सेंट्रल गवरमेंट ने लोगों को अपने एक्सप्रेशन को फ्रीली शेयर करने का फुल राइट देते हुए सोशल मीडिया कमेंट करने कर परमीशन दे दी है. इस मामले में क्रिटिसिज्म की शिकार सेंट्रल गवरमेंट ने अपने डिसीजन में लिए चेंज के बारे में सुप्रीम कोर्ट को इंफार्म भी कर दिया है. यानि इस डिसीजन के बाद सोशल मीडिया पर किए जाने वाले कमेंट को लेकर इन्फार्मेशन टैक्नॉटलिजी एक्ट के सेक्शन 66 A के अंडर होने वाले एक्शन में होने वाली स्ट्रिंक्टनेस में कमी आ सकेगी.

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को को दिए एक करेंट एफिडेविट में कहा है कि आइटी कानून के प्रोविजंस को कांस्टीट्यूशन के सेक्शन 19(2) के अंडर आने वाले फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के राइट के अंडर फॉलो किया जाना चाहिए. र्सोसेज के अकॉड्रिंग सरकार का मानना है कि सोशल मीडिया पर कंट्री के लोगों के अपने थॉट्स शेयर करने के राइट पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई जानी चाहिए. हालाकि अपने एफिडेविट में गवरमेंट ने कहा है कि ऐसे कमेंटस जो नेशनल इंट्रेस्ट और सोशल इंट्रेस्ट से कंसर्न हैं उन पर अपना स्टैंड लेने की सरकार को इजाजत होगी. सेंसटिव इश्यूज को छोड़ कर बाकी मामलों में लोगों को कमेंट करने की छूट देने पर सरकार कोई ऑब्जेक्शन नहीं है क्योंकि वे इसे सोशल चेंज के डायरेक्शन में एक स्ट्रांग स्टेप मानते हैं.

ऐसा लगता है सरकार के एटिट्यूड में ये चेंज प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी के इंटर फियरेंस के बाद आया है जो खुद सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना पसंद करते हैं.  अब लगता है कि आइटी एक्ट के सेक्शोन 66A में सोशल मीडिया पर आब्जेसक्शनल कंटेंट को ठीक से इंटरप्रेट किया जा सकेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में आइटी एक्ट के इस सेक्शन की कांसटीट्यूशनल वेलेडिटी को रिव्यु करने और सरकार के इस पर स्टैंड को क्लियर करने की डिमांड की थी. इस एक्ट में तीन साल तक की जेल और फाइन का प्रोवीजन है. मुंबई के ठाणे में दो लड़कियों के फेसबुक पर शिवसेना के मुंबई बंद को लेकर किए कमेंट पर उनके अगेंस्ट हुए एक्शन के बाद आइटी एक्ट के इस सेक्शन पर डिबेट स्टार्ट हुई थी.

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