मेडिकल कॉलेज के भयावह चेहरा

पिता ने लावारिस छोड़ा तो

बच्ची को मिला इलाज

- इलाज के लिए लावारिस छोड़ना पड़ा नवजात को

- आखिर मेडिकल में एक बच्चे का इलाज करने की भी जगह नहीं है

- अब तो इंसानियत की हदें पर कर डाली है मेडिकल ने

Meerut: पिता के साथ मेडिकल आई नन्हीं परी रो रही थी, लेकिन अस्पताल प्रशासन का दिल नहीं पसीज रहा था। उसे मेडिकल कालेज में एडमिट करने से मना कर दिया। उसके पिता ने बताया कि मैं मिन्नतें करता रहा कि कोई मेरी मासूम बच्ची का इलाज कर दे। पर बेशरम मेडिकल प्रशासन ने सारी हदें पार कर दी। काश की कोई एक बार तो पूछ लेता कि मेरी क्या मजबूरी है। काश कोई होता जो मेडिकल में अपने डॉक्टर होने का फर्ज निभाता। जब डॉक्टर्स ने बच्ची को एडमिट करने से मना कर दिया तो हारकर मुझे अपनी बच्ची को लावारिस की तरह छोड़ना पड़ा। उसे कोने में लावारिस छोड़कर किसी दूर कोने में बैठकर आंसू भरी आंखों से बस यही इंतजार करना पड़ा कि काश कोई इसे लावारिस समझकर ही इसका इलाज कर दें।

सारी हदें हो गई पार

सोमवार को मेडिकल में किठौर खंदारवली में खेती करने वाले किसान नवील अहमद अपने साले खुराफत के साथ अपनी नवजात बच्ची को लेकर मेडिकल इलाज के लिए आए। नवील ने बताया बच्ची के पीठ पर फोड़ा था। उसे पहले हापुड़ रोड स्थित दुआ नर्सिग होम में डॉ। शबाना से दिखाया था, जहां से उसे मेडिकल रेफर कर दिया। मेडिकल में वह अपनी बच्ची को लेकर भटकता रहा। कभी ऊपरी मंजिल पर तो कभी निचली और कभी इमरजेंसी। फिर वह बच्चा वार्ड गया जहां बच्ची का इलाज करने से मना कर दिया। जब उसे कुछ समझ नहीं आया तो उसने अपनी फूल जैसी मासूम को एक कोने में रख दिया और इंतजार करता रहा कि शायद लावारिस समझकर उसका इलाज हो जाए।

इंसानियत का नामोनिशान नहीं

ये मेडिकल कॉलेज भी कितना बेहया हो गया है। नन्हीं सी बच्ची का इलाज कराने के लिए एक पिता को मजबूरी में उसे लावारिस साबित करना पड़ा। सोचो जरा, यहां किसी में भी इंसानियत नाम की चीज तक नहीं है। जरा पूछिए मेडिकल कॉलेज से कि मजबूर पिता दर दर की ठोकरे खा रहा था तो कहां खो गई थी इंसानियत? लाचार पिता कभी इमरजेंसी वार्ड में गया तो कभी बच्चा वार्ड। कभी खुद को कोसा, लेकिन किसी को भी तरस नहीं आया।