इनका असली नाम सैफ़ुद्दीन था और इनकी मृत्यु आजमगढ़ के मुबारकपुर इलाके में अपने घर पर हुई।'कर्नल' निजामुद्दीन के बेटे शेख अकरम ने बीबीसी को बताया, "रात को बाबूजी ने दाल, देसी घी और एक रोटी भी खाई थी।"उन्होंने कहा, "पिछले कुछ दिनों से बाबूजी की तबीयत ढीली चल रही थी और उन्हें सर्दी-ज़ुखाम की शिकायत थी। पिछले हफ़्ते उन्होंने बक्से से आज़ाद हिंद फ़ौज वाली अपनी टोपी निकलवाई और पहन कर घूप में लेटे रहे थे।''
निजामुद्दीन के बेटे ने बताया कि पिता को कभी डायबिटीज़ या हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत नहीं रही थी। 2015 में मैं ख़ुद उनके घर पर मिलने गया था तब उनके नाश्ते का समय था जिसमें मखाने और दूध का सेवन चल रहा था। थोड़ा ऊंचा सुनते थे लेकिन सवाल का जवाब ज़रूर देते थे। निजामुद्दीन ने बताया था, "नेताजी से उनकी पहली मुलाक़ात सिंगापुर में हुई थी जहाँ आज़ाद हिन्द फ़ौज की भर्ती चल रही थी।"उन्होंने बताया था कि 'कर्नल' का नाम उन्हें आज़ाद हिंद फ़ौज के नेता और भारतीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस ने दिया था।बीबीसी हिंदी से हुई विशेष बातचीत में 'कर्नल' निजामुद्दीन ने दावा किया था कि जब वे बर्मा में सुभाष चंद्र बोस के ड्राइवर थे तब नेताजी पर जानलेवा हमला हुआ था।
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उनका दावा है कि किसी ने नेताजी पर गोलियां चलाई थीं जिसमे से एक निजामुद्दीन की पीठ पर लगी थी और उसे आज़ाद हिंद फ़ौज में बतौर डॉक्टर काम करने वाली 'कैप्टन' लक्ष्मी सहगल ने ही निकाला था।पीठ पर गोलियों के निशान दिखाते हुए निजामुद्दीन ने दावा किया कि ये गोलियां आज़ाद हिंद फ़ौज की वरिष्ठ अधिकारी कैप्टन डॉक्टर लक्ष्मी सहगल ने निकालीं थी. इसके बाद से ही सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें 'कर्नल' कह कर बुलाना शुरू कर दिया। वर्ष 2015 में सुभाष चंद्र बोस की प्रपौत्री राज्यश्री चौधरी भी निजामुद्दीन से मिलने आजमगढ़ गई थीं।2014 के आम चुनावों के दौरान वाराणसी में अपने प्रचार के दौरान भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भी निजामुद्दीन को स्टेज पर बुलाकर उनका सार्वजनिक अभिनन्दन करन के अलावा उनका आर्शीवाद भी लिया था।
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