ये वो पुस्तक थी जिसके बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा था, ''बुक ऑफ जेनेसिस के बाद ये साहित्य की पहली कृति है जिसे पूरी मानव नस्ल को पढ़ना चाहिए.''

मार्केज़ को उनके नाना नानी ने उत्तरी कोलंबिया के बड़े ही ख़स्ताहाल शहर आर्काटका में पाला पोसा था. मार्केज़ अपनी सभी कृतियों के लिए अपने बचपन के पालन पोषण को श्रेय देते हैं.

मार्केज़ को अपने नाना से राजनीतिक चेतना मिली जो खुद दो गृह युद्धों में शामिल हो चुके थे और अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्ता भी थे.

अपनी नानी से मार्केज़ ने अंधविश्वासों और स्थानीय कहानियों को जाना-समझा. नानी उन्हें मरे हुए पूर्वजों, भूतों और प्रेतात्माओं की कहानियां सुनाती थीं जो उनकी नज़र में घर में ही नाचते रहते थे.

मार्केज़ ने अपनी नानी के कहानी कहने के अंदाज़ को ही अपने उपन्यासों में इस्तेमाल किया.

मार्केज़ ने कॉलेज में क़ानून की पढ़ाई शुरु की पर पढ़ाई बीच में ही छोड़कर उन्होंने पत्रकारिता शुरु कर दी. 1954 में वो एक अख़बार के काम के सिलसिले में रोम गए और उसके बाद से अधिकतर समय वो विदेश में ही रहे. पेरिस, वेनेजुएला और मेक्सिको में उनके जीवन का अधिक समय बीता.

उन्होंने पत्रकार के रुप में अपना काम कभी नहीं छोड़ा, यहां तक कि जब उनकी कहानियां बहुत लोकप्रिय हो गईं और उन्हें काफी पैसे भी मिलने लगे तब भी वो पत्रकारिता से जुड़े रहे.

पहला उपन्यास

जाने माने उपन्यासकार विलियम फॉकनर से प्रभावित मार्केज़ ने अपना पहला उपन्यास 23 वर्ष की उम्र में लिखा था. ये उपन्यास 1955 में प्रकाशित हुआ. लीफ स्टार्म नाम का ये उपन्यास और इसके बाद के दो उपन्यास उनके करीबी दोस्तों में काफी पसंद किए गए.

नोबेल विजेता उपन्यासकार मार्केज़ का निधन

हालांकि तब किसी ने सोचा नहीं था कि आने वाले समय में मार्केज़ इतने बड़े लेखक हो जाएंगे.

1965 में उन्हें हन्ड्रेड इयर्स ऑफ सॉलीट्यूड के पहले अध्याय का ख़्याल उस समय आया जब वो अकापुलो की तरफ कार से जा रहे थे. उन्होंने कार रोकी, वापस घर आए और अपने कमरे में खुद को बंद कर लिया. लिखने के दौरान हर दिन उनके दोस्त होते थे- छह पैकेट सिगरेट.

18 महीने के बाद वो जब किताब पूरी कर उठे तो उन पर 12 हज़ार डॉलर का कर्ज़ था. लेकिन मज़े की बात ये थी कि उनके हाथ में 1300 पन्नों का वो उपन्यास था जो अपने समय का सबसे बेहतरीन उपन्यास कहलाने वाला था.

यह उपन्यास जब स्पेनी भाषा में प्रकाशित हुआ तो एक हफ्ते में ही इसकी सारी प्रतियां बिक गईं और अगले तीस वर्षों में इस उपन्यास की दो करोड़ से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं और तीस से अधिक भाषाओं में उसका अनुवाद हो चुका है.

मार्केज़ की तारीफ उनके लेखन की जीवंतता को लेकर होती है. उनकी भाषा कल्पनाओं को नई उड़ान देती है. कुछ लोग मानते हैं कि वो अपने लेखन में जानबूझकर कल्पनाओं का, सुपरनैचुरल चीज़ों का और मिथकीय तरीकों का उपयोग करते हैं ताकि अपने देश में चल रही उथल-पुथल से दूर हो सकें.

राजनीतिक प्रतिबद्धता

मार्केज़ खुद कहते थे कि उनका सरियलिज़्म लातिन अमरीका के यथार्थ से आया है.

कोलंबिया में बढ़ती हिंसा को देखते हुए मार्केज़ की राजनीतिक प्रतिबद्धताएं भी बढ़ीं और इसके बाद रचना हुई जनरल इन हिज़ लैबरिंथ और

ऑटोमन ऑफ द पैट्रियार्क की.

कोलंबिया सरकार के लिए शर्मिंदगी पैदा करने वाले एक लेख के बाद मार्केज़ को कुछ समय निर्वासन में यूरोप में भी बिताना पड़ा.

मार्केज़ ने जब चिली के शरणार्थियों की वापसी के अनुभवों पर एक उपन्यास लिखा तो चिली सरकार ने उसकी पंद्रह हज़ार प्रतियां जला दीं.

मार्केज़ लगातार अपने वामपंथी रुझान वाला लेखन प्रकाशित करते रहे और आगे चलकर फ्रांसित मितरां के दोस्त बने. उनके मित्रों में फिदेल कास्त्रो भी थे.

राजनीतिक विवादों के बाद भी मार्केज़ का स्थान साहित्य के बड़े नामों में शुमार होता है और उसकी वजह है, उनका बेहतरीन लेखन. ऐसा ही उनका एक और उपन्यास आया 1986 में लव इन द टाइम ऑफ कॉलेरा.

‘नज़रिए और भाषा के इस जादूगर’ को 1982 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला.

नोबेल कमिटी के अनुसार मार्केज़ को मिथकों और इतिहास को मिलाकर एक ऐसी दुनिया गढ़ने के लिए नोबेल दिया गया जिस दुनिया में कुछ भी संभव होता है और सब कुछ विश्वास करने लायक है. और इन सभी चीज़ों को वैसी ही रंगीनियत मिलती है जैसा कि दक्षिण अमरीका के रंग बिरंगे कार्निवल होते हैं.

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