- अब तक के चर्चित कांडों में कुछ ऐसी ही मिली है क्लोजर रिपोर्ट

- क्राइम के मामलों में सीबीआई का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं

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LUCKNOW: मोहनलालगंज में गैंगरेप और हत्याकांड की जांच अब सीबीआई करेगी। अखिलेश सरकार ने मोहनलालगंज घटना की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की है। एक महीने के दौरान यह दूसरी घटना है जब किसी मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी है। इससे पहले बदायूं कांड की जांच भी सीबीआई को सौंप दी गयी थी। होम डिपार्टमेंट ने इसके लिए सीबीआई को लेटर लिखा है। हालांकि, अभी यह कंफर्म नहीं हुआ कि सीबीआई इस जांच को लेगी या नहीं। मगर लगातार मीडिया और राजनीतिक दलों के दबाव चलते सरकार ने यह डिसीजन लिया है। हालांकि, अब तक ऐसे मामलों की जांच में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट पुलिसिया रिपोर्ट को ही फॉलो करती नजर आई है।

जांच रिपोर्ट होगी दिलचस्प

क्राइम के मामलों में सीबीआई का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है। मामला आरुषि का हो या फिर डॉ। वाईएस सचान का। दोनों ही मामलों में क्लोजर रिपोर्ट को ही कोर्ट ने नकार दिया था। हाल के दिनों की बात करें तो पिछले साल प्रतापगढ़ के कुंडा में हुए डिप्टी एसपी जियाउल हक हत्याकांड में भी सीबीआई की जांच में फाइंडिंग्स वही आयीं जो पुलिस की थ्योरी थी। इस मामले में आरोप सपा सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर राजा भइया पर लग रहे थे। सीबीआई ने तेजी से जांच की और राजा भइया का कोई रोल सामने नहीं आया। ऐसे में यह मामला भी अगर सीबीआई टेक ओवर करती है तो किस हद तक सीबीआई की थ्योरी पुलिस से अलग होगी यह देखना दिलचस्प होगा।

आरुषि से लेकर बदायूं तक

मामला नोएडा का हाईप्रोफाइल आरुषि का हो या फिर हाल ही में सीबीआई को ट्रांसफर की गयी बदायूं कांड का। सीबीआई की भी लाइन वही रहती है जो पुलिस की होती है। निठारी कांड, सचान हत्याकांड, सीएमओ हत्याकांड, मुरादाबाद में कॉलेज परिसर में लड़की की हत्या का मामला, आजमगढ़ में सीपू हत्याकांड और फिर बदायूं कांड। यह सारी जांच हाल के दिनों में सीबीआई ने की।

क्लोजर रिपोर्ट के बाद हुई फजीहत

सीबीआई ने आरुषि कांड में यूपी पुलिस की जांच को सही मानते हुए उसी की तर्ज पर इंवेस्टीगेशन आगे बढ़ाई और आखिर में पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल की जिसे कोर्ट ने मानने से मना कर दिया। सीबीआई ने दोबारा जांच शुरू की और तलवार दंपत्ति को सलाखों के पीछे जाना पड़ा। लगभग यही हाल हुआ लखनऊ में जेल में हुई डिप्टी सीएमओ डॉ। योगेंद्र सिंह सचान की मौत का। यहां भी पुलिस की ही नक्शेकदम पर चलकर सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी। आरुषि की ही तरह यहां भी सीबीआई को मुंह की खानी पड़ी और कोर्ट ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को नकार कर दोबारा जांच करने को कहा। जांच अभी जारी है। लखनऊ में दो अन्य सीएमओ की हत्या की जांच भी सीबीआई ने की और लगभग पुलिस की ही थ्योरी पर काम करते हुए मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी।

चंद दिनों में ही पूरी हो गयी जांच

पिछले साल मार्च में प्रतापगढ़ के कुंडा में डिप्टी सीएमओ जियाउल हक की हत्या कर दी गयी। हत्या में नाम कुंडा के विधायक और मंत्री राजा भइया का आया। अखिलेश ने ना सिर्फ राजा भइया से इस्तीफा ले लिया बल्कि मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। सीबीआई ने भी तेजी से जांच करते हुए तीन महीने के अंदर ही अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी और राजा भइया को पूरी तरह से क्लीन चिट दे दी। सीबीआई की क्लीन चिट को जियाउल हक की वाइफ परवीन आजाद ने कोर्ट में चुनौती दी और कोर्ट ने एक बार फिर सीबीआई से मामले की जांच दोबारा करने को कहा है।

इन मामलों में कोई प्रगति नहीं

पिछले ही साल मुरादाबाद के एक इंस्टीट्यूट में एक छात्रा की हत्या कर दी गयी थी। इस मामले में भी प्रदेश सरकार की काफी फजीहत हुई और फिर मामला सीबीआई को सौंप दिया गया। जांच सौंपे जाने के महीनों बाद भी इस मामले में अभी तक सीबीआई किसी डिसीजन पर नहीं पहुंची है। ऐसा ही हाल आजमगढ़ में पूर्व विधायक सीपू की हत्या का भी हुआ। सरकार की किरकिरी के बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया। सीबीआई ने आजमगढ़ में डेरा भी डाला। लेकिन अब तक किसी नतीजे पर जांच नहीं पहुंच पायी है।

तो किस काम की पुलिस?

अखिलेश यादव ने अब तक अपने ढाई साल के कार्यकाल में आधा दर्जन हत्या के मामले की जांच सीबीआई को सौंप चुके हैं। यह सब हाई प्रोफाइल मामले हैं। ऐसे में सवाल यह भी उठने लगे हैं कि अगर पुलिस हाई प्रोफाइल मामलों की जांच नहीं कर सकती तो पुलिसिंग का मतलब क्या है? वहीं जानकारों का मानना है कि पुलिस पर भरोसा ना होने की वजह से सीबीआई जांच की मांग की जाती है। यह परंपरा पुरानी रही है। लखनऊ में जब सीएमओ बीपी सिंह का मर्डर हुआ तो सीबीआई जांच की मांग उठी। लेकिन, उस वक्त की मायावती सरकार ने उसे नहीं माना। कुछ ही दिन बाद डॉ। योगेंद्र सिंह सचान की भी जेल में हत्या कर दी गयी। इस बार मामला कोर्ट में पहुंच गया। कोर्ट सीबीआई जांच की सिफारिश करता इससे पहले ही सरकार ने नजाकत को भांपते हुए खुद ही मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी। ऐसे में जब हर हाई प्रोफाइल मामला सीबीआई को ही हल करना है तो पुलिस किस काम की?