बदलती समय छीन रहा बच्चों का बचपन

न्यूकिलर परिवार, टी.वी इंटरनेट बने विलेन

Meerut। जिन बच्चों को देखकर दुनियाभर की थकान, परेशानियां, तनाव की छुट्टी हो जाती है, बदलते परिवेश में वहीं बच्चे तनाव से घिरकर आज हत्या जैसे जघन्य अपराध के गुनाहगार बन कटघरे में खड़े हैं। हाल में ही गुरूग्राम, लखनऊ व यमुनानगर के स्कूलों में हुई घटनाएं इसके ताजा उदाहरण हैं। डीजे आईनेक्टस जब इन मामलों की गहराई में उतरा तो पता चला कि स्कूल, अभिभावक, समाज, परिवार के साथ ही एडवांस तकनीक ही इस सबकी जिम्मेदार हैं।

बुजुर्गो का प्यार

मनोवैज्ञानिक डॉ। विभा नागर बताती है कि माता-पिता पैसा कमाने और स्टेट्स सिंबल बनाने के चक्कर में बिजी हैं। उनके पास बच्चों के लिए कोई समय नहीं है, जिस कारण बच्चे बिल्कुल अकेले होते जा रहे हैं। स्थिति यह है कि न्यूकिलर फैमिली ने बच्चों को बड़े-बुजुर्गो की गोद के साथ उनकी मनोरंजक व शिक्षाप्रद कहानियों से बिल्कुल दूर कर दिया है। बच्चे अब आया की गोद में बड़े हो रहे हैं। यही वजह है कि बच्चों में संस्कारों और नैतिक मूल्यों का जबरदस्त अभाव होता जा रहा है।

टीवी और इंटरनेट

बडे़ घर और छोटे परिवारों में बच्चों के मनोरंजन के साधन केवल टीवी और इंटरनेट ही हैं। जबकि यह साधन बच्चों के लिए मंनोरजक कम और खतरनाक ज्यादा साबित हो रहे हैं। रिषभ एकेडमी की प्रिंसिपल डॉ। याचना भारद्वाज कहती हैं कि बच्चे आउट डोर गेम्स खेलने की बजाए ब्लू व्हेल गेम की तरफ भाग रहे हैं। इसका क्या नतीजा है यह हम सब देख-सुन रहे हैं। मनोरंजन के नाम पर तमाम टीवी चैनल फूहड़ता, क्राइम और ऐसे कार्यक्रम परोस रहे हैं, जो बच्चों को जानकारी देने की बजाए उनके दिमाग को हैक कर रहे हैं। बच्चा अच्छा या बुरा कुछ समझ ही नहीं पा रहा है।

मा‌र्क्स बने आफत

शिक्षा प्रणाली में आए बदलाव के बाद बच्चों के दिमाग और कंधे पर बस्ते का बोझ बढ़ गया है। अब स्कूलों और परिवार दोनों को बच्चों से सिर्फ अच्छे मा‌र्क्स लाने की उम्मीद रहती है। आरजी कॉलेज से रिटायर्ड समाज शास्त्र की टीचर संतोष मालवीय कहती हैं कि पढाई के बोझ में पिसे बच्चे खुद को विकसित ही नहीं कर पाते हैं। अच्छा स्कूल, अच्छे मा‌र्क्स, अच्छा कॉलेज, बेस्ट जॉब तक ही स्कूल व अभिभावक सिमट गए हैं। जबकि अनुशासन, मर्यादा व सहनशीलता जैसे प्वाइंट्स किताबों और सेलेबस से बाहर हो गए हैं।

वर्किग हो या हाउसवाइफ, सोसाइटी में करियर ओरियंटेड होने की वजह से महिलाओं ने समाज में एक अलग मुकाम तो हासिल किया है। लेकिन इस सबके के कारण वह अपने बच्चों को समय देने में नाकामयाब हो रही है। पुरूषों का हाल इससे भी बुरा है। अभिभावकों के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है। इसका सीधा प्रभाव बच्चें की सोच व मानसिकता पर पड़ता है। शहर में ऐसी तमाम महिलाएं हैं, जो मानती हैं कि सोशल और वर्किंग लाइफ में कहीं न कहीं बच्चे पीछे छूट रहे हैं।

वर्किंग मदर्स

जॉब के साथ घर-परिवार व बच्चों की जिम्मेदारी उठाने में कई बार बहुत दिक्कत आती है। काम के बीच में बच्चे को पूरा टाइम नहीं दिया जाता है।

ख्याति, हाउस वाइफ

जॉब के साथ बच्चों को टाइम देने के लिए महिलाओं को चाहिए कि वह टाइमटेबल बनाएं। जहां बच्चे को उनकी जरूरत हो, वहां वह जरूर मौजूद हों।

अनिता गर्ग, रिटायर्ड टीचर

सोशल लाइफ से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ता है। लेकिन बहुत जरूरी है कि बच्चों की हर जरूरत का ध्यान रखा जाएं ताकि बच्चे से उनकी आत्मीयता बनी रहे।

प्रियंका सिंघल, शिक्षक

सोशल लाइफ महिलाओं को समाज की एक धारा से जोड़ती है लेकिन इसके मद्देनजर यह नहीं भूला जा सकता है कि सोशल लाइफ से जरूरी मां का दायित्व हैं।

हिमानी, हाउस वाइफ

यह करें महिलाएं

वर्किंग महिलाएं

बच्चों के लिए टाइम टेबल तैयार करें।

बच्चे की हर जरूरत, हर सही-गलत हरकत पर ध्यान रखें।

बच्चे से फोन पर सवंाद बनाएं रखे्रं, ताकि वह अकेला न महसूस न करें

बच्चों के दोस्तों के साथ मिले, पार्टी करें, वीकेंड पर घूमने जरूर जाएं।

सामाजिक सरोकारों में जुटी गृहिणियां

समाज से ज्यादा बच्चों पर ध्यान दें।

आया के भरोसे बच्चों को न छोड़ें

सोशल गैदरिंग के ज्यादा बच्चों के साथ जुड़ें। उन्हें विश्वास दिलाएं कि उनकी मां उनके साथ हर दम साथ हैं।

टीवी और इंटरनेट के सीरियल्स पर जो घर और समाज दिखाए जाते हैं, वह सिर्फ एक नाटक मात्र हैं। लेकिन बच्चों में यह संदेश जाता है कि ताकतवर का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इसी सोच के साथ वह आज चाकू, बंदूक उठाने या हमला करने से भी नहीं चूक रहे हैं। उनकी हर डिमंाड पूरी होती है, जिससे वह खुद को पावरफुल मान लेते हैं और जिद पूरी न होने पर कुछ भी कर गुजरते हैं।

नीरा तोमर, प्रिंसिपल व समाज शास्त्री

एक बच्चे की नीति के कारण बच्चा स्वाभाविक रूप से लाडला हो जाता है। इसके कारण उसके बिगड़ने की आशंका प्रबल हो जाती हैं। बच्चे को सही-गलत का ज्ञान करवाएं। उनकी हर जिद को पूरी न करें और मना करने का लॉजिक भी उन्हें जरूर दें।

दीपिका शर्मा, काउंसलर व थेरेपिस्ट