- दिल्ली कोर्ट के आदेश का सबने किया स्वागत

- आई नेक्स्ट के ग्रुप डिस्कशन में खुलकर बोले लोग

- कहा, नए जमाने के साथ चलना ठीक लेकिन अपनी परंपराओं को छोड़ना अच्छी बात नहीं

GORAKHPUR: दिल्ली के कोर्ट की एक पैरेंट्स की अधिसूचना की सुनवाई करने के बाद दिए गए फैसले का सबने स्वागत किया है। लोगों ने माना कि इस फैसले से माता-पिता व अभिभावकों के सम्मान की हमारी परंपरा को बल मिलेगा। लोगों की मानें तो नए दौर में जमाने के साथ चलना ठीक बात है लेकिन अपनी समृद्ध परंपरा को छोड़ देना कतई ठीक नहीं। आई नेक्स्ट की तरफ से ऑर्गनाइज ग्रुप डिस्कशन में लोग खुलकर बोले। कहा कि कोर्ट के इस निर्णय से बुजुर्गो के अंदर सामाजिक सुरक्षा की भावना जागृति होगी। साथ ही उनको मॉरल सपोर्ट भी मिलेगा।

कानून ने दी सामाजिक सुरक्षा

ग्रुप डिस्कशन में आए गेस्ट ने एक स्वर से कहा कि कोर्ट का यह निर्णय पैरेंट्स को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का कार्य करेगा। एडवोकेट जगदीश श्रीवास्तव का कहना है कि आधुनिक लड़के काफी एडवांस होते जा रहे हैं। अधिक जरूरतों की वजह से वे अधिक से अधिक कमाई करने के प्रेशर में आ गए हैं। इसके लिए वह सबसे पहले वह पुश्तैनी संपत्ति पर नजर डालते हैं और पिता उसको रोकना चाहता है तो फिर तकरार बढ़ जाती है। सामाजशास्त्री कीर्ति पांडेय का कहना है कि हम मॉडर्न एरा की तरफ बढ़ रहे हैं और एकाकी परिवार के मॉडल को अपना लिया है। ऐसे में पैरेंट्स परिवार से बाहर हो गया है। कोर्ट का यह फैसला बहुत ही सही है, इससे पैरेंट्स के सामाजिक सुरक्षा को और अधिक मजबूती मिलेगी।

कुछ सोचने वाली बातें

- कल हम भी बुजुर्ग होंगे, यूथ को सोचने की जरूरत है

- बेटों को अपने माता-पिता के लिए समय निकालने की जरूरत है

- घर के गार्जियन को यह तय करना होगा कि दिन में एक बार पूरा परिवार साथ रहे

- सबको एक साथ जोड़ने वाला पारिवारिक कार्यक्रम प्रत्येक छह माह में एक बार आयोजित करने की जरूरत है

- पत्‍‌नी को खुश करने के लिए माता-पिता को दुखी न करें

- पुराने संयुक्त परिवार की परंपरा को अपनाने की जरूरत है

- बुजुर्गो से दिन में या रात को कम से कम एक बार बात जरूर करें

- उनको अपने बच्चों से दूर न करें

कोट्स

बेटों का हक पिता की प्रॉपर्टी पर होता है, लेकिन जिस तरह से बेटों के अंदर आधुनिकता शामिल हो रही है और वह बिना कुछ किए ही बहुत कुछ पाना चाहते हैं। इसमें सबसे पहले वह अपने पिता की संपत्ति को पाना चाहते हैं। इसके लिए वह कई बार ज्यादती भी करता है। इससे अब ऐसे युवकों में कानून का डर पैदा होगा।

जगदीश श्रीवास्तव, एडवोकेट

मां-बाप का सपना होता है कि उनका बेटा बड़ा होकर उनके बुढ़ापे का सहारा बने, लेकिन जब मां-बाप कमजोर हो जाते हैं तो बेटे उनको छोड़ देते हैं। ऐसे में बुजुर्गो के सामने संकट खड़ा हो जाता है। अब संपत्ति के लालच में माता-पिता को साथ रहना बच्चों की मजबूरी बन जाएगी।

अशोक कुमार निषाद, सामाजिक कार्यकर्ता

कोर्ट का यह निर्णय संभवत: अर्जित संपत्ति पर अपने हक को लेने को लेकर आया है। अब समाज को यह सोचने की जरूरत है कि हम अपने बुजुर्गो को अगर बोझ समझ रहे हैं तो उनके सामने भी कोर्ट जाने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचता है।

रामकृष्ण त्रिपाठी, एडवोकेट

पूर्वज की प्रॉपर्टी की हकदार आने वाली पीढ़ी ही होगी, लेकिन आधुनिक युग में किसी के पास जल्द से जल्द बहुत कुछ पाने के चक्कर में परिवार में मतभेद शुरू हो जाता है। इसी मतभेद के कारण कोर्ट को ऐसे फैसले देने पड़ते हैं। कोर्ट का यह फैसला बहुत ही सराहनीय है।

प्रो। कीर्ति पांडेय, समाजशास्त्री

सबको सीख लेने की जरूरत है कि बच्चों की जरूरतों को बचपन में पैरेंट्स पूरा करते हैं, लेकिन पैरेंट्स के बुजुर्ग होने के बाद बच्चे उनके प्रति अपने दायित्व को भूल जाते हैं। ऐसे में आज के युवाओं को इस बात को समझने की जरूरत है। कोर्ट का निर्णय भी यही कहता है।

नंदलाल, सर्विसमैन