चों के लिए झूले और बड़ों के लिए भी खास इंतजाम किए जाते हैं। अलग-अलग दिन प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। कुल मिलाकर नौ दिन रौनक का समां बंध जाता है।
उत्तर में नौ दिनों का रंग है ऐसा
यहां नवरात्रों के शुरू होते ही कलाकारों, गायकों और खास पूजा कराने वालों की बुकिंग शुरू हो जाती है। लगभग हर घर में माता की चौकी और जागरण जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कराया जाता है। हालांकि ऐसे कार्यक्रमों को नवरात्र के बाद भी कराया जा सकता है, लेकिन मां के इन नौ दिनों में इन आयोजनों की अपनी अलग महत्ता होती है। अब अगर बात करें इन दोनों आयोजनों के बीच अंतर की, तो पूरी रात चलने वाले मां के भजनों के कार्यक्रम को जागरण कहते हैं। वहीं 'माता की चौकी' का कार्यक्रम सिर्फ तीन घंटों का होता है। इन तीन घंटों में मां की कीर्तन-भजन करने के बाद सभी भक्तों को मां का प्रसाद देकर विदा किया जाता है।
नौ दिन का व्रत
मां के इन दिनों की खास महत्ता को देखते हुए कई श्रद्धालु पूरे नौ दिनों का व्रत भी करते हैं। वहीं जो पूरे नौ दिन के व्रत नहीं कर सकते, वे प्रथम और अष्टमी के नवरात्र को व्रत करते हैं और नवमी वाले दिन नौ कन्याओं का भोज कराने के बाद व्रत खोलते हैं। बात करें व्रत की तो इन नौ दिन व्रतधारी लोग सादा भोजन करते हैं। इसमें आलू, सिंघाड़े या कूटू के आटे और फलों को खास तरजीह दी जाती है।
गुजरात के खास डांडिया रास से मचती है धूम
गुजरात की खासियत, यहां का डांडिया रास नवरात्री के दिनों में अपने पूरे जोश पर होता है। इन दिनों जगह-जगह पर डांडिया जैसे उत्सवों का आयोजन किया जाता है। हर उम्र के पुरुष, महिलाएं, बच्चे व बड़े इस आयोजन में हिस्सा लेते हैं। इस मौके पर युवक और युवतियां खास परिधान में नजर आते हैं। युवक राजस्थानी लिबास कफनी-पाजामा पहनते हैं और युवतियां घाघरा-चोली। इस दौरान मां की प्रतिमा की पूजा करने के बाद सभी प्रतिभागी उनके सामने डांडिया के साथ अपने उत्साह का प्रदर्शन करते हैं। इस मौके पर गरबा और डांडिया दो तरह के नृत्यों को लेकर आयोजन कराया जाता है। डांडिया करने के लिए दो लकड़ी के डंडों का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं गरबा के लिए हाथों से तालियों का इस्तेमाल किया जाता है। आयोजन के दौरान रोशनी और फूलों से बेहतरीन सजावट की जाती है।
तीन देवियों में बटे हैं ये नौ दिन
ये पर्व नौ दिनों तक चलता है। ब्राह्मणों के घरों में जहां इन नौ दिनों के लिए खास पूजा-अर्चना की व्यवस्था कराई जाती है। वहीं किसान इन दिनों में खेतों में कटाई करने में जुट जाते हैं। सारा दिन कटाई करने के बाद शाम को एकजुट होकर वे मां की अराधना करते हैं। हिंदू रीति-रिवाज पर गौर करें तो इन नौ दिन खासतौर पर तीन देवियों के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। मां पार्वती, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती। मां की पूजा के लिए पहले दिन घरों में कलश स्थापना भी होती है। इस नवरात्र और नौ रातों के लिए ऐसा भी कहा जाता है कि इन दिनों को अच्छाई की बुराई पर जीत के रूप में भी मनाया जाता है। हिंदू रिवाज के अनुसार किसी भी अच्छे काम की शुरुआत के लिए इन नौ दिनों को सबसे अच्छा माना जाता है।
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