-विश्व गौरैया दिवस आज, जहां मोबाइल टॉवर का रेडिएशन अधिक, वहां से गायब हो रही गौरैया

PATNA : कभी घर-आंगन का बसेरा हुआ करती थी गौरैया। लेकिन आज उसके अस्तित्व पर छाए संकट के बादल ने उसे हमसे दूर कर दिया है। यह हाल बिहार का नहीं देश के हर प्रांत का है जहां से गायब होती जा रही है यह खूबसूरत चिडि़या। इससे इतर पटनाइट्स के लिए दुर्भाग्य की बात है कि हम इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते। न इनकी संख्या का पता है, न ही इस पर कोई साइंटिफिक रिसर्च। बस इतना पता है कि अब यह शहरों में कभी-कभार दिख जाती है।

किसी को नहीं पता कितनी है

गौरैया को लेकर पूरे विश्व में साइंटिफिक डाटा की काफी कमी है। बिहार में कोई रिसर्च इस वक्त इस चिडि़या की स्पष्ट स्थिति को नहीं दिखा रहा है। पर्यावरण विभाग की कुछ योजनाएं ठंडे बस्ते में हैं। सरकार ने यहां के दफ्तरों में घोंसला लगाने की योजना चलाई थी, जिसका इंप्लीमेंटेशन काफी सुस्त है।

शहरों में क्यों नहीं दिख रही है गौरैया

क्। हमारे घर में गौरैया का बसेरा नहीं- शहरों में बन रहे घरों के डिजाइन इस तरह के हैं कि इसमें गौरैया के लिए कोई जगह नहीं। कुछ समय पहले तक घर की मुंडेर पर चिडि़यों का घोंसला हुआ करता था। लेकिन हमारी करतूत ने उसे हमसे दूर कर दिया।

ख्। मोबाइल टॉवर रेडिएशन- शहरों में तेजी से बढ़ते मोबाइल नेटवर्क ने हमारी सुविधाएं तो बढ़ा दी है, लेकिन गौरैया को कम कर दिया है। विशेषज्ञों के मुताबिक गौरैया रेडिएशन से इरिटेट होकर वहां से भाग जाती है। उन्हें कई बीमारियां भी इसी रेडिएशन की वजह से हो रही है। इंसानों पर भी रेडिएशन का बुरा असर है, पर यह धीमा है।

फ्। देसी की जगह आए विदेशी पेड़- शहर में हरियाली तेजी से घट रही है। अगर नए पेड़ लग भी रहे हैं तो वे छोटे और विदेशी नस्ल के हैं। गौरैया को घर बनाने के लिए ऊंचे और पुराने पेड़ों की जरूरत होती है।

ब्। पैकेज्ड फूड- घरों में अब सबकुछ पैकेज्ड आ रहा है। हम आटा तक पिसा हुआ खरीदते हैं। पहले घरों की छत पर गौरैया के लिए खाने का इंतजाम होता था। खाने की कमी से वे विलुप्त हो रही हैं।

हम क्यों बचाएं गौरैया?

देश के दूसरे हिस्से में लोग इकोलॉजिकल और पर्यावरण के लिए गौरैया बचाने के मुहिम चला रहे हैं, लेकिन हमारे लिए यह पहचान का विषय है। दूसरी तरफ

इको सिस्टम के लिए हर पशु पक्षी और पेड़ पौधों का अपना महत्व है। कोई एक भी इस सिस्टम से खत्म होता है तो इंसानों के जीवन पर भी संकट आएगा। इसलिए गौरैया को बचाना हमारे लिए जरूरी है।

बिहार की पहचान गौरैया

बिहार के लिए गौरैया इसकी पहचान है। दरअसल सरकार ने गौरैया को राज्य पक्षी का दर्जा दिया है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि यहां इसके संरक्षण के अधिक उपाय नहीं दिख रहे। लेकिन पक्षियों को बचाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों में हम भी हिस्सेदार हो सकते हैं।

गौरैया गिनने की मुहिम- देश-विदेश की सैकड़ों संस्थाओं ने एकसाथ आकर गौरैया के ऊपर साइंटिफिक डाटा इकट्ठा करने की मुहिम चलाई है। इसका हिस्सा बनने के लिए आप भी द्धह्लह्लश्च://द्गढ्डद्बह्मस्त्र.श्रह्मद्द/ पर चिडि़यों की जानकारी दे सकते हैं।

घर और खाना दो - गौरैया के लिए बहुत छोटे घर की जरूरत होती है। साथ ही रोज सुबह छत पर दाने और रोटियों के छोटे टुकड़े डालकर उनको खाना दे सकते हैं।

हमारे देश भर में गौरैया के ऊपर साइंटिफिक डाटा की कमी है। इसी कमी को पूरी करने के लिए नेचर फॉरएवर ने विश्व की कई संस्थाओं के साथ मिलकर स्पैरो काउंट यानी गौरैया की गिनती का कार्यक्रम लॉन्च किया है। एक-दो साल में अच्छा खासा डाटा उपलब्ध होगा।

- मोहम्मद दिलावर, प्रेसिडेंट, नेचर फॉर एवर, मुंबई