RANCHI: सरकार और मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया (एमसीआई) ने डॉक्टरों को जेनरिक दवाएं लिखने का आदेश तो जारी कर दिया, लेकिन अब भी डॉक्टरों के प्रेस्क्रिप्शन से यह कोसों दूर है। आखिर हो भी क्यों न ब्रांडेड दवाएं लिखने की आदत जो पड़ी हुई है। ऐसे में जेनरिक दवाएं लिखना डॉक्टरों के लिए आसान नहीं है। हालांकि कुछ डॉक्टरों ने जेनरिक दवाएं लिखनी शुरू कर दी है। लेकिन इस आदेश का अगर गंभीरता से पालन किया जाए तो सबसे ज्यादा असर मेडिकल स्टोर्स पर पड़ेगा, जहां ब्रांडेड दवाएं खरीदने के लिए तो लोगों की भीड़ नहीं लगेगी। पर इसके लिए सरकार को भी जेनरिक दवाओं की कीमतों पर लगाम लगाने की जरूरत है। तभी इसका फायदा आम लोगों को मिलेगा।

फार्मासिस्ट की भारी कमी

झारखंड में दवा दुकानें तो काफी संख्या में खुल गई हैं, लेकिन यहां फार्मासिस्ट तो है ही नहीं। एक-एक फार्मासिस्ट के लाइसेंस पर क्0 दुकानें चल रही हैं। ऐसे में जब डॉक्टर दवा के कंपोजिशन लिखेंगे, तो एक एक्सपर्ट फार्मासिस्ट ही उसके हिसाब से दवा दे सकेगा। इसके लिए सरकार को भारी संख्या में फार्मासिस्ट बहाल करने होंगे, तभी आम लोगों तक जेनरिक दवा पहुंचाई जा सकेंगी।

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इसे लागू कराने के लिए सरकार को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। एक जेनरिक दवा और ब्रांडेड दवा दोनों की कीमतों में भी ज्यादा का अंतर नहीं होता। ऐसे में सरकार को जेनरिक दवाओं के प्राइस कम करने की जरूरत है, तभी इसका फायदा आम मरीजों को मिलेगा। वहीं डॉक्टर जेनरिक दवा लिखेंगे, तभी तो मेडिकल में दवाएं उन्हें दी जाएगी।

बंटी जुल्का

सरकार की जेनरिक दवा को बढ़ावा देने की पालिसी अच्छी है। जेनरिक दवा सभी डॉक्टर नहीं लिखते हैं, पर कुछ के प्रेस्क्रिप्शन पर जेनरिक दवाएं लिखी आ रही हैं। इससे हम लोगों को भी दवा देने में परेशानी नहीं होती है। इतना ही नहीं, मरीजों को भी काफी बचत होती है। आखिर एजुकेशन के बाद अगर कोई जरूरी चीज है, तो वह हेल्थ ही है।

दिलीप