- डेथ सर्टिफिकेट के लिए हफ्तों से लेकर वर्षो तक इंतजार
- ऑनलाइन व्यवस्था होने के बाद भी नहीं मिल रही राहत
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VARANASI
दुनिया का सबसे बड़ा
बोझ होता है बाप के कंधे पर बेटे का बोझ। यही बोझ पिछले 14 महीने से हर रोज उठा रहे हैं अशोक कुमार सेठ। उनके सुखी परिवार को नजर लग गयी और रोड एक्सिडेंट में जवान बेटे की मौत हो गयी। शरीर के साथ उसकी पत्नी और बेटे के जिंदगी खाक ना हो इसके लिए जद्दोजहद शुरू किया। बेटे के द्वारा कराये गये इंश्योरेंस के रुपये से उनको सहारा देने की सोचा। लेकिन इसके लिए बेटे की मौत को साबित करना था नगर निगम की ओर से दिए गए डेथ सर्टिफिकेट के जरिए। उन्होंने प्रक्रिया शुरू की, 14 महीने बीत गए लेकिन अशोक को बेटे का बर्थ सर्टिफिकेट नहीं मिल सका। वो और उनका परिवार हर रोज बेटे की मौत की चर्चा करता और आंसू बहाता है।
किस काम का यह सिस्टम
नगर निगम की दुर्व्यवस्था के शिकार सिर्फ अशोक नहीं हजारों हैं। कहने को यहां सब डिजिटल हो गया है और डेथ के लिए ऑनलाइन आवेदन हो रहा लेकिन सर्टिफिकेट महीनों बाद नहीं हासिल होता है। विभागीय अफसरों के मुताबिक मृत्यु प्रमाणपत्र के प्रतिमाह करीब दो हजार आवेदन आते हैं। लेकिन 50 फीसदी का ही निस्तारण हो पाता है। आंकड़ों के मुताबिक जनवरी में 949 और फरवरी में 932 प्रमाणपत्र जारी किए गए। फिलहाल तीन हजार से ज्यादा आवेदन लम्बित हैं। हर महीने औसतन सात सौ से नौ सौ प्रमाणपत्र जारी किए जाते हैं।
मौत का करते हैं सौदा
किसी की मौत का भी सौदा होता यह सोचना भी इंसानियत को शर्मसार करने वाला है लेकिन नगर निगम के कर्मचारियों को शर्म नहीं आती है। वो डेथ सर्टिफिकेट इश्यू करने के बदले भी सौदेबाजी करते हैं। निगम में जब आवेदन लेकर कोई पहुंचता है तो कागजों में कमी बताकर उसे आनलाइन नहीं करते हैं। प्रक्रिया तब तक नहीं शुरू होती है जबतक सर्टिफिकेट के बदले रकम तय ना हो जाए। अगर कर्मचारियों को उनकी डिमांड के मुताबिक रुपये मिल जाते हैं तो काम हुआ नहीं तो आवेदन दौड़ता रह जाए उन्हें फर्क नहीं पड़ता है।
केस 1: कादीपुर (शिवपुर) निवासी बेटे का ऑनलाइन डेथ सर्टिफिकेट लेने के लिए एक साल से ज्यादा समय से नगर निगम के चक्कर काट रहे हैं। लेकिन कर्मचारी तमाम तरह की दिक्कत बताकर सर्टिफिकेट देने में आनकानी कर रहे हैं।
केस 2: शहर के ईश्वरगंगी निवासी सुरेन्द्र कुमार पिता के डेथ सर्टिफिकेट में नाम करेक्शन करने के लिए तीन हफ्ते से दौड़ लगा रहे हैं। लेकिन अभी तक नाम सही नहीं हो पाया।
जी हां, ये कुछ मामले बानगी भर हैं। कोई अपने किसी परिजन की मृत्यु के मरने का दुख झेल रहा है। लेकिन सरकारी सिस्टम उसे रोज दर्द दे रहा है। तमाम ऐसे लोग हैं, जो अपने परिजनों का डेथ सर्टिफिकेट लेने के लिए नगर निगम का चक्कर काटने के लिए विवश हैं। यह हालत तब है, जब प्रमाणपत्र जारी करने की पूरी व्यवस्था ऑनलाइन है। बावजूद इसके निर्धारित समय में प्रमाणपत्र जारी नहीं किए जा रहे हैं। निगम के जन्म, मृत्यु विभाग में भीड़ देखकर इसे समझा जा सकता है।
पोर्टल से मिलता है सटिर्फिकेट
डेथ और बर्थ सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई है। ई नगर सेवा पोर्टल से सर्टिफिकेट जारी होते हैं। डेथ होने के 21 दिन के भीतर निगम को इसकी जानकारी देनी होती है। फिर जांच आदि के बाद सात के दिन के भीतर सर्टिफिकेट देने का नियम है। सम्बंधित व्यक्ति के मोबाइल पर इसका मैसेज आता है। सर्टिफिकेट निर्धारित शुल्क 15 रुपया है।
विलम्बित केसों का ये है नियम
विभागीय नियमों के मुताबिक 22 से 30 दिन के भीतर डेथ की जानकारी देने पर विलम्ब शुल्क लेकर सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। 30 दिन से एक साल के भीतर सूचना देने पर रजिस्ट्रार के यहां आवेदन पत्र देने के साथ ही स्व घोषणा प्रमाणपत्र देना होता है। लेट फीस भी देनी होती है। एक साल के बाद भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है।
45 दिन में सर्टिफिकेट न देने पर कार्रवाई
नई व्यवस्था के तहत हर हालत में सात से 45 दिन के भीतर डेथ सर्टिफिकेट जारी होने चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो जनहित गारंटी योजना के तहत सम्बंधित कर्मचारी पर कार्रवाई हो सकती है। लेकिन इसका व्यवहारिक स्तर पर पालन नहीं होता है। सूत्रों के मुताबिक कई केसों में कर्मचारी कागजों में कमी निकालकर सर्टिफिकेट जानी करने में आनकानी करते हैं।
जांच से होती है डेथ की पुष्टि
डेथ सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करने पर निगम के सुपरवाइजर मौके पर जाकर मृत्यु की पुष्टि करते हैं। यह बात मोहल्ले के सभासद द्वारा प्रमाणित करने पर भी लागू होती है। हालांकि सरकारी और निजी अस्पताल में अगर मृत्यु होती है तो हास्पिटल की स्लिप के आधार पर सर्टिफिकेट जारी कर दिए जाते हैं।
- एक साल में जारी सर्टिफिकेट 8545
- पिछले दो महीने में बने प्रमाणपत्र 1881
- निगम में जन्म-मृत्यु चौकियां 5
- जन्म-मृत्यु विभाग में कुल कर्मचारी 17
मैनुअल व ऑफलाइन सर्टिफिकेट जारी करने में प्रॉसेस कम था। लेकिन ऑनलाइन सिस्टम में प्रक्रिया लम्बी हो गई है। इससे सर्टिफिकेट जारी करने में कई बार देरी हो जाती है। कर्मियों की कमी के बाबत नगर आयुक्त को बताया गया है।
डा। मो। शमी
डिप्टी रजिस्ट्रार