अभियान: हास्पिटल बीमार

स्लग: सदर हॉस्पिटल में मरीजों की तुलना में ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं, दवाओं की भी कमी

-किसी वार्ड में एक साथ तीसरे मरीज को ऑक्सीजन की जरूरत पड़े, तो भगवान ही मालिक हैं

-पेशेंट्स की सुरक्षा को लेकर हॉस्पिटल मैनेजमेंट लापरवाह

Figures speak

110 पेशेंट्स भर्ती हैं हास्पिटल में

6 ऑक्सीजन सिलेंडर ही है अवेलेवल

80 बेड हैं सदर हॉस्पिटल में

200 बेड की शुरू हुई है सुपरस्पेशियलिटी विंग

1928 में ब्रिटिश काल में हुई थी स्थापना

40 पेशेंट्स एडमिट हैं जेनरल वार्ड में

65 मरीज भर्ती हैं सुपरस्पेशियलिटी विंग में

5 मरीज का चिल्ड्रेन वार्ड में चल रहा इलाज

18 दवाएं ही हैं चिल्ड्रेन यूनिट में

32 मेडिसीन हैं जेनरल वार्ड के लिए

RANCHI (13 Aug): अगर आप सदर हास्पिटल की सुपरस्पेशियलिटी या जेनरल विंग में इलाज कराने जा रहे हैं, तो जरा बचके। क्योंकि यहां यदि आपकी सांस अटकी तो जीवन रक्षक गैस आक्सीजन नहीं मिलने वाली है। चूंकि सदर हास्पिटल में मरीजों की तुलना में आक्सीजन के सिलेंडर नहीं के बराबर हैं। ऐसे में मरीज की जान भी जा सकती है। गोरखपुर मेडिकल कालेज में आक्सीजन की कमी से दर्जनों बच्चों की मौत की घटना के बाद भी सदर हास्पिटल प्रबंधन की नींद नहीं खुली है। वहीं हास्पिटल में जरूरी सुविधाओं का भी अभाव है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हास्पिटल किस तरह से बीमार है।

मरीज फ्फ् व सिलिंडर एक

हास्पिटल में अभी जेनरल वार्ड में ब्0 मरीज भर्ती हैं। वहीं सुपरस्पेशियलिटी के मैटरनिटी वार्ड में म्भ् मरीजों का इलाज चल रहा है। इसके अलावा चिल्ड्रेन वार्ड में पांच बच्चों का इलाज जारी है। लेकिन हर वार्ड में मरीजों की तुलना में दो-दो सिलेंडर दिए गए हैं। ऐसे में अचानक से दो से अधिक मरीजों को इसकी जरूरत पड़ी, तो फिर भगवान ही मालिक हैं

नहीं है गैस पाइपलाइन

सदर हास्पिटल की स्थापना ब्रिटिश शासन काल में क्9ख्8 में की गई थी, जहां 80 मरीजों के इलाज की व्यवस्था है। वहीं सुपरस्पेशियलिटी विंग में ख्00 बेड का हास्पिटल चालू किया गया है। लेकिन आजतक हास्पिटल में गैस पाइपलाइन नहीं बिछाई जा सकी है। जबकि हास्पिटल में इलाज कराने वालों की संख्या बड़ी है। इस वजह से गंभीर मरीजों को सीधे रिम्स रेफर कर दिया जाता है।

दवाओं का भी टोटा।

चिल्ड्रेन वार्ड में गिनती की दवाएं

सुपर स्पेशियलिटी विंग के चिल्ड्रेन वार्ड में गिनती की डेढ़ दर्जन दवाएं ही अवेलेबल है। इसमें उल्टी, दस्त और मलेरिया की दवाएं शामिल हैं। इसके बाद मरीजों के परिजनों को प्राइवेट मेडिकल स्टोर से दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं। इस चक्कर में परिजनों की जेब ढीली हो रही है। ऐसे में सरकार के सुपरस्पेशियलिटी हास्पिटल का सपना साकार होता नजर नहीं आ रहा है।

जेनरल वार्ड में भी मेडिसीन कम

हास्पिटल के जेनरल वार्ड में हर तरह के मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। लेकिन दवाओं की बात करें तो केवल फ्ख् मेडिसीन ही अवेलेवल हैं। इसमें इंजेक्शन, मेडिसीन और टैबलेट शामिल हैं। इसके बाद तो मरीजों को बाहर से ही दवा लाकर इलाज कराना पड़ रहा है।