कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि नीरज की अस्थियां और मोबाइल फोन उसकी फैमिली को सौंप दिया जाए। अगर वो लेने से इन्कार करें तो पुलिस उन्हें डिस्ट्रॉय कर दे। नीरज के पिता का कहना है कि उस वक्त जब पुलिस से अस्थियां मांगी गई तो उन्होंने दी नहीं। अब यह अस्थियां तभी लूंगा जब दोनों को उनके गुनाह के मुताबिक सजा मिल जाएगी.

तो मार दिया जाऊंगा

नीरज के पिता का कहना है कि  मारिया की रिहाई के बाद उनको और उनकी फैमिली को जान का खतरा हो गया है। अगर हम मुंबई जाते हैैं तो मार दिए जाएंगे। इसलिए हमें सिक्योरिटी की जरूरत है। उनके घर मिलने पहुंचे सेंट्रल कोल मिनिस्टर श्रीप्रकाश जयसवाल ने सुरक्षा देने का वायदा किया। डेढ़ लाख रुपये के कम्पनसेशन पर अमरनाथ ग्र्रोवर ने कहा कि मैं मारिया के एडवोकेट को ब्लैक चेक देता हूं। वो जो चाहें रकम भर लें, मैं कहीं से भी इंतजाम करके उन्हें दूंगा। बस, मेरी एक शर्त है कि मारिया और जीरोम का भी वही हाल हो जो नीरज का
किया गया.

मां को करनी है मारिया से बात

मारिया के प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कहने पर की वह बेगुनाह है, नीरज की मां नीलम का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने कहा कि मारिया से मेरी डायरेक्ट बात कराई जाए। मै उससे पूछना चाहती हूं कि आखिर वह इतना नीचे गिरकर झूठ क्यों बोल रही है?  उसे इस बात की शर्म भी नहीं है कि हमारा बेटा गया है और कम्पनसेशन की बात कही जा रही है। वह सच बोल रही होती तो यह बताए कि मेरे बेटे का मोबाइल फोन उसके घर पर क्या कर रहा था? वह कार कहां है जिसमें उसकी लाश को रखकर ले गए थे? मारिया की चेन और पेंडेंट नीरज की बॉडी पर क्यों मिले? नीरज की मां यह भी कहती हैं कि शुरुआत में तो पूरी कार्रवाई ठीक चल रही थी, आखिर में क्या ट्विस्ट आया कि ऐसा फैसला दिया गया?

बहन ने की थी उससे बात

नीरज की बहन शिखा ने बताया कि मारिया से 7 मई 2008 को उसकी बात हुई थी। उसने कहा था कि वो कॉल नहीं उठा पाई थी। समझ नहीं पा रही थी कि  आप लोगों से क्या कहूं। इतना कहने के बाद फोन कट गया था। दोबारा मिलाया तो उसने उठाया मगर पीछे से किसी के चीखने-चिल्लाने की आवाज आ रही थी। वो शायद जीरोम था। शिखा कहती है कि नीरज के दोस्तों ने बहुत साथ दिया। वह पल पल की जानकारी हमें दे रहे थे.

उस समय वो हमारी थी

नीरज के मर्डर के बारे में उसके परिवार वालों को 21 मई 2008 को पता चला। उससे पहले उसके परिवार ने मारिया से फोन पर बात की। उसके बाद जब अमरनाथ ग्रोवर मुंबई पहुंचे तो मलाड थाने में नीरज की गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए नीरज के दोस्त उनके साथ गए थे। उस वक्त उन्हीं लोगों ने मारिया को फोन करके बुलाया था। उसके बाद 10 मई से 21 मई 2008 तक मारिया नीरज के परिवार वालों से ठीक ऐसे पेश आ रही थी जैसे उन्हीं के घर की सदस्य हो। पुलिस से नीरज को खोजने की रिक्वेस्ट करती थी। नीरज मर्डर केस में मुंबई सेशंस कोर्ट के डिसीजन को लेकर हर तरफ चर्चा गर्म होती जा रही है। डायरेक्टली तो कोर्ट पर कोई कमेंट नहीं करना चाहता है लेकिन सभी का मानना है कि फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करनी चाहिए। मारिया को वापस सलाखों के पीछे भेजने के लिए सिटी के एडवोकेट्स भी अपील ही एक मात्र ऑप्शन बता रहे हैं। मगर, इस बात को लेकर जरूर कंफ्यूजन है कि अपील स्टेट गवर्नमेंट ही कर सकती है या नीरज के पिता के पास भी अपील करने के अधिकार है।

करा सकती है

एडवोकेट कौशल किशोर शर्मा के मुताबिक, मारिया को दोबारा जेल भेजने के लिए सेशंस कोर्ट के डिसिजन को हाईकोर्ट में चैलेंज करना ही एक रास्ता है। लेकिन, अपील का अधिकार स्टेट गर्वनमेंट को ही है। पीडि़त परिवार के लोग इस फैसले पर सिर्फ रिवीजन ही करा सकते है। इसके बाद हो सकता है कि नीरज के पैरेंट्स को
इंसाफ मिल जाए.

Revision और appeal में फर्क

अपील के दौरान कोर्ट में केस से रिलेटेड नए एविडेंसस शामिल किए जा सकते है। जबकि रिवीजन में उन्हीं एविडेंसेस को दोबारा रीड किया जा सकता है जिनके बेस पर फैसला दिया गया है। इस दौरान यह जानने की कोशिश होती है कि सुबूतों को जांचने या उन्हें समझने में कोई चूक तो नहीं हो गई।

नीरज के पिता को भी हक

सीनियर एडवोकेट नंदलाल जायसवाल इस मसले पर इतर राय रखते हैं। जायसवाल के मुताबिक, सीआरपीसी में अमेंडमेंट के बाद स्टेट गर्वनमेंट के साथ ही नीरज के पिता भी लोअर कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चैलेंज कर सकते हैं.