- डेढ़ दशक पुरानी योजना के फिर परवान चढ़ने की जगी उम्मीद

- उत्तराखंड के साथ यूपी में भी सुधरेंगे बाढ़ के हालात

- हर साल यूपी में अरबों रुपये की तबाही होती है बाढ़ से

ashok.mishra@inext.co.in

LUCKNOW: यूपी के बाढ़ पीडि़तों के लिए एकमात्र राहत की उम्मीद उत्तराखंड में काली नदी पर बनने वाला पंचेश्वर डैम ही है। कहना गलत न होगा कि पंचेश्वर डैम ही बाढ़ पीडि़तों का 'परमेश्वर' साबित होगा। करीब डेढ़ दशक पुरानी इस योजना के एक बार फिर परवान चढ़ने की उम्मीदें जताई जा रही है। नेपाल के प्रधानमंत्री के कुछ दिन पहले उत्तराखंड दौरे के साथ उसकी संभावना फिर से जगी है। जल्द ही एनटीपीसी जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की मदद से इसका निर्माण शुरू होगा। इसके लिए केंद्र सरकार ने एक अथॉरिटी का गठन भी किया है। हाल ही में नीति आयोग की बैठक में इस पर चर्चा भी हुई है।

खुलेंगे तरक्की के रास्ते

उत्तराखंड में काली नदी पर बनने वाले इस डैम से न केवल बाढ़ से निजात मिलेगी बल्कि दोनों प्रदेशों की तरक्की के नये रास्ते भी सृजित होंगे। इस डैम से करीब 6600 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी होगा। साथ ही यूपी की नहरों में टेल तक पानी की उपलब्धता भी सुनिश्चित होगी। सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता (जल संसाधनन) जेपी द्विवेदी की माने तो डैम बनने के बाद राजस्थान होते हुए अहमदाबाद तक एक नहर परियोजना भी अस्तित्व में आ सकेगी। दरअसल यूपी में हर साल बाढ़ से मचने वाली तबाही को रोकने का एकमात्र यही उपाय है। उत्तराखंड बनने से पहले यह परियोजना उत्तर प्रदेश के खाते में थी। उत्तराखंड के गठन के बाद यह ठंडे बस्ते में डाल दी गयी जिसकी वजह से यूपी को बाढ़ के कहर से निजात नहीं दिलाई जा सकी।

क्या है परियोजना

पंचेश्वर डैम उत्तराखंड की काली नदी पर बनना है, जो पिथौरागढ़ व चंपावत जिलों को नेपाल से अलग करती है। पंचेश्वर स्थान नेपाल सीमा के समीप स्थित है। इस जगह पर काली और सरयू नदियां आपस में मिलती है। काली नदी उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में पहुंचने पर शारदा नदी के नाम से जानी जाती है। यह परियोजना दो हिस्सों में बननी है। पहले चरण में भ्म्00 मेगावॉट क्षमता का पंचेश्वर डैम और उसके बाद क्0म्0 मेगावॉट क्षमता का पूर्णगिरि व सिंचाई परियोजना तैयार की जानी है। इसके लिए म्क् गांवों का पुनर्वास किया जाना है। उत्तराखंड सरकार ने ख्0क्ख् में इस परियोजना को मंजूरी दी थी जिसके बाद भारत और नेपाल सरकार के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है।

एल्गिन बांध का एलाइनमेंट गलत

जानकारों की माने तो एल्गिन बांध का एलाइनमेंट सही नहीं होने से हर साल शारदा नदी का पानी करीब दस जिलों में तबाही मचाता है। सही तकनीक का इस्तेमाल न होने से यह हर साल टूटने की कगार पर पहुंच जाता है। डूब क्षेत्र में बांध का निर्माण होने से पानी बाहर चला जाता है जो बांध को भी क्षति पहुंचाता रहता है। हाल ही में इसकी मरम्मत में दो सौ करोड़ खर्च करने के बाद भी हालात जस के तस रहे। अब सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने पांच किमी का पक्का बांध बनाने का ऐलान किया है।

बीस जिलों होते हैं शिकार

यूपी में केवल शारदा नदी से बीस से ज्यादा जिले हर साल बुरी तरह प्रभावित होते हैं। बाढ़ से जान-माल के नुकसान के साथ अरबों रुपए की हानि भी होती है। हर साल सौ से ज्यादा लोगों की मौत होती है तो रेलवे लाइन, पुल, सड़कें आदि बह जाते हैं। यूपी में हर साल बाढ़ के कहर की वजह से बाकायदा पीएसी में बाढ़ राहत कंपनियां तक बनाई जा चुकी है। इस साल भी अब तक ख्0 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं। इनमें बाराबंकी, लखीमपुर खीरी, गोंडा, बहराइच, बलरामपुर, अंबेडकरनगर व पीलीभीत में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। अब तक कुल फ्फ् व्यक्तियों की मृत्यु भी हो चुकी है।

डेढ़ मीटर ऊंचा होगा एक्सप्रेस वे

बरसात के मौसम में बाढ़ से अवध से लेकर पूर्वी उप्र के तमाम जिलों के डूब जाने के खतरे को देखते हुए जल्द बनने वाले समाजवादी पूर्वाचल एक्सप्रेस वे की ऊंचाई भी बढ़ाई जा सकती है। हाल ही में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई टास्क फोर्स की बैठक में यह मामला उठा था। ऊंचाई बढ़ने से एक्सप्रेस वे के निर्माण में ज्यादा खर्च आने की दलील भी दी गयी, लेकिन बाद में तय हुआ कि हर साल मुसीबत से बचने के लिए एक मीटर के बजाय डेढ़ मीटर सड़क की ऊंचाई रखी जाए।