- लॉ यूनिवर्सिटी में कार्यशाला में बोले नैक डायेक्टर

- ग्रेडिंग के हिसाब से तय होगी समय सीमा

LUCKNOW: उच्च शैक्षिक संस्थानो की गुणवत्ता जांच के लिए राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) की ग्रेडिंग की वैधता की समय सीमा को परिषद कम किया जाएगा। आने वाले दिनो में संस्थानो की ग्रेडिंग के हिसाब से नीति बनाई जाएगी। इसके लिए यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थानो से नई प्रक्रिया पर बात कर रहे हैं। यह बात परिषद के निदेशक प्रो। एएन राय ने कही। वह सोमवार को राम मनोहर लोहिया नेशनल ला यूनिवर्सिटी में स्किल डिवेलपमेंट एंड क्वालिटी एनहांसमेंट इन हायर एजुकेशन विषय पर हुई कार्यशाला में बोल रहे थे। उच्च शिक्षा विभाग और उच्च शिक्षा परिषद की ओर से हुई संगोष्ठी में प्रो। राय ने कहा कि अलग-अलग शैक्षिक संस्थानो के लिए रेटिंग सर्टिफिकेट की वैधता भी अलग रखी जाएगी।

ए ग्रेड संस्थानो को ही मिलेगी पांच साल की वैघता

प्रो। राय ने बताया कि नए बदलावों पर अभी अंतिम फैसला होना बाकी है, लेकिन ग्रेडिंग की पांच साल की वैधता केवल ए- ग्रेड पाने वाले संस्थानो के लिए ही रहेगी। बी और सी-ग्रेड पाने वाले संस्थानो के लिए यह चार और तीन या दो साल की जा सकती है। प्रो। राय ने बताया कि उत्तर प्रदेश बड़ा प्रदेश है इसलिए यहां पर ग्रेडिंग के लिए नई व्यवस्थाएं करनी पड़ेंगी। उन्होंने प्रदेश को चार या पांच जोन में बांटने और हर जोन के लिए नैक का एक अधिकारी तैनात करने की बात कही। उच्च शिक्षा परिषद की ओर से यूपी में नैक के रीजनल सेंटर की स्थापना के विषय पर भी उन्होंने सहमति जताई। साथ ही नैक ग्रेडिंग वाले कॉलेज प्रिंसिपल्स का पूल भी मांगा। जिससे नैक ग्रेडिंग के लिए विशेषज्ञ मिल सकें।

शिक्षकों के सवालों पर कार्यक्रम छोड़कर चले गए अफसर

राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय ला यूनिवर्सिटी में सोमवार को शैक्षिक संस्थानो की गुणवत्ता सुधारने और नैक ग्रेडिंग के लिए हुई संगोष्ठी में शिक्षकों के सवालों ने अफसरों को चुप करा दिया। कॉलेजों में शिक्षकों के खाली पद, सुविधाओं के लिए फंड पर शिक्षकों ने सवाल किया तो अफसरों ने दाएं-बाएं कर मुद्दा टालने की कोशिश की। स्थिति नहीं संभली तो पहले प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा कल्पना अवस्थी और बाद में उच्च शिक्षा परिषद के निदेशक प्रो। एसएस कटियार और दूसरे अधिकारी भी चले गए। नैक मूल्यांकन के संदर्भ में सवालों का सिलसिला शुरू हुआ तो कॉलेजों के शिक्षकों ने आधारभूत सुविधाओं का मुद्दा उठाया। काशी विद्यापीठ के नैक कोऑर्डीनेटर ने राजकीय और एडेड कॉलेजों में ग्रेडिंग के फंड का मद पूछा। कहा कि किस मद से ग्रेडिंग की फीस चुकाएं। सरकार की ओर से सेलरी की ग्रांट के अलावा एक धेला भी नहीं मिलता। ऐसे में सुविधाओं के विकास के लिए किस मद से फंड लाएं। सवाल का जवाब अफसरों को देते ही नहीं बना। बनारस के ही एक एडेड स्कूल के प्राचार्य ने सवाल किया कि ग्रेडिंग के समय पीयर रिव्यू टीम छात्रों से यही पूछेगी कि क्लास होती है या नहीं। जब दस विषय वाले कॉलेज में शिक्षकों के पांच ही पद हैं तो क्लास कहां से चलेगी। खाली पदों को भरने के लिए रिटायर शिक्षकों की पुनर्नियुक्ति की नीती लाई गई है। स्थिति यह है कि ज्यादातर कॉलेजों में नियुक्ति के बाद शिक्षक पढ़ाने अाए ही नहीं।

यूनिवर्सिटी की सेहत बिगाड़ रहे सेल्फ फाइनेंस कोर्स

यूनिवर्सिटी की सेहत संवारने के लिए शुरू हुई सेल्फ फाइनेंस कोर्सेज की बाढ़ यूनिवर्सिटी को बिगाड़ रही है। आर्थिक विपन्नता दूर करने के लिए की गई यह कवायद यूनिवर्सिटी के आकदमिक माहौल खराब कर रही है। संस्थान गुणवत्तापरक शिक्षा की बजाय फंड जुटाने में ही अपनी ऊर्जा समाप्त कर रहे हैं। यह बात उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष और कानपुर विवि के पूर्व वीसी प्रो। एसएस कटियार ने कही। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान की रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट कही गई है कि सेल्फ फाइनेंस कोर्स यूनिवर्सिटी की सेहत खराब कर रहे हैं। इन कोर्सेज से धन तो जुट रहा है लेकिन कांट्रैक्ट टीचिंग और शैक्षिक गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। इससे रिसर्च पर भी बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि पहले भी यूजीसी ने यूनिवर्सिटी में वोकेशनलाइजेशन के लिए पहल की थी लेकिन, वह पहल फेल हो गई थी।